Tuesday, August 2, 2011

न सोचा था...

नोश-इ-नफीज़ लफ़्ज़ों की इतनी इनायत होगी, सोचा न था,
जोश-इ-गरीब की की इतनी किफ़ायत होगी, सोचा न था,
न सोचा था, ग़ालिब तेरे कूचे से दो फूल गिरेंगे,
न सोचा था, काबिज यह ज़ख्म-इ-नासूर बनेंगे,
न सोचा था, कि मेरे लफ़्ज़ों की इतनी इनायत होगी,
न सोचा था, मेरे दर्द की ऐसी नुमाइश होगी,
लफ़्ज़ों को उकेर बस, कागज़ यूँ गीला किये,
दर्द यूँ बिखेर बस, चेहरे को गीला किये,
न सोचा था, ग़ालिब तेरे कूचे से दो फूल गिरेंगे,
न सोचा था, काबिज यह ज़ख्म-इ-नासूर बनेंगे...

No comments:

Post a Comment