Wednesday, August 31, 2011

रात ऐसे गुज़रेगी...


रात ऐसे गुज़रेगी, मैंने सोचा न था,
दिल पर बात ऐसे गुज़रेगी, मैंने सोचा न था,
ऐसे होगा मेरी ख्वाहिशों का क़त्ल, मैंने सोचा न था,
ऐसा होगा मेरे दर्द का इम्तेहान, मैंने सोचा न था,
झगड़ा लाज़मी न था करना, फिर भी कर बैठे,
आंसुओं का सबब लाज़मी न था, फिर भी बिखर बैठे,
ऐसे होगा मेरे अरमानों का बलात्कार, मैंने सोचा न था,
ऐसे होगा मेरे दर्द का इम्तेहान, मैंने सोचा न था,
रात कुछ यूँ गुज़रेगी, मैंने सोचा न था,
दिल पर ज़ख्मों के साथ ऐसे गुज़रेगी, मैंने सोचा न था…

आदत अच्छी नहीं...

ये चाहत कुछ अच्छी नहीं,
दर्द की आहट कुछ अच्छी नहीं,
बस दिल तड़पता रहता है अंदर-अंदर,
यूँ जज्बातों से खेलने की आदत अच्छी नहीं…
चाहतों का, दर्द क्यूँ बढ़ जाता है,
ख्वाहिशों का, मर्ज़ क्यूँ बढ़ जाता है,
दिल को बस एक आस पर ज़िन्दा रख लेते है लोग,
क्यूँ ये चाहत का असर पड़ जाता है,
यूँ दर्द की आदत अच्छी नहीं,
ऐसी चाहत अच्छी नहीं…

Tuesday, August 30, 2011

ख़्याल-इ-दिल, सवाल-इ-दिल…

क्यूँ दिन नहीं गुज़रता, क्यूँ रात नहीं होती,
क्यूँ आँखों-आँखों में, तुझसे बात नहीं होती,
क्यूँ, अब मेरी हर बात का सबब तुझसे बन बैठा है,
क्यूँ, अब मेरी आँखों में यूँ, रोज़ बरसात होती है,
क्यूँ दिन नहीं गुज़रता, क्यूँ रात नहीं होती,
क्यूँ आँखों-आँखों में, तुझसे बात नहीं होती…

क्यूँ खाली है राहें, क्यूँ सर्द हवाओं का साथ है,
क्यूँ दर्द घुलता रहता है दिलों में, क्यूँ अच्छी न लगती हर बात है,
क्यूँ दिल में उसका ख़्याल रहता है,
क्यूँ हाल-इ-दिल सवाल रहता है,
क्यूँ दर्द की सिरहन उठती है दिलों में,
क्यूँ राहत का न साथ है,
क्यूँ खाली है राहें, क्यूँ सर्द हवाओं का साथ है,
दर्द घुलता रहता है दिलों में, क्यूँ अच्छी न लगती कोई बात है…

यूँ, दिल लगाना अच्छा नहीं,
यूँ, बेफिजूल मुस्कुराना अच्छा नहीं,
यूँ, दर्द में बद से बदतर हो जाना अच्छा नहीं,
यूँ, शोलों पर नंगे पाव चलते जाना अच्छा नहीं,
यह इश्क का खुमार, बन मेरे दर्द का सबब,
चेहरे पर शिकन, आँखों में नमी की झलक,
आईने में यूँ खुद को देख, दर्द से लिपट जाना अच्छा नहीं,
यूँ, बेफिजूल मुस्कुराना अच्छा नहीं,
ये दिल लगाना अच्छा नहीं…

कभी, खुद से यूँ बात न होती,
तो लफ़्ज़ों की यूँ बरसात न होती,
होती मेरी राहें भी तनहा,
न सूखे पत्तों की सौगात होती,
तड़पती रहती मेरी आहें अंदर,
न, नए सूरज की आस होती,
तू न होता, तेरी जुत्सुजू न होती,
न यूँ लफ़्ज़ों की बरसात होती,
मेरी राहें भी तनहा होती,
जो यूँ खुद से बात न होती…

मुबारक हो ईद…

रोज़े की नमाज़, शिरी, सेवियां और ख़ीर,
तीस दिन का रोज़ा, बदली तकदीर,
अल्लाह के बन्दे, अल्लाह की मेहेर,
बच्चों को इदी, बड़ों को मुबारक हो ईद…

लफ्ज़ हर एक पाक है...

लफ्ज़ हर एक पाक है, उर्स की रात की तरह,
जज़्ब हर बा-नोश है, गुलाबी बाग़ की तरह,
मेरे लफ़्ज़ों को बेमतलब न बोलो काफिर,
यह तो इबादत है उस अल्लाह पाक की तरह,
लिख यूँ ही देता हूँ, कुछ न कुछ खुद-ब-खुद,
पर दिल से हर लफ्ज़ जुड़ा है, एक नए साज़ की तरह,
मेरे लफ़्ज़ों को बेमतलब न समझो काफिर,
यह तो इबादत है उस अल्लाह पाक की तरह…

आज दूरी बहुत ज्यादा है...

आज खुद के अरमानों को पाने की कोशिश में हारा इंसान,
बचपन की यादों के आगे, बेबस और नकारा इंसान,
कल छोटी नेकरों में, भविष्य की ओज लिए तकती आँखों में,
आज सपनों की लहर न वो ताज़ा है, आज दूरी बहुत ज्यादा है,
वो चव्वनी की टॉफी, वो पतंग के कन्ने,
आज गले में है, बस टाई के फंदे,
वो किताबों के बोझ से झुकती कमर,
आज फाइलों में, परिवार का बोझ ज्यादा है,
क्यूँ मुझमे बचपन की यादें ताज़ा है, आज दूरी बहुत ज्यादा है…

Monday, August 29, 2011

चेहरों के पीछे...

चेहरों के पीछे कई चेहरे छुपे होते है,
नज़रों के घाव क्यूँ गहरे होते है,
काश! हम भी झूठे चेहरे बनाना सीख लेते,
तो न दिल पर ज़ख्म इतने गहरे होते…
चेहरों की भाषा क्यूँ पढ़ नहीं पाती आँखे,
क्यूँ हर चेहरे को अपना मान लेती है आँखे,
काश! हम भी समझ लेते झूठे चेहरों के खेल,
तो न दिल पर यूँ ज़ख्म इतने गहरे होते,
चेहरों के पीछे कई चेहरे छुपे होते है,
नज़रों के घाव क्यूँ गहरे होते है…

Sunday, August 28, 2011

मेरे लफ्ज़ मुझसे ही थे...

मेरे लफ्ज़ मुझसे ही थे, किसी ग़ैर से नहीं,
मेरी यादों के साए मुझसे ही थे, कोई ग़ैर तो नहीं,
लफ़्ज़ों को यूँ ही पिरों देता हूँ, शायद खुद के लिए ही कहीं,
बस मेरे लफ़्ज़ों में तेरी ही यादों के साए है, कोई ग़ैर के नहीं,
मेरे लफ्ज़ मुझसे ही थे, किसी ग़ैर से नहीं…
अगर तू न होती तो लिखने की आरज़ू न होती,
अगर तू न होती तो दिल से गुफ्तुगू न होती,
मर जाता मेरे अन्दर का इंसान, दब कर ज़माने के जुल्मों-सितम से,
अगर तुझसे जोड़े लफ्ज़ न होते, तो यूँ लिखने की आरज़ू न होती,
अगर तू न होती तो लिखने की आरज़ू न होती…

अगर यह रात न होती...

अगर यह रात न होती तो ख़्वाबों में तुझसे बात न होती,
न होती सरसराहट दिलों में, न यूँ प्यार की बरसात होती,
कह देता तुझसे मिल कर मैं, हाल-इ-दिल हसरत अपने दिल की,
अगर तू न होती तो तकिये पर रातों को यूँ बरसात न होती,
अगर यह रात न होती तो ख़्वाबों में तुझसे बात न होती…

Thursday, August 25, 2011

कोई आईना दिखा गया...

कल रात कोई आईना दिखा गया,
सबके जुदा होने की वजह बता गया,
रिश्ते बाँधने की कोशिश न की थी कभी,
मुठ्ठी से गिरती रेत की, गिरने की वजह बता गया,
जानता मैं भी था, हाल-इ-दिल अपना,
पर आज चेहरे से कोई धूल हटा गया,
सबके जुदा होने की वजह बता गया,
कल रात कोई मुझे  आईना दिखा गया…

क्यूँ रिश्ते न इतने पक्के होते है...

क्यूँ रिश्ते न इतने पक्के होते है,
धागों के जैसे क्यूँ कच्चे होते है,
थोड़ी सी दूरियां बढ़ते ही,
एक खिचाव सा बनते ही,
सब टूट जाता है, 
हर लम्हा यादों का रूठ जाता है,
धागों की तरह हर चेहरा भी आँखों से रूठ जाता है,
क्यूँ रिश्ते न इतने पक्के होते है,
धागों के जैसे क्यूँ कच्चे होते है…

Wednesday, August 24, 2011

मैंने सोचा न था…

मेरी, चाहतों का दाएरा इतना बड़ा होगा, मैंने सोचा न था,
मेरी, ख्वाहिशों का कारवां इतना छोटा होगा, मैंने सोचा न था,
होगा इतना छोटा मेरी खुशियों का सिलसिला , मैंने सोचा न था,
होगा इतना खोटा मेरे जज़्बातों का काफिला , मैंने सोचा न था,
मेरी, चाहतों का दाएरा इतना बड़ा होगा, मैंने सोचा न था…

ये काया अच्छी नहीं...

ये काया अच्छी नहीं,
कुछ पाया अच्छा नहीं,
उस पर इस अच्छे दिल ने, सब चोपट कर दिया,
जो चाहा तुझको पा लूं तो तेरी चाहत ने धोखा कर दिया,
सोचा कुछ इज्ज़त कमा लूं तो मेरे लफ़्ज़ों  ने धोखा कर दिया,
सोचा कुछ नींद में सपने सजा लूं तो रातों  ने धोखा कर दिया,
सोचा कुछ वक़्त पा लूं तो लम्हों ने धोखा कर दिया,
सोचा की तुझको पा लूं, तेरी चाहत ने धोखा कर दिया,
सोचा कुछ इज्ज़त कमा लूं, मेरे लफ़्ज़ों ने धोखा कर दिया,
ये काया अच्छी नहीं, कुछ पाया अच्छा नहीं,
उस पर इस अच्छे दिल ने, सब चोपट कर दिया…

आज गहन सवालों में उलझा है दिल…

आज गहन ख्यालों में उलझा है दिल,
क्यूँ यूँ सवालों में उलझा है दिल,
नोचने लगी है यादें, कचोटती मुझे अंदर-अंदर,
आज क्यूँ ऐसे ख्यालों में उलझा है दिल…
सवालों की झड़ी सी लगी है अंदर,
साँसों में भी दर्द की सिरहन है,
पत्थर रुपी काया में दिल कहाँ से आया,
कुछ ऐसे ही अनसुलझे ख्यालों में उलझा है दिल,
आज गहन सवालों में उलझा है दिल…

क्यूँ दिल नहीं लगता...

क्यूँ दिल नहीं लगता उसके बिन, क्यूँ याद सताती रहती है,
क्यूँ मेरे हर लफ़्ज़ों में, उसकी ही कहानी रहती है,
एक रोज़ बता कर मैं उसको, कह दो दिल की हसरत,
क्यूँ मेरे उन लफ़्ज़ों में, मेरी,  न आवाज़ सुनाई देती है,
क्यूँ दिल नहीं लगता उसके बिन, क्यूँ याद सताती रहती है…

Monday, August 22, 2011

लिखने की आरज़ू ले बैठोगे तो...

लिखने की आरज़ू ले बैठोगे तो यूँ ही पछताओगे,
लफ्ज़ न ब-रोज़ मिलेंगे, मुफलिसी से टकराओगे,
कुछ हिमाकत कर लिख भी लो कभी, ख्वाब यूँ अधूरे से,
कुछ चाहत कर कह भी दो कभी, साज़ न वो पूरे से,
खुद अपने ही रास्ते में, लफ्ज़ न यूँ वो पाओगे,
लफ्ज़ न ब-रोज़ मिलेंगे, मुफलिसी से टकराओगे,
लिखने की आरज़ू ले बैठोगे तो यूँ ही पछताओगे...

आज क्यूँ अचानक...

आज उनकी याद क्यूँ अचानक आ गयी,
चेहरों पर मुस्कराहट थी, फिर क्यूँ गम की घटा छा गयी,
यादें क्यूँ ताज़ा सी थी, बात कल की तरह,
आहें क्यूँ ज्यादा सी थी, रात कल की तरह,
जाने क्यूँ फिर गम की घटा छा गयी,
आज अचानक क्यूँ उनकी याद आ गयी...
रिश्तें क्यूँ कच्चे-पक्के से हो गए,
राहों में तन्हा हम खो गए,
क्या लोगों से जुदा हो गए,
या फिर लोग ही मुझसे जुदा हो गए,
दिल खोया क्यूँ गहन ख्यालों में,
यादें क्यूँ उलझी यूँ ही सवालों में,
जाने क्यूँ यूँ गम की घटा छा गयी,
आज क्यूँ अचानक उनकी याद आ गयी...

Tuesday, August 16, 2011

क्यूँ लफ्ज़ न मेरे पास...

क्यूँ लिखने को बेताब है दिल, क्यूँ लफ्ज़ न मेरे पास,
यूँ ऐसे क्यूँ बेताब है दिल, कलम तू न हो उदास,
क्यूँ दिल इतने सवाल उठेंगे, यूँ हालत पर बेहाल उठेंगे,
यूँ उलझे-उलझे ख्याल उठेंगे, क्यूँ इतने दिल सवाल उठेंगे,
क्या लफ्ज़ लाऊं खोज मैं, क्या मैं दूं जवाब,
यूँ ऐसे क्यूँ बेताब है दिल, कलम तू न हो उदास,
क्यूँ लिखने को बेताब है दिल, क्यूँ लफ्ज़ न मेरे पास...

आज, लिखने की आरज़ू ले बैठे है हम...

आज, लिखने की आरज़ू ले बैठे है हम, फिर लफ्ज़ क्यूँ मुझसे यूँ नाराज़ है,
सोचते कुछ और है हाल-इ-दिल हसरत बताने की, जुबान का कुछ और ही ख्याल है,
लफ्जों की हिमाकत यूँ होगी, मैंने सोचा न था,
ख्वाहिशों की चाहत यूँ होगी, मैंने सोचा न था,
न सोचा था, कि चाहतें यूँ मचलेंगी अंदर-अंदर,
न सोचा था, कि ख्वाहिशें क्यूँ पिघलेंगी अंदर-अंदर,
फिर आज क्यूँ लिखने की आरज़ू ले बैठे है हम और लफ्ज़ यूँ मुझसे नाराज़ है,
सोचते कुछ और है हाल-इ-दिल हसरत बताने की, जुबान का कुछ और ही ख्याल है...

Thursday, August 11, 2011

क्यूँ दिल...

क्यूँ दिल जीने-मरने की कसमें खाने को तैयार रहता है,
क्यूँ दिल किसी के लिए हर पल इतना बेकरार रहता है,
हर वक़्त तकती रहती है निगाहें किसी का रास्ता,
क्यूँ ये सांसें किसी के लिए इतनी बेकरार रहती है...
दिल के ख़्यालों का काफिला यूँ निकलेगा, सोचा न था,
ख़्वाबों का बाशिंदा कोई अपना मिलेगा, सोचा न था,
यूँ तकती रहेंगी निगाहें किसी का रास्ता, सोचा न था,
यूँ जागेंगी रंगीनी ख्वाहिशें, सोचा न था...

Wednesday, August 10, 2011

क्यूँ कभी बनते, कभी बिगड़ते बादल...

क्यूँ कभी बनते, कभी बिगड़ते बादल,
क्यूँ चाहतों के पंख लिए सवारते बादल,
क्यूँ रंगों की बरसात लिए, बरसते नहीं मुझ पर बादल,
क्यूँ दिलों के भीगने की हसरतों को न समझते बादल,
क्यूँ बारिशें मद्धम सी है, क्यूँ चाहतें ये कम सी है,
क्यूँ बादलों के गुच्छे बरसते नहीं मुझ पर, क्यूँ बरसने की चाहत ये कम सी है...

Wednesday, August 3, 2011

कुछ सवाल...

कुछ सवाल दिल में दर्द दे जाते है,
कुछ ख़्याल बे-फिकरी, चेहरे पर शिकन दे जाते है,
क्या जवाब खोजू, हाल-इ-दिल सवालों का,
यह तुझे पाने और खोने की आरज़ू में, तबाह हो जाते है,
बे-फिकरी यूँ न थी, हाल-इ-दिल मेरी,
दिल की तबियत ऐसी न, साज़-इ-दिल मेरी,
क्यूँ ऐसे जवाब खोजू, जो दर्द दे जाते है,
यह तो तुझे पाने और खोने की आरज़ू में, तबाह हो जाते है...

अब दिल में ख़्याल अच्छे आते है...

अब दिल में ख़्याल अच्छे आते है,
कुछ दिल में सवाल अच्छे आते है,
करने लगता हूँ जब खुद से तेरी बातें,
तो मिजाज़-इ-रंगत बदल जाती है,
यह अजीब सा रोग हो गया जाने मुझे,
क्यूँ इतने ख़्याल अच्छे आते है,
दिन में सोचता हूँ, रात की बातें,
और, यूँ दिल में सवाल अच्छे आते है...

हँसते हुए चेहरे बना लेता हूँ...

कुछ दर्द दिल में होता है, हँसते हुआ चेहरा बना लेता हूँ,
धीरे से, झूठे से हँसकर, दर्द दिल में दबा लेता हूँ,
झूठे चेहरे पर ही सही, लोग मुस्कुरा तो लेते है, 
आँखों से बहते अश्क, यूँ ही छुपा लेता हूँ,
मिलता हूँ जब भी तुझसे, जाने क्यूँ पलके झुका लेता हूँ,
कहीं दर्द यह झलक न जाए, तुझसे, नज़रें चुरा लेता हूँ,
यूँ, धीरे से, झूठे से हँसकर, दर्द दिल में दबा लेता हूँ,
कुछ दर्द दिल में होता है, हँसते हुए चेहरे बना लेता हूँ...

ज़िन्दगी की भी क्या खूब कहानी है..

ज़िन्दगी की भी क्या खूब कहानी है,
कुछ आँखे नम है, कुछ उनकी निशानी है,
लफ्ज़ मेरे, मुझसे ही थे, दर्द बस तेरा लिए,
साज़-दिल मेरे ही थे, जिक्र बस तेरा लिए,
था मुसाफिर, एक अजनबी सा, रुक गया तेरे लिए,
दो पल मुस्कुरा दिया, चल दिया यादें लिए,
यूँ सँभालने न था पाया, होश, जब तुझमे खो दिया,
यूँ सँभालने न था पाया, साथ, जब तेरा खो दिया,
यह जो कागज़ पर उकेरे है, मेरे दर्द की निशानी है,
आज, कुछ आँखे नम है, कुछ उनकी निशानी है,
ज़िन्दगी की भी क्या खूब कहानी है..

बरसो रे! काले मेघो, अब तो बरस जाओ...

ए ! काले-काले बादलों, अब तो बरस जाओ,
प्यासी है धरती, अब तो न तड़पाओ,
प्यासा है मेरा मन, भीग जाने के लिए,
तरसे है ये नयन, तुझको पाने के लिए,
अब तो आ कर यह प्यास बुझाओ,
बरसो रे! काले मेघो, अब तो बरस जाओ...
सूखी है धरती, न गीला है अम्बर,
प्यासी है ऋतुये, जैसे हो मैं नर,
अब तो सावन की घटा लाओ,
बरसो रे! काले मेघो, अब तो बरस जाओ...

जाने क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में...

क्यूँ इतने ख़्याल उठते है दिल में,
क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में,
यह बस इतेफ़ाक है या मेरे पागलपन का सबब,
जाने कैसे-कैसा सवाल चलते है दिल में...
यूँ तो सवालों के सिलसिले पहले भी थे, अब की तरह,
यूँ तो ख्यालों के काफिले पहले भी थे, अब की तरह,
बस आज कुछ, कुछ अक्स का नाम-ओ-निशाँ मात्र है,
कुछ ऐसे ही ख़्याल चलते थे ज़ेहन में,
तब तू न था मेरी परेशानियों का सबब,
अब तू ही है हर कारिस्तानियों का सबब,
तब तू न था मेरी परेशानियों का सबब, दुनिया-जहाँ की सौ बातें थी,
अब तू ही है हर तरफ, सुल्झानो और उलझनों की सौगातें है,
यूँ तो सवालों के सिलसिले पहले भी थे, अब की तरह,
यूँ तो ख़्यालों के काफिले तब भी थे, अब की तरह,
फिर आज क्यूँ नए ख़्याल उठते है दिल में,
जाने क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में...

Tuesday, August 2, 2011

तभी यादें ताज़ा है...

बचपन के दिन इतने ख़ास थे, तभी यादें ताज़ा है,
आज तो बस अंधी दौड़ है, दूरी बहुत ज्यादा है,
वक़्त यूँ गुज़र जायेगा मेरा, यह कभी सोचा न था,
लम्हा यूँ ठहर न जायेगा मेरा, यह कभी सोचा न था,
वो छोटी नेकरों के दिन, चवन्नी की टॉफी याद है तो यादें ताज़ा है,
आज तो बस अंधी दौड़ है और दूरी बहुत ज्यादा है...

अब पुराने लगने लगे...

यह दोस्ती-यारी के किस्से, अब पुराने लगने लगे,
बचपन की यारी के हिस्से, अब याद आने लगे,
याद कर, रो लेते है, वो ज़माना पुराना,
बात कर, कह देते है, वो तराना पुराना,
वो छोटी नेकरों के, धुंधले दिन याद आने लगे,
बचपन की दोस्ती के हिस्से, अब याद आने लगे,
यह दोस्ती-यारी के किस्से, अब पुराने लगने लगे...

अगर सच यूँ कड़वा न होता...

कह देते साफ़-साफ़, अगर सच यूँ कड़वा न होता,
सह लेते दर्द-इ-दिल साथ-साथ, अगर सच यूँ कड़वा न होता,
सितारे किसके मिले है, हमारे-तुम्हारे, दिल यूँ साफ़ न कहता,
वाफाये किसकी मिली है, हमारी-तुम्हारी, दिल क्यूँ नहीं माफ़ कर देता,
सह लेते दर्द-इ-दिल साथ-साथ, अगर सच यूँ कड़वा न होता,
कह देते साफ़-साफ़, अगर सच यूँ कड़वा न होता...

एक अक्स सा...

आइना-इ-पाक मैंने साफ़ जो देखा, एक अक्स सा कहीं घर सा आ गया,
मैं तनहा सा देखता रहा, वो घर कर, दिल के कोनो पर छा गया,
मैं यूँ तनहा सोच में, जाने क्या मैं पा गया,
आज खुद को देख यूँ, जाने क्यूँ चकरा गया,
यह मैं था, मुझसे मैं, या लफ़्ज़ों का माया-जाल था,
दुर्लब मेरी काया थी, या नज्मो का कमाल था,
आज खुद को देख यूँ, जाने क्यूँ चकरा गया,
मैं यूँ तनहा सोच में, जाने क्या मैं पा गया,
आइना-इ-पाक मैंने साफ़ जो देखा, एक अक्स सा कहीं घर सा आ गया,
मैं तनहा सा देखता रहा, वो घर कर, दिल के कोनो पर छा गया...

शुक्रिया एहल-इ-नफ़ज़...

शुक्रिया एहल-इ-नफ़ज़, नाज़-इ-करम तेरा,
शायर मैं नहीं, बस लफ़्ज़ों का है बसेरा,
यूँ ही लिख देते है, हाल-इ-दिल हसरत, दर्द-इ-बयान,
यूँ ही कह देते है, दर्द-इ-दिल इबादत, नज़्म-ओ-बयान,
शायर मैं नहीं, बस लफ़्ज़ों का है बसेरा,
शुक्रिया एहल-इ-नफ़ज़, नाज़-इ-करम तेरा...

न सोचा था...

नोश-इ-नफीज़ लफ़्ज़ों की इतनी इनायत होगी, सोचा न था,
जोश-इ-गरीब की की इतनी किफ़ायत होगी, सोचा न था,
न सोचा था, ग़ालिब तेरे कूचे से दो फूल गिरेंगे,
न सोचा था, काबिज यह ज़ख्म-इ-नासूर बनेंगे,
न सोचा था, कि मेरे लफ़्ज़ों की इतनी इनायत होगी,
न सोचा था, मेरे दर्द की ऐसी नुमाइश होगी,
लफ़्ज़ों को उकेर बस, कागज़ यूँ गीला किये,
दर्द यूँ बिखेर बस, चेहरे को गीला किये,
न सोचा था, ग़ालिब तेरे कूचे से दो फूल गिरेंगे,
न सोचा था, काबिज यह ज़ख्म-इ-नासूर बनेंगे...

हम ही गुलज़ार बैठे है...

न सोचा था हमने कि सभी शायर-यार बैठे है,
हम तो सोचा किये, हम ही गुलज़ार बैठे है,
लफ़्ज़ों हुनर, तुमसे भी होगा, ये न सोचा किये,
नज़रों-करम तुमसे भी होगा, ये न सोचा किये,
न सोचा किये कि सभी शायर-यार बैठे है,
हम तो सोचा किये, हम ही गुलज़ार बैठे है...

अब तो ख़्वाबों से भी जुदा होने लगा...

पहले जज्बातों से, अब तो ख़्वाबों से भी जुदा होने लगा,
दिन भर सोचता रहता हूँ, जाने क्या मुझे होने लगा,
यादें क्यूँ तनहा सी होने लगी,
बातें क्यूँ तनहा सी होने लगी,
तकिये के सिरहाने भी गीले हो, क्यूँ जुदा होने लगे,
यादें क्यूँ दिल घर करने लगी, मुझसे क्यूँ जुदा होने लगी,
दिन भर सोचता रहता हूँ, जाने क्या मुझे होने लगा,
पहले जज्बातों से, अब तो ख़्वाबों से भी जुदा होने लगा...

Monday, August 1, 2011

झूठ और फरेब का...

झूठ और फरेब का एक और नया चेहरा सामने आया,
यादों में घिर गया उसकी, खुदको राहों में तनहा पाया,
मैं तनहा ही खुश था, दूर लम्बी राहों पर,
फिर क्यूँ न जाने, तेरा साया नज़र आया,
कुछ पल सुकून के, जो तेरे साथ गुज़रे,
कुछ पल हसीन से, जो तेरे साथ गुज़रे,
याद शायद हर पल रहेंगे मुझे,
मैं तनहा ही खुश था, दूर लम्बी राहों पर,
फिर क्यूँ न जाने, तेरा साया नज़र आया,
यादों से घिर गया उसकी, खुदको राहों में तनहा पाया,
झूठ और फरेब का और एक नया चेहरा सामने आया...

जैसे कोई गम पिए जा रहा हूँ...

लगता है जैसे गम पिए जा रहा हूँ,
तनहा तेरी यादों में जिए जा रहा हूँ,
आस और उम्मीद ने साथ छोड़ दिया हो जैसे,
क्यूँ ऐसी तनहा राहों पर चले जा रहा हूँ...
तेरी यादों का साया, ऐसे घिर आएगा कभी, सोचा न था,
तेरी झूटी बातों की छाया, ऐसे घिर आएँगी कभी, सोचा न था,
न सोचा था कभी, यह दिल कभी किसी के लिए रोयेगा,
न सोचा था कभी, यह दिल कभी किसी को खोएगा,
न सोचा था कभी, तेरी यादों का साया यूँ तड्पाएगा,
न सोचा था कभी, तेरी बातों का साया यूँ नज़र आएगा,
क्यूँ तनहा तेरी यादों में जिए जा रहा हूँ,
लगता है जैसे कोई गम पिए जा रहा हूँ...

अब न पीते है यारों...

अब न पीते है यारों, महफिलों में बैठ कर, 
अब तो जीते है यारों, बस यूँ ही जी कर,
हाल-इ-दिल ऐसा भी होगा कभी, यह सोचा न था,
साज़-इ-दिल ऐसा भी होगा कभी, यह सोचा न था,
कभी यूँ ही रंज के सहारे, जिया कर लेते थे, महफिलों में बैठ कर,
अब न पिया करते है यारों, महफिलों में बैठ कर,
अब तो जीते है यारों, बस यूँ ही जी कर...