कुछ न कह कर भी तुमने सब कुछ कह दिया,
मैं तो बिना वजह जी रहा था तुम्हारे लिए ।
दूरियां ऐसे बढाई जाती है, मालूम नहीं था,
मैं तो कब का मर गया था अपने अन्दर ।
शुब्ध था तेरे ख्यालों से, चीखती यादों से तन्हा लड़ते हुए,
और न जाने कब गीले तकिये पर सुबह हो गयी ।
और न जाने कब गीले तकिये पर सुबह हो गयी ।
किसी को चाह कर देखा मैंने,
खुद को अजमा कर देखा मैंने,
पर कुछ न हासिल हुआ,
गहरे ज़ख्मों के अलावा ।
मेरी परेशानियों का सबब लोग क्या जाने,
यहाँ तो सब चटकारे ले कर जिया करते है ।
मंजिलें और भी बाकी है मेरे दोस्त तय करने को,
बस ज़िन्दगी कम न पड़ जाये दोस्ती की ।
डालेंगे नज़र जब करम होगा,
मैं तो हु कहीं दिल में समाया,
नज़र पड़ेगी तो करम होगा ।
ए दोस्त! तेरी दोस्ती प्यारी लगी,
बहुत खोज पर दुनिया से नयारी लगी,
"मैं" तो मुफलिस था भटका सा,
तुझसे मिला तो दुनिया प्यारी लगी,
ए दोस्त! तेरी दोस्ती प्यारी लगी ।
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