लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास, कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Friday, December 28, 2012
Wednesday, December 26, 2012
धुंध की सुबह...
धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तनी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः,
रुक गया आलम था सारा, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
धुंधले भी पड़ते थे चेहरे, सुबह भीगे राग में,
मैं अकेला चल रहा था, धुन में अपनी जाग के,
साथ बिखरे लफ्ज़ थे, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
ये जो धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तानी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः ।
कोई गुज़र गया पास से, यादों में झाँक के,
कह गया मुझसे, बढ़ो, अपनी याद से,
क्यूँ, थमे हुए हो, अब तक अपने आप में,
मैं अकेला चल रहा था, धुन में अपनी जाग के,
रुक गया आलम था सारा, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
धुंधले भी पड़ते थे चेहरे, सुबह भीगे राग में,
जो धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तानी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः ।।
Sunday, December 23, 2012
कहानी ये झूठी...
कहानी ये झूठी हमें सुनाई गयी है,
भड़की हुई चिंगारी बुझाई गयी है,
ये जो आग है जल रही सीनों में,
ये जो दर्द है इतना जीने में,
वो शमा यूँ बुझाई गयी है,
कहानी ये झूठी हमें सुनाई गयी है ।
डरता हूँ, कहीं यह आम न हो जाए,
हर औरत, कहीं बलात्कार के नाम न हो जाए,
कहीं मेरा बेटा का "बलात्कारी" नाम न हो जाए,
कल मेरी बहन-बेटी बदनाम न हो जाए,
डरता हूँ, कहीं ये आम न हो जाए,
ये जो आग है जल रही सीनों में,
जो दर्द है इतना जीने में,
वो शमा यूँ बुझाई गयी है,
कहानी ये झूठी हमें सुनाई गयी है ।।
Wednesday, December 19, 2012
धिक्कार है...
धिक्कार है, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है,
जहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जहाँ अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है,
जहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जहाँ अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।
आदिम और शैतान में बस फर्क यही बाकी है,
एक तन का तो दूजा मन का तासी है,
बस नोचने-कटोचने और जिस्म की प्यास जागी है,
इस देश में "इंसानों" की कमी जागी है,
क्यूंकि, यहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जो अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।।
Tuesday, December 18, 2012
भूख...
क्या हुआ है लोगों को,
क्यूँ इतने बेताब है,
क्या बस हवस जली है तन में,
क्यूँ भूख बड़ी बदजात है,
न माँ-बहन, न बेटी,
क्यूँ जिस्म की बस प्यास है,
क्या हुआ है लोगों को,
क्यूँ इतने बेताब है ।
तंत्र निकम्मा, मंत्र निकम्मा,
देश का प्रजातंत्र निकम्मा,
लोग बड़े बदजात है,
क्या हुआ है लोगों को,
क्यूँ इतने बेताब है,
न माँ-बहन, न बेटी,
बस जिस्म की प्यास है,
क्या हुआ है लोगों को,
क्यूँ इतने बेताब है ।।
छैल छबीला...
छैल छबीला, मस्त सजीला,
मिला मुझे एक रोज़,
कहा! मुझे भी खोज,
हूँ कहीं तुझमे ही,
आईना देख ज़रा एक रोज़,
स्याह रंगा वो रंग रंगीला,
छैल छबीला, मस्त सजीला ।
खोजा उसको बहुत कहीं,
मिली नहीं फिर-दोस,
हूँ कहीं तुझमे ही,
आईना देख ज़रा एक रोज़,
स्याह रंगा वो रंग रंगीला,
छैल छबीला, मस्त सजीला,
मिला मुझे एक रोज़ ।।
मिला मुझे एक रोज़,
कहा! मुझे भी खोज,
हूँ कहीं तुझमे ही,
आईना देख ज़रा एक रोज़,
स्याह रंगा वो रंग रंगीला,
छैल छबीला, मस्त सजीला ।
खोजा उसको बहुत कहीं,
मिली नहीं फिर-दोस,
हूँ कहीं तुझमे ही,
आईना देख ज़रा एक रोज़,
स्याह रंगा वो रंग रंगीला,
छैल छबीला, मस्त सजीला,
मिला मुझे एक रोज़ ।।
Saturday, December 15, 2012
बिना वजह...
गलत है शिकवा, क्यूँ दिल से लगाए बैठे हो,
नादानी की गलती को, दिल में जलाए बैठे हो,
रूठो न हमसे, जीना मुनासिब नहीं तुम बिन,
क्यूँ इतनी बड़ी सजा में, हमे जलाए बैठे हो ।
बिना वजह का शिकवा है, बेकार की शिकायत है,
क्यूँ दर्द दिए जा रहे हो खुद को, क्यूँ ये कवायद है,
मत दो दर्द खुद को, बहुत कोफ़्त होती है,
मुस्कुराओ हर पल, क्यूंकि ज़िन्दगी की यही इनायत है ।
सवाल और लाखों ख़्याल क्यूँ है,
उलझी सी है ज़िन्दगी या उलझे ख़्याल क्यूँ है,हो तुम मुझ में ही कहीं,
तो फिर तुम्हे पाने का ख़्याल क्यूँ है ।
Friday, December 14, 2012
बैठे-बैठे...
दोस्त कह कर मुझे अपना बना लिया,
थाम कर हाथ मेरा, दिल में बसा लिया,
मैं, बेसब्र था थोड़े प्यार के लिए,
गले लगा कर मुझे अपना बना लिया ।
मैं लिखता नहीं, लफ्ज़ मुझे लिख देते है क्यूँ,
शब्द मैं नहीं कहता, शब्द मुझे कह देते है क्यूँ,
मैं तो हाल-इ-दिल सुनता हूँ, बुझती आवाजों से,
कुछ मैं नहीं कहता, कलम मेरी लिख देती है क्यूँ ।
कुछ बा-नोश, तो कुछ बे-होश बैठे है,
इस इश्क में जाने कितने खामोश बैठे है,कुछ दर्द में डूबे, तो कुछ मदहोश बैठे है,
इस इश्क में जाने कितने बे-होश बैठे है ।
Thursday, December 13, 2012
"अभिनव"
क्या खूब लफ्ज़-ओ-अदाएगी है,
क्या खूब ख्वाहिशों की नुमाएगी है,
लफ़्ज़ों को पिरो, सारी बात कह दी,
दिल-इ-अरमान की सौगात कह दी,
मैंने तो बस कोशिश की चंद बातें कहने की,
तुमने तो बूंदों को पकड़ बरसात कह दी ।
गम न कर, यह तो गुज़र जाएगा,
बस साथ गुज़रा लम्हा याद आएगा,
मैं हूँ नहीं जिंदा बेशक,
पर जाने के बाद ये "अभिनव" बा-खूब याद आएगा ।
आँखों में छुपा कर, दिल में बसा लो,
बस गले लगा कर, अपना बना लो,
प्यार की चाहत, स्नेह का भूखा हूँ,
प्यार भरी रोटी दे कर, मुझे अपना बना लो ।
Wednesday, December 12, 2012
कुछ, यूँ ही...
मोहोब्बत की जो मैंने, कोई खता तो नहीं,
एक आस सजाये बैठा हूँ, कोई सजा तो नहीं,
हाँ! इंतज़ार में जिंदा हूँ ज़माने की तरह,
राह-इ-नज़रें टिकाये बैठा हूँ, कोई खता तो नहीं ।
लफ़्ज़ों से लफ्ज़ मिला ले अगर,
दिल को दिल से मिला ले अगर,
हाँ में हाँ मिला ले अगर,
तो ज़िन्दगी रोशन सी हो जाए,
तुमको जो दिल में बसा ले अगर,
नज़रों में तुमको समां ले अगर,
बाहों में तुमको छुपा ले अगर,
तो खुशियों का दामन भी भर जाए ।
जाने किस-किस मर्ज़ से,
मैंने रिश्ता जोड़ लिया,
कोई अपना दिखा भीड़ में,
कोई सपना सजा झील में,
मैंने दिल से दिल जोड़ लिया,
जो मुस्कुरा कर हाथ थामा,
मैंने अपना सांस थामा,
हाथों को जोड़ लिया,
तुमसे रिश्ता जोड़ लिया,
इश्क की तर्ज़ पे,
जाने किस-किस मर्ज़ से,
मैंने रिश्ता जोड़ लिया ।
मैंने रिश्ता जोड़ लिया,
कोई अपना दिखा भीड़ में,
कोई सपना सजा झील में,
मैंने दिल से दिल जोड़ लिया,
जो मुस्कुरा कर हाथ थामा,
मैंने अपना सांस थामा,
हाथों को जोड़ लिया,
तुमसे रिश्ता जोड़ लिया,
इश्क की तर्ज़ पे,
जाने किस-किस मर्ज़ से,
मैंने रिश्ता जोड़ लिया ।
Tuesday, December 11, 2012
छोटे बड़े का खेल है सारा...
छोटे बड़े का खेल है सारा,
कोई बड़ा सगा, तो कोई छोटा प्यारा,
लफ़्ज़ों का यह खेल नयारा,
छोटे बड़े का खेल है सारा ।
कह कर अपना जो हाथ बढ़ाया,
संग मैं भी खिचता चला आया,
कह कर अपना जो गले लगाया,
दिल से जुड़ा मैंने खुद को पाया,
कोई बड़ा सगा, तो कोई छोटा प्यारा,
लफ़्ज़ों का यह खेल नयारा,
छोटे बड़े का खेल है सारा ।।
कोई बड़ा सगा, तो कोई छोटा प्यारा,
लफ़्ज़ों का यह खेल नयारा,
छोटे बड़े का खेल है सारा ।
कह कर अपना जो हाथ बढ़ाया,
संग मैं भी खिचता चला आया,
कह कर अपना जो गले लगाया,
दिल से जुड़ा मैंने खुद को पाया,
कोई बड़ा सगा, तो कोई छोटा प्यारा,
लफ़्ज़ों का यह खेल नयारा,
छोटे बड़े का खेल है सारा ।।
चलते-चलते...
राह में चलते-चलते कुछ लफ्ज़ उठा लाया हूँ,
कुछ मेरे हिस्से के तो कुछ तेरे हिस्से से कहने आया हूँ,
शायरी का शौक न था यारों, यह बस दिल-इ-अदायगी थी,
बस दिल की कहने को लफ्ज़ जोड़ लाया हूँ,
राह में चलते-चलते कुछ लफ्ज़ उठा लाया हूँ ।
ये रात...
ये रात, सपनों से भरी, ओढ़ आई चांदनी,
सपनों की चादर सजाये, बाहें फलाये खाड़ी,ताल पर कुछ गीत सजते, राह उजियारी नयी,
दूर बजती धुन नयी लिए परछाई हो खाड़ी,
ये रात, सपनों से भरी, ओढ़ आई चांदनी,
सपनों की चादर सजाये, बाहें फलाये हो खाड़ी ।
Monday, December 10, 2012
शायरों की भी क्या खूब कहानी है...
शायरों की भी क्या खूब कहानी है,
कुछ गम-जर्द है तो कुछ टूटे दिल की निशानी है,
शायरों की भी क्या खूब कहानी है ।
नज़रों में देख, सब कुछ बयान करते है,
कुछ कहते नहीं बस लफ़्ज़ों में बहते है,
कभी अपने से तो कभी दुनिया बेगानी है,
हाथों में कलम, आँखों में पानी है,
शायरों की भी क्या खूब कहानी है ।।
Thursday, December 6, 2012
जो कच्ची पड़ जाए...
बात बड़ी न बोलिए, जो कच्ची पड़ जाए,
बात वही बोलिए, जो दिल में गड़ जाए,
झूठ-साच की बात यह, देर समझ में आये,
बात बड़ी न बोलिए, जो कच्ची पड़ जाए ।
बात कटु "मैं" बोलिए, दिल में भी चुभ जाए,
पर ध्यान-धपट के सोचिये, दिल क्यूँ है दुखाये,
बात बुरी वही है, जो अश्कों में तर जाए,
बूँद-बूँद बरस कर, घाव बड़ा कर जाए,
तो, बात बड़ी न बोलिए, जो कच्ची पड़ जाए,
बात वही बोलिए, जो दिल में गड़ जाए ।।
दैउ शब्दन की आशा...
तोलत बोलत जानिये जो सज्जन होए,
कटु वचन जो बोलिए, मन विचलित होए,देख पराई दुनिया, मत चौकों सकुचाये,
टोल मोल के बोलिए, जो इंसान होए ।
प्रीत परायी कैसी यह, दैउ शब्दन की आशा,
चंचलता विचलित कर दे, कटु वचनों की भाषा,
मीठन बोल जो बोलिए, मिले दिलों की आस,
गन्दी जिवाह जो करिए, फसे दिलों में फांस,
तोलत बोलत जानिये जो सज्जन होए,
टोल मोल के बोलिए जो इंसान होए ।।
Friday, November 30, 2012
दिन देखे मैंने नए-नए...
कुछ खोया मैंने, पर कुछ मैंने पाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है,
गम नहीं कुछ खोने का, अपना सबहु बनाया है,
प्यार बाटा बस दुनिया में, जीवन इसे बनाया है,
कुछ खोया मैंने, पर कुछ मैंने पाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है ।
जो अपना था, वो अपना है,
बस दिल में जगह बनायीं है,
जो सपना था, वो कब अपना है,
बस दिल से उसे लगाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है,
गम नहीं कुछ खोने का, अपना सबहु बनाया है,
प्यार बता बस दुनिया में, जीवन इसे बनाया है,
कुछ खोया मैंने, पर कुछ मैंने पाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है ।।
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है,
गम नहीं कुछ खोने का, अपना सबहु बनाया है,
प्यार बाटा बस दुनिया में, जीवन इसे बनाया है,
कुछ खोया मैंने, पर कुछ मैंने पाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है ।
जो अपना था, वो अपना है,
बस दिल में जगह बनायीं है,
जो सपना था, वो कब अपना है,
बस दिल से उसे लगाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है,
गम नहीं कुछ खोने का, अपना सबहु बनाया है,
प्यार बता बस दुनिया में, जीवन इसे बनाया है,
कुछ खोया मैंने, पर कुछ मैंने पाया है,
दिन देखे मैंने नए-नए, नित-दिन कुछ सिखाया है ।।
Tuesday, November 27, 2012
मंथन...
बहुत मंथन कर रस निचोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
रात का जो जाम छोड़ा,
शायरों से नाता जोड़ा,
तोड़ा-मोड़ा खुद को मरोड़ा,
साँस भर एक बाण छोड़ा,
शब्दों का संचन कर छोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
रात का जो जाम छोड़ा,
बहुत मंथन कर एक रस निचोड़ा,
जो रात काली सी है छाई,
संग अपने बात लायी,
राग उसने यह सुनाई,
सुबह की वीणा बजाई,
मंचिन्तन ने यह आवाज़ लगायी,
कि, देख सपने तू नये, कल की चिंता छोड़ दे,
आज जी ले तू अभी, कल का भ्रम तोड़ दे,
जोड़ संपत्ति, रज और जर, कुछ मिले न उम्र भर,
जो ज्ञान का सागर भरे, तर जायेगा उम्र भर,
जो रात काली सी है आई,
संग अपने बात लायी,
जो रात का यूँ नाम जोड़ा,
शायरों से नाता जोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
तो देखो कैसा रस निचोड़ा ।
रात का जो जाम छोड़ा,
शायरों से नाता जोड़ा,
तोड़ा-मोड़ा खुद को मरोड़ा,
साँस भर एक बाण छोड़ा,
शब्दों का संचन कर छोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
रात का जो जाम छोड़ा,
बहुत मंथन कर एक रस निचोड़ा,
जो रात काली सी है छाई,
संग अपने बात लायी,
राग उसने यह सुनाई,
सुबह की वीणा बजाई,
मंचिन्तन ने यह आवाज़ लगायी,
कि, देख सपने तू नये, कल की चिंता छोड़ दे,
आज जी ले तू अभी, कल का भ्रम तोड़ दे,
जोड़ संपत्ति, रज और जर, कुछ मिले न उम्र भर,
जो ज्ञान का सागर भरे, तर जायेगा उम्र भर,
जो रात काली सी है आई,
संग अपने बात लायी,
जो रात का यूँ नाम जोड़ा,
शायरों से नाता जोड़ा,
छंद दो छंद उसमे जोड़ा,
तो देखो कैसा रस निचोड़ा ।
रात कहने लगी...
सर्द होने लगी है रातें,
रात कहने लगी है बातें,
खुश्बुओमे में प्यार है,
फिर क्यूँ हवाओं को इनकार है,
मैं, कहता नहीं कुछ, तकता हूँ दो आँखें,
और आँखों-आँखों में हो गयी जाने कितनी बातें,
फिर क्यूँ रात को इनकार है,
हवाओं से पूछो, उनको भी प्यार है,
जो सर्द होने लगी है रातें,
अब, रात कहने लगी है तुम्हारी बातें ।
रात कहने लगी है बातें,
खुश्बुओमे में प्यार है,
फिर क्यूँ हवाओं को इनकार है,
मैं, कहता नहीं कुछ, तकता हूँ दो आँखें,
और आँखों-आँखों में हो गयी जाने कितनी बातें,
फिर क्यूँ रात को इनकार है,
हवाओं से पूछो, उनको भी प्यार है,
जो सर्द होने लगी है रातें,
अब, रात कहने लगी है तुम्हारी बातें ।
Monday, November 26, 2012
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा...
हम को भी याद आये किस्से पुराने से,
जो कल गुज़रे थे, साथ ज़माने से,चंद पंग्तियों में ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा मिल गया,
पढ़ता रहा बार-बार, और हांथों से दिल गया,
वो जुल्फ़ों की छांव, वादियों में हाँथ थामे घुल गया,
एक गुज़रा लम्हा जाने कैसे आँखों को मिल गया,
जो कल गुज़रे थे, साथ ज़माने से,
हम को भी याद आये किस्से पुराने से,
चंद पंग्तियों में ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा मिल गया,
मैं, पढ़ता रहा बार-बार और हांथों से दिल गया ।
Thursday, November 22, 2012
दिन सुनहरे...
बचपन के वो दिन सुनहरे,
न काम के फंदे, न बॉस के चेहरे,
खुद की उलझन, सपनों के पहरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।
न बॉस की गाली, न चीख-चपाटा,
कम तन्खुवाह का न पड़ता चांटा,
न घर की चिंता, बस सैर-सपाटा,
गली में पहिया, दूर भगाता,
यादों के है रूप सुनहरे,
बचपन के वो दिन सुनहरे ।।
न काम के फंदे, न बॉस के चेहरे,
खुद की उलझन, सपनों के पहरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।
न बॉस की गाली, न चीख-चपाटा,
कम तन्खुवाह का न पड़ता चांटा,
न घर की चिंता, बस सैर-सपाटा,
गली में पहिया, दूर भगाता,
यादों के है रूप सुनहरे,
बचपन के वो दिन सुनहरे ।।
Monday, November 19, 2012
कोई शायर कहता है...
कोई शायर कहता है, कोई दीवाना कहता है,
मैं वो कहता हूँ जो दिल का तराना कहता है,
फ़साना अल्फाज़ों का बस यूँ ही सुना देते है,
मैं तो वो कहता है जो ज़माना कहता है ।
तिश्निगी में डूब, जज़्बातों को पिरो देते है,
जाम में डूब, पैमाना भी भिगो देते है,
कोई हार कहता है, कोई नजराना कहता है,
मैं वो कहता हूँ जो दिल का तराना कहता है ।।
मैं वो कहता हूँ जो दिल का तराना कहता है,
फ़साना अल्फाज़ों का बस यूँ ही सुना देते है,
मैं तो वो कहता है जो ज़माना कहता है ।
तिश्निगी में डूब, जज़्बातों को पिरो देते है,
जाम में डूब, पैमाना भी भिगो देते है,
कोई हार कहता है, कोई नजराना कहता है,
मैं वो कहता हूँ जो दिल का तराना कहता है ।।
Sunday, November 18, 2012
आलम...
जददो मेरा यार आये तो एक सवाल-इ-दिल पूछो,
कि, क्या गुनाह है मेरा की प्यार तुझसे कर बैठा,
क्यूँ नहीं समझते की खुद की हद पार कर बैठा,
दिखते हर नज़र में उनको सवाल है,
क्यूँ नहीं समझते की दिल बेहाल है,
अब इंतज़ार-इ-लम्हा गुज़रता नहीं,
कोई कब तक ख़ामोशी को क्यूँ पढता रहे,
बताते क्यूँ नहीं जो हालात-इ-ख्याल है,
पूछो तो कहते हो, कि, पूछते सवाल है,
जवाब-ओ-तिश्नगी का आलम न पूछो,
जददो मेरा यार आये तो एक सवाल-इ-दिल पूछो ।
क्यूँ जान भी...
एक अजब सी बैचैनी है, क्यूँ राहत सी आती नहीं,
बेज़ार, बंजर हूँ तनहा सा, क्यूँ जान भी यह जाती नहीं,उलझन, सुल्झानों में उलझ कर रह गयी,
बातें, रातों में भटक कर बह गयी,
क्यूँ खुद को होम करता पाऊं मैं,
एक अजब सी बैचैनी है आज कल, क्यूँ राहत सी मुझको आती नहीं,
बेज़ार, बंजर हूँ तनहा सा, क्यूँ जान भी यह जाती नहीं ।
Wednesday, November 7, 2012
दर्द होता है...
मत तड़पाओ खुद को, दर्द होता है,
खुद को पत्थर कहने से, दिल ज़र्द होता है,
टूट कर बिखरना तो फितरत है,
पर गिरकर संभालना भी नियत है,
इश्क करो खुद से, देखो रोशन है दुनिया,
गम में न डूबो, देखो गुलशन है दुनिया,
बंद करो खुद पर ज़ुल्म-ओ-सितम,
इतने भी बर्बाद नहीं की फूटे है करम,
ज़र्द न हो रूह तेरी,
चाह, जिंदा रहे दिल में तेरी,
इसलिए, मत तड़पाओ खुद को, हमे दर्द होता है,
खुद को पत्थर कहने से, दिल ज़र्द होता है ।
खुद को पत्थर कहने से, दिल ज़र्द होता है,
टूट कर बिखरना तो फितरत है,
पर गिरकर संभालना भी नियत है,
इश्क करो खुद से, देखो रोशन है दुनिया,
गम में न डूबो, देखो गुलशन है दुनिया,
बंद करो खुद पर ज़ुल्म-ओ-सितम,
इतने भी बर्बाद नहीं की फूटे है करम,
ज़र्द न हो रूह तेरी,
चाह, जिंदा रहे दिल में तेरी,
इसलिए, मत तड़पाओ खुद को, हमे दर्द होता है,
खुद को पत्थर कहने से, दिल ज़र्द होता है ।
Tuesday, November 6, 2012
कहते है...
कहते है, हम तो पत्थर है, दिल लगाओ न चोट खाओगे,
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे,
बहुत ज़ुल्म-ओ-सितम सहे ज़माने के, अब, प्यार-इ-कतरा से भी डर लगता है,
बहुत लड़ चुके ज़माने से, अब तो, मौत-इ-गले मिलने को दिल करता है,
थक कर हार चुके, जिस्म बस जिंदा लाश है,
कोई ख़ुशी नहीं मेरे पास, मायूसी भी उदास है,
कहते है, हम तो पत्थर है, दिल लगाओ न चोट खाओगे,
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे ।
पर, हम यह कहते है...
कांच की दीवार बनी है, शीशा सा दिल कैद है,
मासूमियत मायूसियत में बदली, रूह-इ-जिस्म कैद है,
सांस लेते है जीने को पर जीते नहीं,
जिंदा तो है पर खुद को जीने नहीं,
बस, उदास है खुद से, मायूस-इ-ज़िन्दगी समझ बैठे है,
प्यार करते है खुद से, पर दुश्मन समझ बैठे है,
कहते है पत्थर-दिल है वो, बिखर जाओगे,
पर, जुड़ते क्यूँ नहीं खुद से, सवार जाओगे,
इश्क करो खुद से निखर जाओगे,
आजमा कर देखो खुद को, सवार जाओगे ।।
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे,
बहुत ज़ुल्म-ओ-सितम सहे ज़माने के, अब, प्यार-इ-कतरा से भी डर लगता है,
बहुत लड़ चुके ज़माने से, अब तो, मौत-इ-गले मिलने को दिल करता है,
थक कर हार चुके, जिस्म बस जिंदा लाश है,
कोई ख़ुशी नहीं मेरे पास, मायूसी भी उदास है,
कहते है, हम तो पत्थर है, दिल लगाओ न चोट खाओगे,
शीशा सा दिल है तुम्हारा, टूट कर बिखर जाओगे ।
पर, हम यह कहते है...
कांच की दीवार बनी है, शीशा सा दिल कैद है,
मासूमियत मायूसियत में बदली, रूह-इ-जिस्म कैद है,
सांस लेते है जीने को पर जीते नहीं,
जिंदा तो है पर खुद को जीने नहीं,
बस, उदास है खुद से, मायूस-इ-ज़िन्दगी समझ बैठे है,
प्यार करते है खुद से, पर दुश्मन समझ बैठे है,
कहते है पत्थर-दिल है वो, बिखर जाओगे,
पर, जुड़ते क्यूँ नहीं खुद से, सवार जाओगे,
इश्क करो खुद से निखर जाओगे,
आजमा कर देखो खुद को, सवार जाओगे ।।
Saturday, November 3, 2012
दरमियाँ...
एक अजब सी बैचैनी है दिल में, मुझको चुप रहने नहीं देती,
हाँथों को बाँध भी लूं तो लबों पर लफ़्ज़ों को तनहा रहने नहीं देती |
हाँथों को बाँध भी लूं तो लबों पर लफ़्ज़ों को तनहा रहने नहीं देती |
एक दीवार सी बना बैठे है दरमियाँ,कैद उनकी रूह नज़र आती है,
छूना चाहते है रूह को,
तो कहते है आंसू पोछ लो दामन-इ-दरख्तों से,
हम तो जिंदा लाश है, तुमको कहाँ हम में रूह नज़र आती है,
एक दीवार सी बना बैठे है दरमियाँ,
कैद उनकी रूह नज़र आती है |
छूना चाहते है रूह को,
तो कहते है आंसू पोछ लो दामन-इ-दरख्तों से,
हम तो जिंदा लाश है, तुमको कहाँ हम में रूह नज़र आती है,
एक दीवार सी बना बैठे है दरमियाँ,
कैद उनकी रूह नज़र आती है |
एक झटके में अपना कह कर हमसे किनारा कर लिया,
संग चलते रहे उम्र भर, फिर भी बेसहारा कर दिया,
जब जरूरत पड़ी उम्र-ओ-इश्क निभाने की,
पलट कर भी नहीं देखा, हमसे किनारा कर लिया |
Friday, November 2, 2012
हाल-इ-दिल...
रात काली, है अँधेरा,पल रहा सुबह का चेहरा,
बढ़ रही करवट नयी,
कर रही हरकत नयी,
जो रात काली, है अँधेरा,
पल रहा सुबह का चेहरा |
बढ़ रही करवट नयी,
कर रही हरकत नयी,
जो रात काली, है अँधेरा,
पल रहा सुबह का चेहरा |
मेरे हाल-इ-दिल को फसाना समझ लेते है,
दर्द को, मुस्कराहट का नज़राना समझ लेते है,
कैसे बतलाये उन्हें की यह शायरी नहीं हाल-इ-दिल है,
पर मेरे हाल-इ-दिल को फसाना समझ लेते है |
दर्द को, मुस्कराहट का नज़राना समझ लेते है,
कैसे बतलाये उन्हें की यह शायरी नहीं हाल-इ-दिल है,
पर मेरे हाल-इ-दिल को फसाना समझ लेते है |
मलाल-इ-हालात भी नहीं उनको,
ज़ख्म-इ-दिल कैसे दिखलाए उन्हें,
मेरी दिल्लगी का हंस का मज़ाक बना देते है,
दिल-इ-हसरत कैसे समझाए उन्हें |
ज़ख्म-इ-दिल कैसे दिखलाए उन्हें,
मेरी दिल्लगी का हंस का मज़ाक बना देते है,
दिल-इ-हसरत कैसे समझाए उन्हें |
Thursday, November 1, 2012
सोचते-सोचते...
तेरे पंखों पर शक नहीं...
तेरे पंखों पर शक नहीं, इरादे पर गुमान है,
सपनों की हकीकत से हो रु-ब-रु, यह आस्मां भी नया है,
कर होसलों को बुलंद इतना की आस्मां भी कम निकले,
क्यूंकि ये अंदाज़-इ-बयाँ, होसला-इ-दरमियान है |
सपनों की हकीकत से हो रु-ब-रु, यह आस्मां भी नया है,
कर होसलों को बुलंद इतना की आस्मां भी कम निकले,
क्यूंकि ये अंदाज़-इ-बयाँ, होसला-इ-दरमियान है |
सोचते-सोचते...
सोचते-सोचते एक ख्याल आया,
जाने क्यूँ दिल में एक सवाल आया,
कि, क्यूँ खुदा सा आज तुझको पाया,
क्या तुझमे रब है समाया,
जब नज़रें तुझसे फेरी, खुद से दूर पाया,
आज जाने क्यूँ तू रब सा नज़र आया,
सोचते-सोचते एक ख़्याल आया,
जाने क्यूँ दिल में एक सवाल आया |
जाने क्यूँ दिल में एक सवाल आया,
कि, क्यूँ खुदा सा आज तुझको पाया,
क्या तुझमे रब है समाया,
जब नज़रें तुझसे फेरी, खुद से दूर पाया,
आज जाने क्यूँ तू रब सा नज़र आया,
सोचते-सोचते एक ख़्याल आया,
जाने क्यूँ दिल में एक सवाल आया |
पाना-खोना...
कुछ पाने का, कुछ खोने का, जाने कैसा सपना है,
कभी पास हुआ, कभी दूर हुआ, फिर भी वो क्यूँ अपना है,
भर कर झोली में, झांके मन,
मन विचलित सा, मन कौतुहल,
कुछ पाने का, कुछ खोने का, जाने कैसा सपना है,
कभी पास हुआ, कभी दूर हुआ, फिर भी वो क्यूँ अपना है |
कभी पास हुआ, कभी दूर हुआ, फिर भी वो क्यूँ अपना है,
भर कर झोली में, झांके मन,
मन विचलित सा, मन कौतुहल,
कुछ पाने का, कुछ खोने का, जाने कैसा सपना है,
कभी पास हुआ, कभी दूर हुआ, फिर भी वो क्यूँ अपना है |
Wednesday, October 31, 2012
कह कर "अपना"...
आँखों में छुपा कर बात नई, कहती हो मुझसे पहचानों,
दिल पर रख लो हाँथ मेरा, कह कर "अपना" अपनालो,मैं, हूँ भटका बिखरा सा, आ कर मुझे संभालो,
प्यार का भूखा-प्यासा हूँ, दामन में मुझको छुपालो,
मैं हूँ अकेला तनहा सा, कभी पूरा सा कभी आधा सा,
बाहँ पकड़ कर तुम मेरी, बाहों में अपनी छुपालो,
दिल पर रख लो हाँथ मेरा, कह कर "अपना" अपनालो,
मैं, हूँ भटका बिखरा सा, आ कर मुझे तुम सम्भालों,
प्यार का भूखा-प्यासा हूँ, दामन में मुझको छुपालो |
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी...
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी,
बहुत लिखे वो लफ्ज़ सुनहरे,
कभी चेहरे, आँखें, लफ़्ज़ों के घेरे,
बहुतों की पहचान बताई,
खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई,
कई बोले, भई! वाह क्या बात कही,
चेहरे पर पूरी कविता कह दी,
आँखों की कैसी सच्चाई, जो खुद हम को नज़र न आई,
पर तुमने कुछ लफ्ज़ तराशे, आँखों में चमक सी आई,
बहुतों की पहचान बताई,
खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई,
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी |
कोई बोले मेरे लिए लिख दो,
कोई बोले मेरे लिए कह दो,
जो भी दिखाई दे सच्चाई,
वो लफ़्ज़ों में नज़र आई...
पर, कोई तो मेरे लिए कह दे,
जो अब तक मुझको नज़र न आई,
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी,
बहुतों की पहचान बताई,
पर, खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई ||
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी,
बहुत लिखे वो लफ्ज़ सुनहरे,
कभी चेहरे, आँखें, लफ़्ज़ों के घेरे,
बहुतों की पहचान बताई,
खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई,
कई बोले, भई! वाह क्या बात कही,
चेहरे पर पूरी कविता कह दी,
आँखों की कैसी सच्चाई, जो खुद हम को नज़र न आई,
पर तुमने कुछ लफ्ज़ तराशे, आँखों में चमक सी आई,
बहुतों की पहचान बताई,
खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई,
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी |
कोई बोले मेरे लिए लिख दो,
कोई बोले मेरे लिए कह दो,
जो भी दिखाई दे सच्चाई,
वो लफ़्ज़ों में नज़र आई...
पर, कोई तो मेरे लिए कह दे,
जो अब तक मुझको नज़र न आई,
कैसी प्रीत यह जान परायी,
लफ़्ज़ों ने पहचान करायी,
बहुतों की पहचान बताई,
पर, खुद की तस्वीर कभी नज़र न आई ||
Tuesday, October 30, 2012
खुद को खोजन मैं चला...
खुद को खोजन मैं चला, खुद को कहीं न पाया,
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया,
प्रीत परायी कैसी यह, अब तक समझ न पाया,
जो खुद खुदा मुझ में है, तो क्या खोजन क्या पाया,
प्राण भरी जिवाह सुमरी, कटु वचन जब आया,
दूर खुदाई देख कर मन मेरा घबराया,
खुद को खोजन मैं चला, खुद को कहीं न पाया,
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया |
कोटि-कोटि हुआ धन्य मैं, ज्ञान समझ जब आया,
संग कवि जब बोल पड़ा, सब में खुदा समाया,
ज्ञात हुआ अमृत सा, मन-तृप्ति सा पाया,
प्रीत परायी कैसी यह, अब तक समझ न पाया,
फल, फूल, मोती सा, मोहित सबको पाया,
कण, कंकड़-पत्थर में, सब में नज़र वही आया,
खुद को खोजन मैं चला, खुद को कहीं न पाया,
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया ||
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया,
प्रीत परायी कैसी यह, अब तक समझ न पाया,
जो खुद खुदा मुझ में है, तो क्या खोजन क्या पाया,
प्राण भरी जिवाह सुमरी, कटु वचन जब आया,
दूर खुदाई देख कर मन मेरा घबराया,
खुद को खोजन मैं चला, खुद को कहीं न पाया,
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया |
कोटि-कोटि हुआ धन्य मैं, ज्ञान समझ जब आया,
संग कवि जब बोल पड़ा, सब में खुदा समाया,
ज्ञात हुआ अमृत सा, मन-तृप्ति सा पाया,
प्रीत परायी कैसी यह, अब तक समझ न पाया,
फल, फूल, मोती सा, मोहित सबको पाया,
कण, कंकड़-पत्थर में, सब में नज़र वही आया,
खुद को खोजन मैं चला, खुद को कहीं न पाया,
जो खोजा खुदा को मैंने, अक्स नज़र मेरा आया ||
Tuesday, October 16, 2012
मयस्सर...
बड़े तल्लीन हो तश्तीफ कर यह जाना,
कि हर गुनाह की वजह हम है,
कहीं दिल टूटने की सजा हम है,
तो कहीं दिल तोड़ने की वजह हम है ।
मैं जिंदा हूँ दफ़न सा,
लिपटा हूँ कफ़न सा,
बस बे-जान जिस्म में कुछ सांसें बाकी है,
शायद खुदा तेरी जुदाई ही झांकी है,
ये सांस, ये जो रूह बाकी है |
कि हर गुनाह की वजह हम है,
कहीं दिल टूटने की सजा हम है,
तो कहीं दिल तोड़ने की वजह हम है ।
ये सांस, ये रूह जो बाकी है,
शायद खुदा तेरी जुदाई ही झांकी है,मैं जिंदा हूँ दफ़न सा,
लिपटा हूँ कफ़न सा,
बस बे-जान जिस्म में कुछ सांसें बाकी है,
शायद खुदा तेरी जुदाई ही झांकी है,
ये सांस, ये जो रूह बाकी है |
Sunday, October 7, 2012
कुछ उलझी सुलझी सी...
रिश्ता...
अजब सा रिश्ता है, बांधे एक डोर है,
कभी मैं खींचू, तो कभी खींचता तेरी ओर है,
बाँध कर भी बंधा नहीं, जाने जैसी डोर है,
खुल कर भी मैं खुला नहीं, खींचे तेरी ओर है,
अजब सा रिश्ता है, बांधे एक डोर है |
अजब सा रिश्ता है, बांधे एक डोर है,
कभी मैं खींचू, तो कभी खींचता तेरी ओर है,
बाँध कर भी बंधा नहीं, जाने जैसी डोर है,
खुल कर भी मैं खुला नहीं, खींचे तेरी ओर है,
अजब सा रिश्ता है, बांधे एक डोर है |
उलझे हालात...
कहना क्या चाहते हो, जज़्बात क्या है,
यूँ उलझे हुए से हालात क्या है,
जो दिल की उलझन हो, कह, सुलझन कर लो,
मन में उथल-पुथल का मंथन कर लो,
कुछ न कह कर, सब कुछ कहने की बात क्या है,
यूँ उलझे हुए से हालात क्या है,
कहना क्या चाहते हो, जज़्बात क्या है |
कहना क्या चाहते हो, जज़्बात क्या है,
यूँ उलझे हुए से हालात क्या है,
जो दिल की उलझन हो, कह, सुलझन कर लो,
मन में उथल-पुथल का मंथन कर लो,
कुछ न कह कर, सब कुछ कहने की बात क्या है,
यूँ उलझे हुए से हालात क्या है,
कहना क्या चाहते हो, जज़्बात क्या है |
वफ़ा...
वफ़ा, कब बे-वफ़ा हो गयी ख़्याल नहीं,
उलझे ऐसे हालात सवाल नहीं,
दिल को जिंदा रखे है बस उनके लिए,
पर वो कब बे-वफ़ा हो गए ख़्याल नहीं |
वफ़ा, कब बे-वफ़ा हो गयी ख़्याल नहीं,
उलझे ऐसे हालात सवाल नहीं,
दिल को जिंदा रखे है बस उनके लिए,
पर वो कब बे-वफ़ा हो गए ख़्याल नहीं |
यकीन...
हमको अपनों पर यकीन था, गैरों पर कहाँ इल्म था,
ख़ंजर उसने मारा, जिसका ज्यादा करम था,
रूह, यह देख रोती रही, कि अपना क्यूँ गैर हो गया,
क़त्ल-इ-अरमां उसने किया, जिसका अपना सा भरम था |
हमको अपनों पर यकीन था, गैरों पर कहाँ इल्म था,
ख़ंजर उसने मारा, जिसका ज्यादा करम था,
रूह, यह देख रोती रही, कि अपना क्यूँ गैर हो गया,
क़त्ल-इ-अरमां उसने किया, जिसका अपना सा भरम था |
राज़-इ-दिल...
कुछ बोलते नहीं, राज़-इ-दिल खोलते नहीं,
आँखों में देख कर, लफ़्ज़ों को तोलते नहीं,
जो है दरमियाँ, कुछ बढ़ी सी दूरियां,
उन दूरियों की हो गयी इन्तेहाँ,
पर, फिर भी कुछ बोलते नहीं, राज़-इ-दिल खोलते नहीं,
अब तो बोल दो, राज़-इ-दिल खोल दो |
कुछ बोलते नहीं, राज़-इ-दिल खोलते नहीं,
आँखों में देख कर, लफ़्ज़ों को तोलते नहीं,
जो है दरमियाँ, कुछ बढ़ी सी दूरियां,
उन दूरियों की हो गयी इन्तेहाँ,
पर, फिर भी कुछ बोलते नहीं, राज़-इ-दिल खोलते नहीं,
अब तो बोल दो, राज़-इ-दिल खोल दो |
Wednesday, October 3, 2012
शख्स कहीं मुझसा है बेगाना...
खुद में झाँका तो यह जाना,
एक शख्स कहीं मुझसा है बेगाना,
खुद में उलझा-उलझा सा,
बातों में सुलझा-सुलझा सा,
दुनिया से बेगाना,
खुद में झाँका तो यह जाना,
एक शख्स कहीं मुझसा है बेगाना ।
है अजीब, अड़ियल काया,
धूमिल पड़ती उसकी छाया,
अंग, नंग, म्रदंग, रहता सबसे तंग,
खुद ही खुद में रह कर, लड़ता खुद से जंग,
खुद में उलझा-उलझा सा,
बातों में सुलझा-सुलझा सा,
दुनिया से बेगाना,
खुद में झाँका तो यह जाना,
एक शख्स कहीं मुझसा है बेगाना ।।
एक शख्स कहीं मुझसा है बेगाना,
खुद में उलझा-उलझा सा,
बातों में सुलझा-सुलझा सा,
दुनिया से बेगाना,
खुद में झाँका तो यह जाना,
एक शख्स कहीं मुझसा है बेगाना ।
है अजीब, अड़ियल काया,
धूमिल पड़ती उसकी छाया,
अंग, नंग, म्रदंग, रहता सबसे तंग,
खुद ही खुद में रह कर, लड़ता खुद से जंग,
खुद में उलझा-उलझा सा,
बातों में सुलझा-सुलझा सा,
दुनिया से बेगाना,
खुद में झाँका तो यह जाना,
एक शख्स कहीं मुझसा है बेगाना ।।
कौन हूँ मैं?
कौन हूँ मैं?
खुद का वजूद जानता ही नहीं,
जिंदा हूँ पर क्यूँ? कोई वजह मानता ही नहीं,
खुद के वजूद की तलाश में, जाने कितने आईने तोड़ दिया,
खुद को पाने की चाहत में, जाने कितने रिश्ते-नाते जोड़ लिए,
पर " मैं " न मिला, मेरी रूह न मिली,
कुछ लफ्ज़ मिले, गीली स्याही भी मिली,
कौन हूँ मैं?
यह जानता ही नहीं,
खुद के होने का वजूद जानता ही नहीं ।
एक तार सी ज़िन्दगी,
बे-दिल, बेज़ार सी ज़िन्दगी,
भीड़ में, आम में,
तनहा अकेला शाम में,
खुद का वजूद जानता ही नहीं,
जिंदा हूँ पर क्यूँ? कोई वजह मानता ही नहीं,
कौन हूँ मैं?
यह जानता ही नहीं ।।
Friday, September 28, 2012
नज़र का ख़्याल...
नज़र का ख़्याल, नज़र का सवाल बन कर रह गया,
नज़र नज़र से मिली, लफ़्ज़ों का मलाल बन कर रह गया,
कभी झुकी, कभी उठी, कभी सवाल बन कर रह गया,
नज़र का ख़्याल, नज़र का सवाल बन कर रह गया |
नज़र, नज़र का ख़्याल था, एक उलझा सा सवाल था,
जाने क्यूँ दिल में मलाल था, बस नज़र का कमाल था,
एक नज़र ऐसी थी, जैसे रब का कमाल था,
एक नज़र ऐसी थी, जो रब के लिए सवाल था,
नज़र का ख़्याल, नज़र का सवाल बन कर रह गया,
नज़र, नज़र से मिली, लफ़्ज़ों का मलाल बन कर रह गया ||
नज़र नज़र से मिली, लफ़्ज़ों का मलाल बन कर रह गया,
कभी झुकी, कभी उठी, कभी सवाल बन कर रह गया,
नज़र का ख़्याल, नज़र का सवाल बन कर रह गया |
नज़र, नज़र का ख़्याल था, एक उलझा सा सवाल था,
जाने क्यूँ दिल में मलाल था, बस नज़र का कमाल था,
एक नज़र ऐसी थी, जैसे रब का कमाल था,
एक नज़र ऐसी थी, जो रब के लिए सवाल था,
नज़र का ख़्याल, नज़र का सवाल बन कर रह गया,
नज़र, नज़र से मिली, लफ़्ज़ों का मलाल बन कर रह गया ||
Tuesday, September 18, 2012
सदके जाऊं...
तेरे इश्क के सदके जाऊं,
संग रहूँ, कभी मिट न पाऊं,जब यार मिलाया, इश्क नचाया,
इश्क नचाया, यार मिलाया,
इस इश्क में मैं फ़ना हो जाऊं,
संग रहू, कभी मिट न पाऊं,
तेरे इश्क के सदके जाऊं |Wednesday, September 12, 2012
मेरा, कोई नाम नहीं...
मेरा, कोई नाम नहीं, पहचान नहीं,
एक गीत हूँ जाना-पहचाना सा, जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
हूँ लफ़्ज़ों में उलझा सुलझा सा, कागज़ पर बिखरा-छितरा सा,
जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
मेरा, कोई नाम नहीं, पहचान नहीं |
एक गीत हूँ जाना-पहचाना सा, जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
हूँ लफ़्ज़ों में उलझा सुलझा सा, कागज़ पर बिखरा-छितरा सा,
जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
मेरा, कोई नाम नहीं, पहचान नहीं |
सब बन्दर बाट के खेलों में,
कभी मंदिर में, कभी रेलों में,
तस्वीरों सी पहचान रही,
कोई नाम नहीं, निशाँ नहीं,
एक गीत हूँ जाना-पहचाना सा, जिसका कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
मेरा, कोई नाम नहीं, पहचान नहीं ||
Wednesday, September 5, 2012
उम्मीद के बादल जो छाये...
उम्मीद के बादल जो छाये,
बरखा ऋतु भी संग लाये,
कभी घरड-घरड, कभी लहर-लहर,
नभ आँगन पर छाये,
उम्मीद के बादल जो छाये,
बरखा ऋतु भी संग लाये |
कहीं नीली-पीली धूप भरी,
कहीं पेड़ों की छाया हरी,
हर काया जैसे मुस्काई,
बूँदें मोती बन कर छाई,
कभी घरड-घरड, कहीं लहर-लहर,
नभ आँगन पर छाये,
उम्मीद के बादल जो छाये,
बरखा ऋतु भी संग लाये ||
Tuesday, September 4, 2012
इंतज़ार में...
कल, जो उठा लाया था रेत, सागर किनारे से,
वो आज भी सूखी पड़ी है लहरों के इंतज़ार में,
कुछ मोती से पत्थर चुन लाया था, जाने किस उलझे ख़्याल में,
वो आज भी बेजान से पड़े है, मेरे हांथों की छुअन के इंतज़ार में |
वो आज भी सूखी पड़ी है लहरों के इंतज़ार में,
कुछ मोती से पत्थर चुन लाया था, जाने किस उलझे ख़्याल में,
वो आज भी बेजान से पड़े है, मेरे हांथों की छुअन के इंतज़ार में |
Tuesday, August 28, 2012
दुनिया का दस्तूर...
बिखरना, सवरना, सवरकर बिखरना,
यह तो दुनिया का दस्तूर है,क्यूँ फ़िज़ूल परेशान है,
बिखर कर सवर जाना है दस्तूर है,
ठोकरें लाख लगी तो क्या, राह-पथ लथपथ रहने दे,
मंजिलें मीलों बाकी है, थोड़ा रक्त तो बहने दे,
तू भी बिखर कर सवर जाएगा, सोचना फ़िज़ूल है,
बस कर्म किये जा, क्यूंकि यह तो दुनिया का दस्तूर है |
खुद का अर्थ...
समाज की निंदा कर मैंने बाट लिया दुःख-दर्द,
पर इस छल और छलावे में भूल गया खुद का अर्थ,
व्यथा यह नहीं थी की ज़माना मुझ सा नहीं था,
विरह यह थी की तराना मुझसा नहीं था,
कौन समझे मेरे बिगड़े तरानों को,
हर सोच का फ़साना यही था,
पर फिर भी, समाज की निंदा कर मैंने बाट लिया दुःख-दर्द,
पर इस छल और छलावे में भूल गया खुद का अर्थ |
पर इस छल और छलावे में भूल गया खुद का अर्थ,
व्यथा यह नहीं थी की ज़माना मुझ सा नहीं था,
विरह यह थी की तराना मुझसा नहीं था,
कौन समझे मेरे बिगड़े तरानों को,
हर सोच का फ़साना यही था,
पर फिर भी, समाज की निंदा कर मैंने बाट लिया दुःख-दर्द,
पर इस छल और छलावे में भूल गया खुद का अर्थ |
लोगों को कभी मतलब न था मुझसे,
फिर भी मेरी बेजान ज़िन्दगी उन्हें प्यारी लगी,
थोड़ी-थोड़ी कडवाहट घोल दी,
और दर्द भरी मुस्कान उन्हें प्यारी लगी,
मैं, फिर भी चलता रहा, लड़ता रहा खुद से कह-कह कर,
मैं ज़माने से न हूँ, ज़माना मुझसा हुआ ये कह-कह कर,
पर फिर भी, समाज की निंदा कर मैंने बाट लिया दुःख-दर्द,
पर इस छल और छलावे में भूल गया खुद का अर्थ ||
Tuesday, August 21, 2012
गर न होते ग़ालिब...
गर न होते ग़ालिब, तो लफ़्ज़ों की बरसात न होती,
लफ्ज़, लफ्ज़ ही रहते, शायरी की सौगात न होती,हर आशिक का फ़साना न बयान होता हाल-इ-दिल मुझ सा,
मुझे न मुफ़लिस शायर कहते और न इनायतों की सौगात होती,
गर न होते ग़ालिब तो नज़्मों की बरसात न होती |
Tuesday, August 14, 2012
बूढ़ा पड़ गया था मैं...
वक़्त के थपेड़ों में ढल गया था मैं,
दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में गल गया था मैं,
छोड़ आया था बचपन की मासूमियत कहीं,
ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते बूढ़ा पड़ गया था मैं |
मासूमियत कब शैतानियत में बदल गयी,
हैवानियत कब हैरानियों में मचल गयी,
अन्दर, मैं ही था ज़िंदा कहीं.
फिर क्यूँ शक्शियत बुढ़ापे में बदल गयी,
वक़्त, आज क्यूँ कल जैसा न था,
"मैं" मैं था पर वैसा न था,
शायद, वक़्त के थपेड़ों में ढल गया था मैं,
दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में गल गया था मैं,
वहां, छोड़ आया था बचपन की मासूमियत कहीं,
ज़िन्दगी से लड़ते-लड़ते बूढ़ा पड़ गया था मैं ||
दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में गल गया था मैं,
छोड़ आया था बचपन की मासूमियत कहीं,
ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते बूढ़ा पड़ गया था मैं |
मासूमियत कब शैतानियत में बदल गयी,
हैवानियत कब हैरानियों में मचल गयी,
अन्दर, मैं ही था ज़िंदा कहीं.
फिर क्यूँ शक्शियत बुढ़ापे में बदल गयी,
वक़्त, आज क्यूँ कल जैसा न था,
"मैं" मैं था पर वैसा न था,
शायद, वक़्त के थपेड़ों में ढल गया था मैं,
दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में गल गया था मैं,
वहां, छोड़ आया था बचपन की मासूमियत कहीं,
ज़िन्दगी से लड़ते-लड़ते बूढ़ा पड़ गया था मैं ||
Thursday, August 9, 2012
देख कन्हैया आया हूँ...
देख कन्हैया आया हूँ,
चावल पोटली लाया हूँ,
थोड़ी मन में हीन-भावना,
इसलिए इससे छुपाया हूँ,
देख कन्हैया आया हूँ |
संग-सखा पहले थे,
अब राजन कहलाये हो,
हे! राजन कहने को,
लफ्ज़ जुबां पर लाया हूँ,
देख कन्हैया आया हूँ ||
मैं प्यासा हूँ सदियों से,
भूख लगी है सदियों से,
व्यथा सुनाने आया हूँ,
थोड़ी मन में हीन-भावना,
इसलिए इससे छुपाया हूँ,
चावल पोटली लाया हूँ,
देख कन्हैया आया हूँ |||
Wednesday, August 8, 2012
शाम की ढलती यादें...
शाम की ढलती यादें,
चाय और वो बातें,
मुझे कल की याद दिलाती है,
गुज़रे, पल की याद दिलाती है,
चाय की खुशबू जो महकी,
एक आस जो आँखों में चेह्की,
होंठों की खिलती वो हंसी,
उस कल की याद दिलाती है,
शाम की ढलती यादें,
गुज़रे पल की याद दिलाती है |
शाम का ढलता वो सूरज,
स्याह समुन्दर में लेता हिचकोले,
वो चाय से जलते होंठों को,
देख कर जाने क्यूँ दिल डोले,
चाय में सिमटी वो खुशबू,
मुझे तेरी याद दिलाती है,
उस गुज़रे बीते लम्हे की,
मुझे हर पल याद दिलाती है,
शाम की ढलती यादें,
चाय और वो बातें,
मुझे कल की याद दिलाती है,
गुज़रे, पल की याद दिलाती है ||
जाने किस गम की सजा...
चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने क्यूँ गम के घूट, पिए जा रहे है,
तन्हाई काटने लगी है अब तो,
फिर भी अकेले चले जा रहे है,
चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है |
बेचैनी बढ़ने लगी है,
गढ़ने लगी है एक दाएरा,
जो खालीपन को नासूर सा करने लगा है,
दिल भी रह रह कर, जलने लगा है, गलने लगा है,
पर, फिर भी चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है ||
दर्द की दरकार को अनसुना सा कर,
जो तुम्हारे भी दिल में करती है उथल-पुथल,
दिल की ज़मीनों पर सरहदें खींचे जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है,
चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने क्यूँ गम के घूट, पिए जा रहे है |||
जाने क्यूँ गम के घूट, पिए जा रहे है,
तन्हाई काटने लगी है अब तो,
फिर भी अकेले चले जा रहे है,
चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है |
बेचैनी बढ़ने लगी है,
गढ़ने लगी है एक दाएरा,
जो खालीपन को नासूर सा करने लगा है,
दिल भी रह रह कर, जलने लगा है, गलने लगा है,
पर, फिर भी चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है ||
दर्द की दरकार को अनसुना सा कर,
जो तुम्हारे भी दिल में करती है उथल-पुथल,
दिल की ज़मीनों पर सरहदें खींचे जा रहे है,
जाने किस गम की सजा दिए जा रहे है,
चुप बैठे है, जिए जा रहे है,
जाने क्यूँ गम के घूट, पिए जा रहे है |||
Monday, August 6, 2012
उलझी सी चाहत...
कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे, फिर क्यूँ लफ़्ज़ों की तलाश है,
क्यूँ उलझी सी चाहत है, क्यूँ उलझे जज़्बात है,
दिल की हर हसरत की खबर है तुमको,
यह भी जानता हूँ, मेरे दिल की समझ है तुमको,
फिर क्यूँ कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे, क्यूँ लफ़्ज़ों की तलाश है,
क्यूँ उलझी सी चाहत है, क्यूँ उलझे जज़्बात है ।
क्यूँ उलझी सी चाहत है, क्यूँ उलझे जज़्बात है,
दिल की हर हसरत की खबर है तुमको,
यह भी जानता हूँ, मेरे दिल की समझ है तुमको,
फिर क्यूँ कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे, क्यूँ लफ़्ज़ों की तलाश है,
क्यूँ उलझी सी चाहत है, क्यूँ उलझे जज़्बात है ।
Monday, July 30, 2012
होंठों पर वो आती नहीं...
कुछ बात है सीने में दबी-दबी, होंठों पर आती नहीं,
न मुझसे कहती, न तुम्हे बताती, लबों पर वो आती नहीं,
कहना है शायद कुछ उसको, लफ्ज़ वो मुनासिब पाती नहीं,
एक बात है दिल में दबी-दबी, होंठों पर वो आती नहीं ।
दिल में घुमड़-घुमड़ करती रही,
मन में उथल-पुथल चलती रही,
कानों में आ-आकर, मुझे कुछ बताती नहीं,
एक बात है दिल में दबी-दबी, होंठों पर वो आती नहीं ।।
न मुझसे कहती, न तुम्हे बताती, लबों पर वो आती नहीं,
कहना है शायद कुछ उसको, लफ्ज़ वो मुनासिब पाती नहीं,
एक बात है दिल में दबी-दबी, होंठों पर वो आती नहीं ।
दिल में घुमड़-घुमड़ करती रही,
मन में उथल-पुथल चलती रही,
कानों में आ-आकर, मुझे कुछ बताती नहीं,
एक बात है दिल में दबी-दबी, होंठों पर वो आती नहीं ।।
Thursday, July 26, 2012
उम्मीद के बादल...
दूर गाँव उम्मीद के बादल घरड-घरड लहराए,
छलकी-हलकी गगरी में, बरखा जल ले आये,
देख चिर्रैया, चिर-चिर बोली, बादल मुस्काये,
दूर गाँव उम्मीद के बादल बरखा जल ले आये ।
थोड़ी हवा चली, थोड़ी फिज़ा खिली,
कुछ पंछी भी लहराए,
छलकी-हलकी गगरी में, बरखा जल ले आये,
मैं प्यासा-तरसा खड़ा था नीचे,
बूंदों की आस में आँखे मीचे,
जन्मों का प्यासा हो जैसे,
राही, भटका-प्यासा देख कर मुझको, बादल भी मुस्काये,
दूर गाँव उम्मीद के बादल घरड-घरड लहराए ।।
छलकी-हलकी गगरी में, बरखा जल ले आये,
देख चिर्रैया, चिर-चिर बोली, बादल मुस्काये,
दूर गाँव उम्मीद के बादल बरखा जल ले आये ।
थोड़ी हवा चली, थोड़ी फिज़ा खिली,
कुछ पंछी भी लहराए,
छलकी-हलकी गगरी में, बरखा जल ले आये,
मैं प्यासा-तरसा खड़ा था नीचे,
बूंदों की आस में आँखे मीचे,
जन्मों का प्यासा हो जैसे,
राही, भटका-प्यासा देख कर मुझको, बादल भी मुस्काये,
दूर गाँव उम्मीद के बादल घरड-घरड लहराए ।।
आम-जन की खीज...
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
जग की सबसे बड़ी व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच,
विरह बड़ी थी, जंग छिड़ी थी,
सत-पुरुषों के बीच,
सावन आया, बरखा नहीं लाया,
सूखा पड़ गया, राही मर गया,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज,
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच ।
सब-जन कर गए त्राहिमाम,
जर-जर धरती का काम तमाम,
प्यासों की एक जंग छिड़ी थी,
सत-पुरुषों की फ़ोज खड़ी थी,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज,
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीचे ।।
मैं अनपढ़-गूंड जर-जर काया,
सत-पुरुषों में खोयी काया,
एक आस रख, तक कर देखी,
इन्द्र-देव की ओर,
मनन-मन विनती कर,
इन्द्र-देव की ओर,
सब-जन कर गए त्राहिमाम,
जर-जर धरती का काम तमाम,
प्यासों की जो यह जंग छिड़ी है,
सत-पुरुषों की जो यह फ़ौज खड़ी है,
बरसा नभ से झर-झर जल,
प्यासे मन को तर कर दो,
बरसा नभ से झर-झर जल,
सबकी विरह तर दो ।
छंद कथा थी, विरह व्यथा थी,
मैं खड़ा हुआ था, सत-पुरुषों के बीच,
क्या इन्द्र-देव को नहीं दिखती, आम-जन की खीज ।।
ज़िन्दगी...
कभी धुप, कभी छांव सी ज़िन्दगी,
दूर बस्ती, एक गाँव सी ज़िन्दगी,
न रुक ज़माने के मंज़र देख,
चलते ही रहना है ज़िन्दगी...
कभी आग का दरिया तैर पार करना ज़िन्दगी,
कभी ठोकरों से मिली हार का सम्मान करना ज़िन्दगी,
मचलती लहरों पर सवार होना ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी की नौका को नैय्या पार करना ज़िन्दगी,
न रुक ज़माने के मंज़र देख,
क्यूंकि, चलते ही रहना है ज़िन्दगी।
दूर बस्ती, एक गाँव सी ज़िन्दगी,
न रुक ज़माने के मंज़र देख,
चलते ही रहना है ज़िन्दगी...
कभी आग का दरिया तैर पार करना ज़िन्दगी,
कभी ठोकरों से मिली हार का सम्मान करना ज़िन्दगी,
मचलती लहरों पर सवार होना ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी की नौका को नैय्या पार करना ज़िन्दगी,
न रुक ज़माने के मंज़र देख,
क्यूंकि, चलते ही रहना है ज़िन्दगी।
Wednesday, July 18, 2012
मैं गया नहीं हूँ...
मैं गया नहीं हूँ, हूँ जिंदा कहीं राहों में,
मैं मिटा जरूर हूँ, पर जिंदा हूँ दिलों की चाहों में,
एक छाप छोड़, ज़िन्दगी का जाम पिया मैंने,
एक आस छोड़, ज़िन्दगी को नाम किया मैंने,
मैं गया नहीं हूँ, हूँ जिंदा कहीं राहों में,
मैं मिटा जरूर हूँ, पर जिंदा हूँ दिलों की चाहों में ।
मैं मिटा जरूर हूँ, पर जिंदा हूँ दिलों की चाहों में,
एक छाप छोड़, ज़िन्दगी का जाम पिया मैंने,
एक आस छोड़, ज़िन्दगी को नाम किया मैंने,
मैं गया नहीं हूँ, हूँ जिंदा कहीं राहों में,
मैं मिटा जरूर हूँ, पर जिंदा हूँ दिलों की चाहों में ।
Sunday, July 8, 2012
भवरे की चाहत...
जब लिखने बैठा सोच में, खो गए लफ्ज़ जो कहने को,
भवरे की चाहत देख कर मैं, यूँ होले-होले मुस्काया,
लिखने की चाहत जागी, भवरा दिल यूँ शरमाया,
कली जो मुस्कुरायी देख कर मैं, भवरा दिल उड़ते आया,
भवरे की चाहत देख कर मैं, जाने क्यों शरमाया,
जब लिखने बैठा सोच में मैं, खो गए लफ्ज़ जो कहने को,
लफ्ज़ नहीं मेरे पास, भवरे की चाहत कहने को ।
कभी यहाँ उड़ा, कभी वहां उड़ा,
घुमा फिर-फिर वो कहने को,
कभी भूला-भटका फूलों टहनी,
अपनी चाहत को कहने को,
कली जो मुस्कुराई देख कर मैं, भवरा दिल उड़ते आया,
भवरे की चाहत देख कर मैं, जाने क्यूँ शरमाया,
जब लिखने बैठा सोच में मैं, खो गए लफ्ज़ जो कहने को,
लफ्ज़ नहीं मेरे पास, भवरे की चाहत कहने को ।।
Friday, July 6, 2012
मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं...
मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
जो किसी के दिल की विरह बन जाए,
सच्चे दिल की पीड़ा कह जाए,
लफ़्ज़ों अश्कों में मिल जाए,
जग से दिल की व्यथा कह जाए,
लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं ।
कभी सोचा मैं भी कुछ लिख दूं,
लिख कर दिल की विरह कह दूं,
कभी लफ्ज़ मुनासिब न मिल पाते,
दिल से दिल की वो कह न पाते,
डर-डर कर अब न कुछ लिख दूं,
लिख कर दिल की विरह कह दूं,
क्यूँ? क्यूंकि, मेरे लफ़्ज़ों में वो जान नहीं,
मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं ।।
लिख कर मैंने यूँ जीना सीखा,
दुनिया का दुःख सहना सीखा,
कह कर अपनी छोटी बात,
रख दी दिल की छोटी आस,
दुनिया से सब कुछ कह दूं,
कभी सोचा मैं भी कुछ लिख दूं,
कुछ-कुछ लिख कर सब कुछ कह दूं,
पर, मेरे लफ़्ज़ों में वो गान नहीं,
लफ़्ज़ों में मेरे वो जान नहीं ।।।
Thursday, July 5, 2012
चातक ने आवाज़ लगायी...
चातक ने आवाज़ लगायी, प्यासे मन से विरह आई,
अब तो आ जाओ काले बदरा, बरसो नभ से, प्यासा मनवा,
अब तो हो गयी त्राहि-त्राहि, प्यासे मन से विरह आई,
धुप लगी है चुभने-चुभने,
मन लगा है ऊबने-ऊबने,
पतझड़ ने भी ली अंगड़ाई,
प्यासे मन से विरह आई, चातक ने आवाज़ लगायी ।
हवा गरम है,
उमस न यह कम है,
चुभती सूरज की ये अंगड़ाई,
चातक ने आवाज़ लगायी,
प्यासे मन से विरह आई,
ऐसा क्यूँ है अत्याचार,
जीवों में है हाहाकार,
सबकी जीवाः घबराई,
मन से यह आवाज़ लगायी,
प्यासे मन से विरह आई,
चातक ने आवाज़ लगायी ।
सफ़र...
उड़ चला मैं ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे,
आँख खुली तो देखी दुनिया,
जो नोचने, काटने को दौड़ती दुनिया,
पर फिर भी उड़ चला ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे,
कभी रास्ता भूला, कभी भटका अनजाने सफ़र पे,
कभी चलता रहा, जीने की चाह के सफ़र पे,
चलता रहा दुनिया की भीड़ में,
उलझा रहा रिश्तों की जंजीर में,
बस उड़ चला ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे ।
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे,
आँख खुली तो देखी दुनिया,
जो नोचने, काटने को दौड़ती दुनिया,
पर फिर भी उड़ चला ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे,
कभी रास्ता भूला, कभी भटका अनजाने सफ़र पे,
कभी चलता रहा, जीने की चाह के सफ़र पे,
चलता रहा दुनिया की भीड़ में,
उलझा रहा रिश्तों की जंजीर में,
बस उड़ चला ज़िन्दगी के सफ़र पे,
न चाह, न राह, इच्छाओं के अनजाने सफ़र पे ।
चाहत...
एक, अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को है टटोलती,
कभी राज़-इ-दिल खोलती,
तो कभी अश्कों सी बोलती,
यादों का स्याह समुन्दर,
गहरा हो खोजता अथाह अर्थ को,
ज़िन्दगी के अनचाहे पहलूँ को सांसें टटोलती,
एक अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को है टटोलती ।
कभी गुज़रता वक़्त रुकता, देखता मुड़ कर,
खोजता अपने होने की वजह, सोचता रुक कर,
कभी सहम जाता ज़िन्दगी के दर्द और सितमों से,
तो कभी फूटता, रोता अन्दर ही अन्दर रह-रह कर,
एक अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को टटोलती,
कभी राज़-इ-दिल खोलती,
तो कभी अश्कों में बोलती ।।
जो बचपन की यादों को है टटोलती,
कभी राज़-इ-दिल खोलती,
तो कभी अश्कों सी बोलती,
यादों का स्याह समुन्दर,
गहरा हो खोजता अथाह अर्थ को,
ज़िन्दगी के अनचाहे पहलूँ को सांसें टटोलती,
एक अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को है टटोलती ।
कभी गुज़रता वक़्त रुकता, देखता मुड़ कर,
खोजता अपने होने की वजह, सोचता रुक कर,
कभी सहम जाता ज़िन्दगी के दर्द और सितमों से,
तो कभी फूटता, रोता अन्दर ही अन्दर रह-रह कर,
एक अजीब सी चाहत है जागी,
जो बचपन की यादों को टटोलती,
कभी राज़-इ-दिल खोलती,
तो कभी अश्कों में बोलती ।।
राह गुजरी...
वक़्त गुज़रा, मैं जो बैठा, जाने किस किस सोच में,
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में,
वक़्त का फलसफा जो देखा, आया न कुछ रास ये,
थाम कलम जो लिखने बैठा, आया न कुछ पास में,
वक़्त गुज़रा, मैं जो बैठा, जाने किस किस सोच में,
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में ।
ज़ख्म-इ-दिल बेहाल था,
दर्द का जंजाल था,
घाव गहरे थे हरे,
चेहरे, दर्द से सूखे पड़े,
वक़्त का फलसफा जो देखा, आया न कुछ रास ये,
थाम कलम जो लिखने बैठा, आया न कुछ पास ये,
वक़्त गुज़रा, मैं जो बैठा, जाने किस किस सोच में,
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में ।।
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में,
वक़्त का फलसफा जो देखा, आया न कुछ रास ये,
थाम कलम जो लिखने बैठा, आया न कुछ पास में,
वक़्त गुज़रा, मैं जो बैठा, जाने किस किस सोच में,
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में ।
ज़ख्म-इ-दिल बेहाल था,
दर्द का जंजाल था,
घाव गहरे थे हरे,
चेहरे, दर्द से सूखे पड़े,
वक़्त का फलसफा जो देखा, आया न कुछ रास ये,
थाम कलम जो लिखने बैठा, आया न कुछ पास ये,
वक़्त गुज़रा, मैं जो बैठा, जाने किस किस सोच में,
राह गुजरी, मंजिलें गुजरी, राही दिलबर खोज में ।।
Tuesday, June 19, 2012
बस यूँ ही...
लोग बदले नहीं...
लोग बदले नहीं, बदला वक़्त का मिजाज़ है,
चेहरे वहीँ पुराने है, बदले उनके अंदाज़ है,
मैं ये सोचता हूँ, क्या बदलना वक़्त की हकीकत है?
या यूँ ही परिवर्तन ज़िन्दगी का लिबास है,
लोग बदले नहीं, बदला वक़्त का मिजाज़ है ।
गैरत...
अब भी बेगैरत को गैरत नहीं कि आ कर मुझसे कहे,
बता नाराज़गी की वजह क्या है ।
जल रहा है क्यूँ,
यूँ जलने की वजह क्या है ।।
बेरंग...
जो बेरंग है, उसमे ही सब रंग है,
लोग बदले नहीं, बदला वक़्त का मिजाज़ है,
चेहरे वहीँ पुराने है, बदले उनके अंदाज़ है,
मैं ये सोचता हूँ, क्या बदलना वक़्त की हकीकत है?
या यूँ ही परिवर्तन ज़िन्दगी का लिबास है,
लोग बदले नहीं, बदला वक़्त का मिजाज़ है ।
गैरत...
अब भी बेगैरत को गैरत नहीं कि आ कर मुझसे कहे,
बता नाराज़गी की वजह क्या है ।
जल रहा है क्यूँ,
यूँ जलने की वजह क्या है ।।
बेरंग...
जो बेरंग है, उसमे ही सब रंग है,
वर्ना तो दुनिया में सब मलंग है,
खुद की कहाँ फ़िक्र है ज़माने में,
ये तो अश्कों का लिबास है जो छुपाये सारे रंग है ।
आँखों का रंग...
आँखों का रंग, पानी सा निखर गया,
सुर्ख इतना हुआ, नासूर सा नज़र गया,
रात इतनी गहरी थी, तकिये पर सारी दुनिया ही बह गयी मेरी,
और मैं यह तनहा सोचता रहा, जाने क्या असर गया,
आँखों का रंग, पानी सा निखर गया,
सुर्ख इतना हुआ, नासूर का नज़र गया ।
आँखों का रंग...
आँखों का रंग, पानी सा निखर गया,
सुर्ख इतना हुआ, नासूर सा नज़र गया,
रात इतनी गहरी थी, तकिये पर सारी दुनिया ही बह गयी मेरी,
और मैं यह तनहा सोचता रहा, जाने क्या असर गया,
आँखों का रंग, पानी सा निखर गया,
सुर्ख इतना हुआ, नासूर का नज़र गया ।
मैं पत्थर हूँ या इंसान...
मैं पत्थर हूँ या इंसान,
मेरी आदत से यह न जान,
शकल मेरी मानव सी है,
पर अन्दर से शैतान,
मैं पत्थर हूँ या इंसान,
मेरी आदत से यह न जान ।
मेरी आदत से यह न जान,
शकल मेरी मानव सी है,
पर अन्दर से शैतान,
मैं पत्थर हूँ या इंसान,
मेरी आदत से यह न जान ।
आँखों का किनारा सूख गया...
उन कुचले मैले पन्नों में,
यादों के कितने छंदों में,
आँखों का किनारा सूख गया,
यादों का सहारा रूठ गया,
जो दबे पड़े थे पन्नों में,
यादों के कितने छंदों में,
बातों का सहारा टूट गया,
आँखों का किनारा सूख गया ।
एक आस दबी थी सीने में,
जो दर्द था इतना जीने में,
उन, यादों का सहारा रूठ गया,
बातों का किनारा छूट गया,
कोई अपना जैसे रूठ गया,
जो मिला पुराने पन्नों में,
यादों के कितने छंदों में,
उन, बातों का सहारा छूट गया,
आँखों का किनारा सूख गया ।।
यादों के कितने छंदों में,
आँखों का किनारा सूख गया,
यादों का सहारा रूठ गया,
जो दबे पड़े थे पन्नों में,
यादों के कितने छंदों में,
बातों का सहारा टूट गया,
आँखों का किनारा सूख गया ।
एक आस दबी थी सीने में,
जो दर्द था इतना जीने में,
उन, यादों का सहारा रूठ गया,
बातों का किनारा छूट गया,
कोई अपना जैसे रूठ गया,
जो मिला पुराने पन्नों में,
यादों के कितने छंदों में,
उन, बातों का सहारा छूट गया,
आँखों का किनारा सूख गया ।।
ख़्वाबों का सहारा...
यादों का सहारा होता है, बातों का सहारा होता है,
कुछ दर्द देती बातों में, ख़्वाबों का सहारा होता है,
तुम चले गए मेरी दुनिया से,
यादों के सहारे छोड़ गए,
बस आह भरी इन साँसों ने,
बातों के सिरहाने छोड़ गए,
गीली यादों का सहारा होता है, कुछ बातों का सहारा होता है,
इन दर्द भरी रातों में, तुम्हारी यादों का सहारा होता है ।
कुछ दर्द देती बातों में, ख़्वाबों का सहारा होता है,
तुम चले गए मेरी दुनिया से,
यादों के सहारे छोड़ गए,
बस आह भरी इन साँसों ने,
बातों के सिरहाने छोड़ गए,
गीली यादों का सहारा होता है, कुछ बातों का सहारा होता है,
इन दर्द भरी रातों में, तुम्हारी यादों का सहारा होता है ।
Thursday, June 7, 2012
Wednesday, June 6, 2012
यादों के है रंग सुनहरे...
ये चाँद, ये दूरियां, ये बादलों की मजबूरियां,
कभी खोजती आँखें, आँखों में बातें,
तो कभी यादों की मजबूरियां,
ये चाँद, ये दूरियां, ये बादलों की मजबूरियां।
कभी तकती आँखें, आँखों में यादें,
कभी जागती निगाहों में, सपनो की बातें,
तो कभी बातों की मजबूरियां,
ये चाँद, ये दूरियां, ये बादलों की मजबूरियां ।।
कभी रंग-बिरंगी छटा बिखेरे,
कभी स्याह रंगों के है रंग सुनहरे,
कभी अनकही बातों की है मजबूरियां,
ये चाँद, ये दूरियां, ये बादलों की मजबूरियां ।।।
कभी रंग सुनहरे, कभी काले घेरे,
यादों के है कई रंग सुनहरे,
कभी आंसू छलकते, कभी मन पिघल के,
कभी दिल की चोटों के है घाव गहरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।
एक याद पुरानी-ताज़ी सी,
कुछ अच्छी सी, कुछ बासी सी,
दिल में घुमड़-घुमड़ करने लगी,
मन में उथल-पुथल करने लगी,
उलझी यादों के पहरे, काले-नीले घेरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।।
बूँद-बूँद को है तरसते...
बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।
कभी तड़पते, कभी बिलखते,
रहते सारे दिन,
जब खूब मिले, तृप्ति से ज्यादा,
व्यर्थ करे पलछिन,
बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।।
कभी गाड़ी पर व्यर्थ करे,
धरती का अनर्थ करे,
जब दो बूँद को तरसे मन,
चेहरों पर सूखा यौवन,
बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।।।
यूँ ही राह चलते...
दो राही...
एक रास्ता खोजते राही,
कुछ सूझते, कुछ पूछते,
आँखों ही आँखों में, मंजिल की तलाश में रहते,
आस की बाट जोहते, एक रास्ता खोजते रही ।
कभी होते भीड़ में गुम,
कभी रहते वो गुम-सुम,
आँखों से मंजिलों को खोजते दो राही,
एक रास्ता खोजते राही ।।
कभी भीड़ की धुल में,
कभी ज़िन्दगी की मशगूल में,
खोते राही,
एक रास्ता खोजते राही ।
कभी जाने-पहचाने से,
कभी चेहरे अनजाने से,
एक रास्ता खोजते राही ।।
एक अनजानी शकल में,
कभी सब्र, कभी बे-सब्र से,
मंजिलों के निशाँ खोजते दो राही,
एक रास्ता खोजते राही ।।।
ये लफ्ज़ नहीं...
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है,
कुछ उलझे से ख्यालात है,
कभी खोजते, कभी सोचते,
अपने होने की वजह,
कभी देखते, कभी सीखते,
अपने खोने की वजह,
ये अनसुलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है ।
कभी राही बन भटकते,
कभी सुर बन चहकते,
कभी बजते ताल से,
कभी सुर-झंकार से,
ये उलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है ।।
कभी पंछियों से चहकते,
कभी बागी से भटकते,
कभी इबादत से बोल,
कभी खून से खौलते,
ये खुद में उलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं जज़्बात है ।।।
बातें गुज़र कर रह गयी...
न मैं गुज़रा, न तू गुज़रा,
बस यादें गुज़र कर रह गयी,
कुछ बातें दिल में उतर कर रह गयी,
कल वक़्त गुज़रा, बातें गुज़र कर रह गयी,
न तू गुज़रा, न मैं गुज़रा,
बस आहें गुज़र कर रह गयी ।
कभी तू रुका, कभी मैं रुका,
वक़्त न रुक कर रह गया,
बस आहें सिमट कर रह गयी,
कुछ यादें सिमट कर रह गयी,
न मैं गुज़रा, न तू गुज़रा,
बस बातें गुज़र कर रह गयी ।।
चंचल मन...
चंचल मन, कितनी कौतुहल,
लफ़्ज़ों, यादों, बातों का दाएरा, दिल में उथल-पुथल,
कुछ सवाल करते खुद से, और जवाब मुझसे मांगती,
कुछ यादें संभाले हुए, दिल की दीवारों पर है टांगती,
अपनी ही उधेड़बुन में मगन, दिल में हलचल,
चंचल मन, कितनी कौतुहल,
होंठ सिले बैठी, मासूमियत से ताकती,
ज़हन परेशान, सवालों से लथ-पथ नज़रों से झांकती,
ये लफ़्ज़ों का दाएरा, दिल में उथल-पुथल,
चंचल मन, कितनी कौतुहल ।
कुछ काले-गोरे चेहरे,
चेहरों पर यादों के घेरे,
झुर्रियों से झांकता बचपन,
ज़िन्दगी की दौड़ में खोता यौवन,
बातों का दाएरा, दिल में हलचल,
चंचल मन, कितनी कौतुहल,
ज़िन्दगी का सफ़र, क्यूँ है रुकता नहीं,
चलता ही रहता हूँ, मैं भी थकता नहीं,
यादों में खुद से मुलाकातों का यौवन,
इस बे-मतलब दौड़ में, मेरा खोया बचपन,
यादों का दरिया, दिल में मंथन,
चंचल मन, कितनी कौतुहल ।।।
अनजान मुसाफिर...
अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका,
पुछा मुझसे क्या करते हो,
यूँ रेलों में क्यूँ फिरते हो,
मैं बोला सज्जन-इ-मानुस,
लोगों के चेहरे पढ़ता हूँ,
यादों को ज़िंदा करता हूँ,
एक अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका ।
कभी बैठा मेरे इधर-उधर,
कभी झाँका मेरे लेखन पर,
पुछा मुझसे क्या करते हो,
यूँ रेलों में क्यूँ फिरते हो,
मैं बोला सज्जन-इ-मानुस,
लोगों के चेहरे पढ़ता हूँ,
यादों को ज़िंदा करता हूँ,
एक अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका ।।
Tuesday, June 5, 2012
मेरी कोई पहचान नहीं...
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम?
मेरी कोई पहचान नहीं,
भीड़ में खोया रहता हूँ,
मेरा कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं ।
एक चेहरा हूँ अनजाना सा,
कुछ जाना सा, पहचाना सा,
मेरा वजूद, न नाम नहीं,
एक चेहरा हूँ गुमनाम सा,
मेरी कोई पहचान नहीं ।।
रहता हूँ सबके बीच,
पर सब मुझसे अनजान है,
कुछ दोस्त समझते है दुश्मन,
मेरा कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मेरी कोई पहचान नहीं ।
भीड़ का हिस्सा हो कर भी,
हूँ भीड़ से मैं जुदा-जुदा,
कुछ रहते मुझसे खुश-खुश, कुछ रहते मुझसे खफ़ा-खफ़ा,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मेरी कोई पहचान नहीं ।।
कभी ढोंगी, कभी पाखंडी सा,
कभी हूँ शिव-अखंडी सा,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मैं कहता, मेरी कोई पहचान नहीं ।।।
गीली यादों के ताज...
गुज़र गया बादल, छोड़ गया गीली बूंदों के साज़,
सोंधी मिट्टी की खुशबू, गीली यादों के ताज,
बादल जो गुज़रा, संग एक वक़्त गुज़र गया,
तनहा मैं देखता रहा, यादों का साहिल ठहर गया,
कुछ बूँदें तन पर गिरी और भीग गया मन,
आँखें नम थी, दिल में थी यादों की सिरहन,
गुज़र गया बादल, छोड़ गया गीली बूंदों के साज़,
सोंधी मिट्टी की खुशबू, गीली यादों के ताज ।
कुछ छलकी, कुछ महकी बूँदें,
कुछ बिखरी, कुछ चहकी बूँदें,
भीगता रहा तन, पर जल रहा था मन,
भीगते तन में जागी यादों की सिरहन,
गुज़र गया बादल, छोड़ गया गीली बूंदों के साज़,
सोंधी मिट्टी की खुशबू, गीली यादों के ताज ।।
Monday, May 28, 2012
एक शख्स बैठा पास में...

एक शख्स बैठा पास में,
एक नए अंदाज़ में,
कभी झाँक, कभी ताकता,
हर चेहरा नये लिबास में,
कभी हिलता, कभी डुलता,
एक नये अंदाज़ में,
एक शख्स बैठा पास में ।
बैचैन नज़रें ताकती, आँखें, सवालों सी है झांकती,
कुछ पूछती, कुछ जानती,
कुछ जवाब मुझसे मांगती,
मैं नज़रें चुरा खो जाता अपने लफ़्ज़ों में,
रह जाता तनहा वो, खो जाता अपने जज्बों में,
कभी झांकता, कभी ताकता,
हर चेहरा नये लिबास में,
एक शख्स बैठा पास में,
एक नए अंदाज़ में ।।
रास्ते की दूरियां...
ये रास्ते की दूरियां,
ये ख़्वाबों की मजबूरियां,
जन्नतें खोजती आँखें,
पर्दा-नशीं जहान में डूबी सांसें,
खोजती है जीने का मकसद,
झांकती है, ताकती है, खोजती है अपने होने का निशान,
कभी बनाती, कभी मिटाती ख़्वाबों के मकान,
बस दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में, खोजती अपने होने का मकसद,
ये रास्ते की दूरियां,
ये ख़्वाबों की मजबूरियां ।
कुछ धुंधले पड़ते चेहरे,
कुछ पर यादों के घने पहरे,
आँखों में तैरती यादें,
होंठों पर सौ बातें,
खोजती अपने होने की वजह,
जीती, अपने होने की सज़ा,
ये बढ़ती दिलों में रास्तों की दूरियां,
ये उलझे ख़्वाबों की मजबूरियां ।।
Friday, May 18, 2012
तेरी तस्वीरों में झांकते-झांकते...
तेरी तस्वीरों में झांकते-झांकते खुद की तस्वीर बदल गयी,
अश्क बिखरते रहे, चेहरे की जागीर बदल गयी,
जो हँसता था गोया हर किसी के लिए,
जो मरता था गोया हेर किसी के लिए,
आज, उसके चेहरे की जागीर बदल गयी,
तेरी तस्वीरों में झांकते-झांकते खुद की तस्वीर बदल गयी...
होसला न अब हंसने का, न होता है सनम,
तेरी दर्द भरी रुसवाइयों का, इतना है करम,
हँसता हूँ चेहरे का दर्द छुपाने के लिए,
बोलता हूँ तेरा गम भुलाने के लिए,
अश्क बिखेरते-बिखेरते चेहरे की जागीर बदल गयी,
तेरी तस्वीरों में झांकते-झांकते खुद की तस्वीर बदल गयी ।।
Thursday, April 26, 2012
बरखा-ऋतु आई...

दूर शितिज पर खुशियों का बादल छाया,
फिज़ाओ की रंगत बदली, अंधियारे की छटा-छाया,
दूर नभ में, बूंदों ने ली अंगड़ाई,
परबत पर बदरी छायी, बरखा-ऋतु आई...
देखते ही देखते, कई सुर और ताल छिड़ गए,
बूँदें बरसने लगी मुझ पर, लफ्ज़ मचल गए,
देखते ही देखते यौवन ने ली अंगड़ाई,
परबत पर बदरी छायी, बरखा-ऋतु आई...
हरी छोटी पत्तियों का झूम उठा संसार,
मैं, बालक मन करने लगा पुकार,
मिटटी की खुशबू उठी, बचपन ने ली अंगड़ाई,
दूर शितिज पर खुशियों की बदरी छायी,
फिज़ाओ की रंगत बदली, बरखा-ऋतु आई...
रात गुजरी...
एक रात गुजरी, यादों का स्याह आसमान गुज़र गया,
आँखों से निकल, तकिये पर सारा जहान बिखर गया,
वो कल सुबह का सपना था,
चाह कर भी न वो अपना था,
यादों का तनहा लम्हा था,
बातों का उलझा लम्हा था,
एक रात गुजरी, यादों का स्याह आसमान गुज़र गया,
आँखों से निकल, तकिये पर सारा जहान बिखर गया...
वो अपना था या सपना था,
चाह कर भी वो न अपना था,
था साथ चलता राहों में,
रहता हर पल चाहों में,
फिर क्यूँ न वो अपना था,
आँखों का बस वो सपना था...
एक बात दबी थी सीने में,
एक आस छुपी थी जीने में,
अब आस का न वो सपना है,
चाह कर भी वो न अपना है,
जो रात गुजरी, यादों का स्याह आसमान गुज़र गया,
आँखों से निकल, तकिये पर सारा जहान बिखर गया...
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