Tuesday, August 30, 2011

आज दूरी बहुत ज्यादा है...

आज खुद के अरमानों को पाने की कोशिश में हारा इंसान,
बचपन की यादों के आगे, बेबस और नकारा इंसान,
कल छोटी नेकरों में, भविष्य की ओज लिए तकती आँखों में,
आज सपनों की लहर न वो ताज़ा है, आज दूरी बहुत ज्यादा है,
वो चव्वनी की टॉफी, वो पतंग के कन्ने,
आज गले में है, बस टाई के फंदे,
वो किताबों के बोझ से झुकती कमर,
आज फाइलों में, परिवार का बोझ ज्यादा है,
क्यूँ मुझमे बचपन की यादें ताज़ा है, आज दूरी बहुत ज्यादा है…

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