Wednesday, August 3, 2011

जाने क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में...

क्यूँ इतने ख़्याल उठते है दिल में,
क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में,
यह बस इतेफ़ाक है या मेरे पागलपन का सबब,
जाने कैसे-कैसा सवाल चलते है दिल में...
यूँ तो सवालों के सिलसिले पहले भी थे, अब की तरह,
यूँ तो ख्यालों के काफिले पहले भी थे, अब की तरह,
बस आज कुछ, कुछ अक्स का नाम-ओ-निशाँ मात्र है,
कुछ ऐसे ही ख़्याल चलते थे ज़ेहन में,
तब तू न था मेरी परेशानियों का सबब,
अब तू ही है हर कारिस्तानियों का सबब,
तब तू न था मेरी परेशानियों का सबब, दुनिया-जहाँ की सौ बातें थी,
अब तू ही है हर तरफ, सुल्झानो और उलझनों की सौगातें है,
यूँ तो सवालों के सिलसिले पहले भी थे, अब की तरह,
यूँ तो ख़्यालों के काफिले तब भी थे, अब की तरह,
फिर आज क्यूँ नए ख़्याल उठते है दिल में,
जाने क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में...

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