लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Tuesday, August 2, 2011
हम ही गुलज़ार बैठे है...
न सोचा था हमने कि सभी शायर-यार बैठे है,
हम तो सोचा किये, हम ही गुलज़ार बैठे है,
लफ़्ज़ों हुनर, तुमसे भी होगा, ये न सोचा किये,
नज़रों-करम तुमसे भी होगा, ये न सोचा किये,
न सोचा किये कि सभी शायर-यार बैठे है,
हम तो सोचा किये, हम ही गुलज़ार बैठे है...
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