लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास, कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Thursday, October 28, 2010
मुझको मेरी राहों में...
मुझको अंधेरों में भी, खुद की परछाई दिखाई देती है,
बदल रहा हूँ मैं शायद, यह एहसास होने लगा है,
मुझको मेरी राहों में, तन्हाई दिखाई देती है...
उस बेगाने शक्श ने...
क्या इतना मुफलिस हो गया, की खुद को मैंने खो दिया,
रात भर जागा किया थे, जिस बेगाने शक्श को,
आज, उस बेगाने शक्श ने, खुद बेगाना कर दिया,
क्या खता थी मेरी, बना दिया गुनाहगार,
आज मेरे ख़त को भी, बेरंग लौटा दिया,
रोज़ कहते फिरते थे, मुझको अपना, मुझको अपना,
आज, उस बेगाने शक्श ने, मुझको बेगाना कर दिया...
Monday, October 25, 2010
लफ्ज़ मैं नहीं चुनता...
शब्द मैं नहीं लिखता, शब्द मुझे लिख देते है क्यूँ,
मैं तो चाहूं दिल की हसरत बताना,
जाने ये लफ्ज़ खुद-ब-खुद, नज़्म लिख देते है क्यूँ...
Friday, October 22, 2010
सर्द होने लगी है रातें...
दिशाओ की रंगत बदलने लगी है,
सर्द होने लगी है रातें,
हवाओ की रंगत बदलने लगी है,
तेज़ हवाओ का आलम देखो,
सर्द होने लगी है रातें,
जहाँ कल तक चला करते थे घरों में पंखे,
वहां रजैया तन ने लगी है...
Thursday, October 21, 2010
जाने क्यूँ मुझको...
साज़ दिल सजने लगे, दिल में इतनी रंगत कर लिया,
हर आवाज़ में उनकी ही आवाज़ सुनाई देने लगी,
हर चेहरे में, उनकी ही परछाई नज़र आने लगी,
दिल लगाते ही, मुझसे मैं को रुसवा कर दिया,
अब न आते है, दो घडी बोल के वो पल दोबारा,
जाने क्यूँ मुझको, इतना तनहा कर दिया...
याद आती नहीं उनको...
याद करते है कितना, उनको कोई भरम नहीं,
अब तो हाल-इ-दिल पूछना भी, न-मुनासिब समझते है वो,
लगता है जैसे, उनको अपना कोई गम नहीं...
Wednesday, October 6, 2010
इस रात की ख़ामोशी में...
आँखों में आस की रौशनी, दिल में दर्द का अँधेरा हुआ,
चाहता हूँ तेरे सीने से लिपट कर रोना,
पर यहाँ मेरी ही बाहों का बसेरा हुआ...
हर जर्रे में तुझे खोजने की कोशिश की,
दिल की दीवारों पर तेरा बसेरा हुआ,
चाहता था तुझे आफताब की तरह,
पर तू ही मेरा खुदा हुआ...
Monday, October 4, 2010
नज़र-इ-करम इतना करो...
मैं न चाहूं धन-दोलत, राह में बिखरें मेरी,
मुझको तो बस होसला हो, हर राह में दुओं की तेरी...
Monday, September 27, 2010
दुओं में तुम रहोगी...
खुदा से गुज़ारिश रहेगी मेरी, हर दुआ में तेरा नाम आये,
गर कबूल हो तो दुआ में मेरे सर पर तेरा हाँथ आये...माँ
Friday, September 24, 2010
चेहरे पर झूठा नकाब था...
रोता रहा दिल मेरा, हँसकर दिखा दिया,
आँख थी बोझिल, अश्कों का लिबास था,
दिल में दर्द भरा था और चेहरे पर झूठा नकाब था...
दिल ही नदारद है, मेरे ही वास्ते...
रात भर जागा करते थे, याद को संभाले मेरे वास्ते,
अब जो दिल लगा कर सुनते चाहते है, आहटे उनके दिलो की,
दिल ही नदारद है, मेरे ही वास्ते...
दिल लगाने का अंजाम...
क्या ये मैं ही हूँ या पहचान खोने लगा,
दिल तड़पता था अंदर ही अंदर, अँधेरे में छुपकर रोता था,
तब जाके जाना दिल लगाने का क्या अंजाम होता था...
ज़िन्दगी की लालसा में...
देख नभ की ऋतुओ को, बादलों से तरंग टपकी,
देख उनको मुस्काया मैं, जिन्दगी की नयी उमंग टपकी,
बारिशों के संग-संग, बादलों से तरंग टपकी,
नभ के नीले आसुओं से, भीगी हरी-भारी ये धरती,
कल्पनाओं की लालसा में, तर सी गयी ये जिन्दगी,
शब्दों की लालसा में, भटकता मैं एक मुसाफिर,
जिन्दगी की लालसा में, नभ से टपकी फिर से जिन्दगी...
उसके झूटे वादे सुनकर...
उसके झूठे वाडे सुनकर, खुद दिलको समझाना चाहा,
दर्द भरा रहता था दिल में, चहरे पर मुस्कान थी,
दिल तो बेबस था मेरा और वो मुझसे अनजान थी,
सोच-सोच कर मैं घुटता था, दिल ही दिल में अन्दर-अन्दर,
देख कर उनको ये लगता था, प्यार भरा हो अन्दर-अन्दर,
हिम्मत करके कहना चाहा, हाल-इ-दिल मैंने अपना,
पर देख कर उनको ये लगता शायदा मुझसे अनजान थी,
शायद मंज़ूर-इ-खुदा, हालात यही थे,
मैं भी यूं खामोश रहा,
देख कर उनको खुश होता था, यादों में मदहोश रहा,
सपनों की दुनिया में जी कर, खुद ही में बे-होश रहा,
उसके झूठे वाडे सुनकर, गुप-चुप मैं खामोश रहा...
Sunday, September 19, 2010
लबों पर आज उनका नाम आ गया...
प्यासे के सामने जैसे जाम आ गया,
डोले कदम तो गिरे उनकी बाहों में,
आज ये नशा ही हमारे काम आ गया...
Thursday, September 16, 2010
Story of NOTHING...
Something, something, something, something,
Always think for something-something,
Try to learn some new thing-new thing,
But did not found anything-anything,
Thought to put some new thing-new thing,
That turns my way to nothing-nothing,
Finally decide what would I going to texting,
But did not found anything-anything,
Always thought to write on something,
Looking and seeking for something-something,
But finally found nothing-nothing,
So, I decide to write on nothing,
The next moment I found something-something,
I put some words on NOTHING-NOTHING,
And here is my story on NOTHING-NOTHING,
When you try to learn a new thing,
Seek behind of something-something,
I hope you found a new thing-new thing,
Here is my story on NOTHING-NOTHING…
Monday, September 13, 2010
नज़रों से नज़रें मिली, क़त्ल-इ-आम हो गया...
चेहरा चमक रहा था, सुर्ख होंठों पर कातिल मुस्कान थी,
दिल मेरा तड़प रहा था, पर लगता वो अनजान थी,
दो दिल तड़प रहे थे, हाल-इ-दिल बताने को,
दिल में हलचल मची थी, हाल-इ-दिल सुनाने को,
पर वो न बोले एक लफ्ज भी, हम भी न कह पाए वो बात,
बस देख उनको मुस्काते रहे, दिल में रख ली वो बात,
देखा मुड़कर मुझको जाते-जाते, आँखों का दीदार हुआ,
नज़रें उनकी झुकी, और दीवाना यार हुआ...
Saturday, September 11, 2010
क्या इतनी बड़ी खता थी, की गोया बात को न वो आया है...
राह तनहा सी क्यूं लगती, दर्द सा क्यूं छाया है,
रात भर सोचा किये, जाग उल्लू की तरह,
क्या इतनी बड़ी खता थी, की गोया बात को न वो आया है,
जान अपनी थी खता, दिल को यूं समझाया है,
दर्द अपना दिल में रख कर, दिल ही दिल रो आया मैं,
रात भर सोचा किये, जाग उल्लू की तरह,
क्या इतनी बड़ी खता थी, की गोया बात को न वो आया है...
Tuesday, September 7, 2010
रिश्तों की भी क्या खूब कहानी है...
कुछ अपनी, तो कुछ उनकी ज़बानी है,
जब-जब सोचा, दिल की हसरत बताने की,
तब-तब आवाज़ न जानी, पहचानी उनकी,
दिन भर सोचा करते है, रात फिर सुहानी होगी,
रोशन होंगे नए चिराग, फिर नयी कहानी होगी,
न दिल में दर्द होगा, न अश्कों की निशानी होगी,
पर फिर वही कहानी हुई,
आँखों में नमी, दिल में दर्द की निशानी होगी,
अश्क फिर भी बहेंगे, फिर गम की वही कहानी होगी...
Monday, August 30, 2010
गम इतना दिया की जीना सिखा दिया...
रोते थे, छुप-छुप कर अँधेरे कोनो में,
गम को भी इस कदर छुपाना सिखा गया कोई,
हम तो फिरते थे, राहों में आवारा,
न था गम, न था ख़ुशी का सहारा,
न घुटते थे अंदर-अंदर, न गम छुपा पाते थे,
बस खुद दर्द सहकर, दूसरों को मुस्कुराते थे,
पर न जाने रब के दिल में क्या सूझी, एक छोटा सा दिल बना दिया,
गम इतना दिया की जीना सिखा दिया...
Tuesday, August 24, 2010
आज सुबह जा कर मयखाने...
मिलते थे जहाँ जाम से जाम, वो मयखाना छोड़ दिया,
सोचा किये, अब ना पियेंगे इस पैमाने के बाद,
पर साकी ने जो जाम दिया, फिर मयखाना जोड़ दिया...
Tuesday, August 17, 2010
मिली हमे आज़ादी...
लोग गुम-सुम चुप-चाप है, अंदर घमासान सा क्यूँ है,
आज एक शक्श मुझसा, परेशान सा क्यूँ है,
रात जश्न-इ-आज़ादी का, मानते फिरें इस कदर,
सोचा किये कल सुबह सुहानी होगी,
रोशन होंगे नए चिराग, फिर नयी कहानी होगी,
पर सुबह पहले सी थी, एक नयी मुस्कान लिए,
रोशन हुआ दिल में चिराग, फिर नयी पहचान लिए,
कुछ कर-गुजरने की चाह ने फिर मुझे झकझोर दिया,
रोशन फिर एक नए चिराग ने, एक नया उपहार दिया,
आज गुलामी की जंजीरों से फिर मैं आज़ाद हुआ,
आज पुरानी ज़िन्दगी में फिर नया परवान चढ़ा,
ठान लिया मन में, फिर कुछ कर दिखाना है,
जश्न-इ-आज़ादी का दीप, मुझको फिर जलना है,
जो खो गया कहीं राहों में, खो दी जिसने पहचान कहीं,
उस भारत भूमि को, फिर से मान दिलाना है,
जश्न-इ-आज़ादी का फिर से दीप जलना है...
Saturday, August 14, 2010
इन शोख-शोख दो नैनों से...
इस शोख अदा के मद-मस्त दीवाने, हम तो बहुत पहले से थे,
वो जाम गुलाबी होंठों से, हर रोज़ पिया कर लेते थे,
अब जाम मिला जो हांथों में, उस मैय को खोजा करते थे...
Thursday, July 29, 2010
तल्लाफुज़ ना था साफ़...
एक रोज़ सोचा, कर देंगे, उनसे हाल-इ-दिल बयान,
पर सामने उनको पा कर, होंठ खुद-बी-खुद सिल जाते थे...
हिम्मत करके सोचा, कर देंगे इसहार-इ-दिल,
दिल को समझाया, ना तड़पने देंगे तुझको एक पल भी,
जब सामने उनके जा कर, हुए खड़े हम यूँ इस कदर,
शोख नज़रों से वो जो मुस्कुराये, देख नज़रों को, हम सब भूल जाते थे...
Saturday, July 3, 2010
कोई तो आ कर लफ्ज़ लिखे...
न लिखे हाजार, बस चार लिखे,
कुछ मीठा, खट्टा प्यार लिखे,
आज पुरानी यादों ने...
जागती आँखों देखा जिनको, उनको सपना कर दिया,
याद पुरानी ताज़ा थी, ज़ख्मो में बेहाल सी,
छु के अपने ज़ख्मो को, उनको जिंदा कर दिया
दर्द से सहमा बैठा था, यादों ने झकझोर दिया,
शब्द का मिलना मुश्किल था, आंशुओ को बटोर लिया,
भीग कर मनं को दर्द दिया, अश्को ने मुह मोड़ लिया,
आज पुरानी यादों ने, मुझसे रिश्ता तोड़ दिया...
याद तो फिर भी ताज़ा थी, कल की बातों के जैसे,
रोज़ सवेरे लगता था, एक नयी सुबह हो ये जैसे,
रात भिगोके मनं मेरा, मुझसे रिश्ता जोड़ लिया,
आज पुरानी यादों ने, मुझसे रिश्ता तोड़ दिया...
Tuesday, June 15, 2010
आज खुद को मोड़ पर...
चार दिन जीवन के गुज़रे, थे सवेरे कल मेरे,
महका आलम, था सवेरे, जीवन बगिया में मेरे,
महके फूलों का शामियाना, सज रहा था बाग़ में,
मैं निहारे देखता था, एक नए अंदाज़ में,
अब नदारात है वहां से, बगिया, महका वो आलम,
बंज़रों सी पड़ी है, सूखी धरती साफ़ सी,
मिटटी की परत सी, जर-जर मेरी काया है,
राह उलझी सी हुई है, दिल मेरा घबराया है,
आज खुद को मोड़ पर, फिर अकेला पाया है...
Friday, June 11, 2010
डर से सहमा...
धडकनों की रफ़्तार तेज़, दिल में हलचलें भी तेज़ है,
किस से डर लगता है, ये तो लगता अपना साया है...
सुबह जागे थे सवेरे, मुस्कुराते से हुए,
मासूम सा था चेहरा, साथ मुस्कान के मेरे,
जाने ज़िन्दगी के मन में आज, क्या नयी हलचल मची
डर से सहमा जकड़ा मैंने, आज खुद को पाया है...
Tuesday, June 1, 2010
जाने ज़िन्दगी...
दूर अन्धकार में, बूँद सी रौशनी की लौ तिमतिमती है,
रास्ता लगता है मुश्किल, इसलिए छोड़ चला हूँ मैं,
पर न जाने कौनसी बात, अन्दर ही अन्दर कचोटती है मुझे,
डर लगता है अब, काँटों पर चलने में,
इसलिए राह-इ-मुश्किल सब छोड़ चला हूँ मैं...
लिखने से कभी किसी ने, न पेट मेरा भर दिया...
न लिखता अगर तो क्या करता, सोचा करता हूँ रात दिन,
लिखने से कभी किसी ने, न पेट मेरा भर दिया,
तारीफ़ बा-मुस्तेद मिली हर दरवाजे मुझे,
पर रोटी की भूख ने, बे-हाल मुझको कर दिया,
न लिखता अगर तो क्या करता, सोचा करता हूँ रात दिन,
लिखने से कभी किसी ने, न पेट मेरा भर दिया...
Monday, May 24, 2010
लफ़्ज़ों के जाल ने...
मैं ये बैठा सोच में, जाने क्या ये कर दिया,
क्या अलफ़ाज़ लाऊ मैं, हाल-इ-दिल बताने को,
बाँध कर लफ़्ज़ों में मुझको, यूँ बे-हाल कर दिया...
कलम भी न उठती अब तो, हाल-इ-दिल बताने को,
दर्द ही दर्द भरा है, ज़माने से छुपाने को,
मैं ये बैठा सोच में, जाने क्या ये कर दिया,
लफ़्ज़ों के जाल ने, ऐसा ताना-बना बुन दिया...
Tuesday, May 18, 2010
लफ़्ज़ों के दायरे में, मैं न आने पाउँगा...
पूरे शब्दकोश में, मैं ही मैं समां जाऊंगा,
जानना थोड़ा है मुश्किल, पर समझ आ जाऊंगा,
लफ़्ज़ों के दायरे में, मैं न आने पाउँगा...
लफ्ज़ कहाँ मिलते है...
शेर-ओ-शायरी के साज़ कहाँ मिलते है,
ये तो दिल से कह देते है ग़ालिब,
वरना लिखते वक़्त अलफ़ाज़ कहाँ मिलते है....
माँ...
सोचता हूँ, हूँ अकेला, साथ फिर भी कर लिया,
आँचल की छओं से, दामन मेरा भर दिया,
लफ्ज़ बोलने न था पाया, मैं यूँ बैठा सोच में,
स्नेह से अपने, मेरा संसार सारा भर दिया,
सोचता हूँ, क़र्ज़ उसका कैसे चुकाऊंगा माँ मेरी,
जिसने खुशियों से, संसार मेरा भर दिया.....
उम्र के अब इस पड़ाव में, खोजता हूँ मैं उससे,
अन्धकार की राहों में, रोशनी की प्यास सी, चाहता हूँ मैं जिससे,
सोचता हूँ, क़र्ज़ उसका कैसे चुकाऊंगा माँ मेरी,
जिसने खुशियों से, संसार मेरा भर दिया....
टिक-टिक करते घड़ी के कांटे...
घड़ी परन्तु रुक भी जाये, वक़्त न रुकने पायेगा,
देख अमानुष काल की गड़ना, वक़्त तो फिर भी आयेगा,
जीवन तो है वक़्त का पहिया, ये तो बढता जाइएगा,
न रुका है, न रुकेगा, वक़्त तो पानी-धरा है,
समझ के करजा काज को प्यारे, वक़्त न फिर ये आयेगा...
नज़रें मिली कुछ इस कदर...
घायल दिल मेरा हुआ, आशिक यार हो गया...
सोचा आज कह देंगे ज़माने से, हाल-इ-दिल अपना,
पर देखते ही देखते, उनसे प्यार हो गया....
गौर-तलब था हाल-इ-दिल अपना, तबीयत मुसहरी-यार हो गया ज़माना,
नज़रे मिली कुछ इस कदर, दिल बे-करार हो गया...
बन के शायर लिखता मैं अजनबी, हाल-इ-दिल यार खो गया,
सोचा शिकायत करूँगा खुदा से, पर खुदा भी उनका यार हो गया....
खता की थी...
वक़्त न था मुनासिब, उनको ये समझाना था,
पर देखते ही देखते, बे-वक़्त यार हो गए,
अनजाने में उनके, गुनाहगार हो गए....
सोचा लेंगे मन, कह हाल-इ-दिल अपना,
राज़-इ-उल्फत, नज़्म-ओ-बयान,
पर जलती शमा से दीदार हो गए,
वो तो रूठ-इ-यार हो गए...
पूछा करते है वो हमसे...
हाँथ में कलम, दिल में सवाल क्या है,
क्यूँ नहीं पिरो दिया करते, लफ़्ज़ों को कागज़ पर,
यूँ न बैठो मुफलिस, बताओ दिल-इ-सवाल क्या है...
आज मुद्दत बाद मैंने फिर कलम उठाया है...
आज मुद्दत बाद मेरे जी को लिखने आया है,
सोचता हूँ क्या लिखूं, दिल-इ-नादा बता,
जानती दुनिया ये सब है, क्या जो छुपने पाया है...
सुर्ख शब् की लालिमा में, रात अंधियारे की तरह,
खो गया हूँ मैं यहाँ,
तेज़ रौशनी सा खुद को, आज जलते पाया है,
आज मुद्दत बाद मैं फिर कलम उठाया है...