आइना-इ-पाक मैंने साफ़ जो देखा, एक अक्स सा कहीं घर सा आ गया,
मैं तनहा सा देखता रहा, वो घर कर, दिल के कोनो पर छा गया,
मैं यूँ तनहा सोच में, जाने क्या मैं पा गया,
आज खुद को देख यूँ, जाने क्यूँ चकरा गया,
यह मैं था, मुझसे मैं, या लफ़्ज़ों का माया-जाल था,
दुर्लब मेरी काया थी, या नज्मो का कमाल था,
आज खुद को देख यूँ, जाने क्यूँ चकरा गया,
मैं यूँ तनहा सोच में, जाने क्या मैं पा गया,
आइना-इ-पाक मैंने साफ़ जो देखा, एक अक्स सा कहीं घर सा आ गया,
मैं तनहा सा देखता रहा, वो घर कर, दिल के कोनो पर छा गया...
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