मेरे लफ्ज़ मुझसे ही थे, किसी ग़ैर से नहीं,
मेरी यादों के साए मुझसे ही थे, कोई ग़ैर तो नहीं,
लफ़्ज़ों को यूँ ही पिरों देता हूँ, शायद खुद के लिए ही कहीं,
बस मेरे लफ़्ज़ों में तेरी ही यादों के साए है, कोई ग़ैर के नहीं,
मेरे लफ्ज़ मुझसे ही थे, किसी ग़ैर से नहीं…
अगर तू न होती तो लिखने की आरज़ू न होती,
अगर तू न होती तो दिल से गुफ्तुगू न होती,
मर जाता मेरे अन्दर का इंसान, दब कर ज़माने के जुल्मों-सितम से,
अगर तुझसे जोड़े लफ्ज़ न होते, तो यूँ लिखने की आरज़ू न होती,
अगर तू न होती तो लिखने की आरज़ू न होती…
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