क्यूँ दिन नहीं गुज़रता, क्यूँ रात नहीं होती,
क्यूँ आँखों-आँखों में, तुझसे बात नहीं होती,
क्यूँ, अब मेरी हर बात का सबब तुझसे बन बैठा है,
क्यूँ, अब मेरी आँखों में यूँ, रोज़ बरसात होती है,
क्यूँ दिन नहीं गुज़रता, क्यूँ रात नहीं होती,
क्यूँ आँखों-आँखों में, तुझसे बात नहीं होती…
क्यूँ खाली है राहें, क्यूँ सर्द हवाओं का साथ है,
क्यूँ दर्द घुलता रहता है दिलों में, क्यूँ अच्छी न लगती हर बात है,
क्यूँ दिल में उसका ख़्याल रहता है,
क्यूँ हाल-इ-दिल सवाल रहता है,
क्यूँ दर्द की सिरहन उठती है दिलों में,
क्यूँ राहत का न साथ है,
क्यूँ खाली है राहें, क्यूँ सर्द हवाओं का साथ है,
दर्द घुलता रहता है दिलों में, क्यूँ अच्छी न लगती कोई बात है…
यूँ, दिल लगाना अच्छा नहीं,
यूँ, बेफिजूल मुस्कुराना अच्छा नहीं,
यूँ, दर्द में बद से बदतर हो जाना अच्छा नहीं,
यूँ, शोलों पर नंगे पाव चलते जाना अच्छा नहीं,
यह इश्क का खुमार, बन मेरे दर्द का सबब,
चेहरे पर शिकन, आँखों में नमी की झलक,
आईने में यूँ खुद को देख, दर्द से लिपट जाना अच्छा नहीं,
यूँ, बेफिजूल मुस्कुराना अच्छा नहीं,
ये दिल लगाना अच्छा नहीं…
कभी, खुद से यूँ बात न होती,
तो लफ़्ज़ों की यूँ बरसात न होती,
होती मेरी राहें भी तनहा,
न सूखे पत्तों की सौगात होती,
तड़पती रहती मेरी आहें अंदर,
न, नए सूरज की आस होती,
तू न होता, तेरी जुत्सुजू न होती,
न यूँ लफ़्ज़ों की बरसात होती,
मेरी राहें भी तनहा होती,
जो यूँ खुद से बात न होती…
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