Wednesday, August 10, 2011

क्यूँ कभी बनते, कभी बिगड़ते बादल...

क्यूँ कभी बनते, कभी बिगड़ते बादल,
क्यूँ चाहतों के पंख लिए सवारते बादल,
क्यूँ रंगों की बरसात लिए, बरसते नहीं मुझ पर बादल,
क्यूँ दिलों के भीगने की हसरतों को न समझते बादल,
क्यूँ बारिशें मद्धम सी है, क्यूँ चाहतें ये कम सी है,
क्यूँ बादलों के गुच्छे बरसते नहीं मुझ पर, क्यूँ बरसने की चाहत ये कम सी है...

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