Sunday, December 15, 2013

बीते है कई 16 दिसम्बर...

नशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म का शिकार हो गयी,
बीते है कई 16 दिसम्बर,
पर, ये ख़बर बार-बार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म की शिकार हो गयी ।

साल-दर-साल बीते,
पर, ये आफ़त कई बार हो गयी,
बस भूखे भेड़िये है शहर में,
नपुंसकता की भी हद पार हो गयी,
सरकारें कई है बदली,
पर शायद ये भी लाचार हो गयी,
आदत सी बन गयी है ऐसी ख़बरों की,
तो, निर्भया एक क्या हज़ार हो गयी,
अब शायद फ़र्क ही नहीं पड़ता अभिनव,
सबकी मानसिकता ही लाचार हो गयी,
एक और नारी जुर्म का शिकार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी ।।

काश! कलम का जोर चलाता अभिनव,
तो, कुछ ताकतें कई हज़ार हो गयी,
अब, बेबस और मायूसी का मंज़र है शहर में,
मेरे मुल्क की आब-ओ-हवा भी बेकार हो गयी,
कोफ़्त और कुढ़न होती है खुद से,
दर्द की लहरें कई हज़ार हो गयी,
पर, आदत सी बन गयी है ऐसी ख़बरों की,
तो, निर्भया एक क्या हज़ार हो गयी,
नाशंस्त्रता की हद पार हो गयी,
एक और नारी जुर्म की शिकार हो गयी ।।।

Sunday, December 8, 2013

मोहोब्बत का सितम...

बड़े बेसब्र है ये दूरियों के पल,
काटे कटते ही नहीं इंतज़ार में ।

आँखें भी थक गयी है सुर्ख़ होते-होते,
पानी की तलाश में तनहा हो कर ।

कब तक आरज़ू लिए तकता रहूँ वक़्त के पहरों को,
कब से रुके है कमबख्त इक ही मोड़ पर ।

मेरे चेहरे पर इतनी पेशानियाँ न थी पहले,
शायद, वक़्त की झुर्रियाँ और सब्र के ज़ख्म नज़र आते है ।

बड़ी परेशां है रात आज,
गुज़रती ही नहीं मेरे कहने से ।

ओ रात के मुसाफ़िर हमको भी साथ ले-ले,
कुछ वक़्त तुझ संग ही काट लेगा अभिनव ।

पल न दे जुदाई के ए ख़ुदा,
खुद से दूरियां बर्दाश्त नहीं होती ।

उफ़ ये मोहोब्बत का सितम,
न आराम है, और न सुकून ।

आरज़ू-ए-इश्क़ की बस इतनी रज़ा हो,
कि, कोई पल न गुज़रे उसके बिना ।

कुछ ऐसी भी रंजिशें हुई मोहोब्बत की,
कि, कुछ अपनों की मोहोब्बत मुझसे रूठ गयी ।

Thursday, December 5, 2013

मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा...

मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा,
शायद कुछ आज लिखूंगा,
कल का एक राज़ लिखूंगा,
मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा ।

पढ़ कर दूजे की पंगती,
दिल का वो राज़ लिखूंगा,
जो समझा हूँ ज़िन्दगी का साज़,
वो ही मैं आज लिखूंगा,
दिल का एक राज़ लिखूंगा,
मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा ।।

हूँ अनपढ़ फिर भी एक बात लिखूंगा,
नहीं आता कुछ भी, 
अपने जीवन का साज़ लिखूंगा,
जो सीखा हूँ दूजो से कल तक,
वो ही मैं आज लिखूंगा,
मैं भी कुछ ख़ास लिखूंगा ।।।

मासूम सा एहसास...






















एक मासूम सा एहसास लिए फिरता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ,
आसमां की परी है,
या आफ़त की छोटी पुड़िया लिए फिरता हूँ,
एक मासूम सा एहसास लिए फिरता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ ।

तन से जुड़ी हो जैसे, ऐसा कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ,
मौजूदगी नहीं है बावस्ता, फिर भी एहसास लिए फिरता हूँ,
मासूम सी छोटी उँगलियाँ, आँखों की चमक कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ,
एक मासूम सा एहसास लिए फिरता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए फिरता हूँ ।।

लिखता हूँ...

कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ,
जाने क्या-क्या सोच लिखता हूँ,
ख़्यालों का बोझ लिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

उलझा हुआ एक ओझ दिखता हूँ,
चेहरों पर मैं रोज़ दिखता हूँ,
फिर भी एक खोज दिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

परायों में सोच दिखता हूँ,
अपनों में एक खोज दिखता हूँ,
क़ब्र पर मैं रोज़ दिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

दर्द को हर रोज़ लिखता हूँ,
फिर भी कम-कम सोच लिखता हूँ,
नाम मैं उसका खोज लिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

सुबह मेरी...

बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी सुर्ख़ लाल,
रात काली गुजरी थी,
या गुज़रा था हाल,
दिल टूटे कई,
खुद भी रहा बेहाल,
बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी सुर्ख़ लाल ।

अजब कहानी थी मेरी,
चाह दिवानी थी मेरी,
पर गहरे घावों से बेहाल,
आँखें थी सुर्ख़ लाल,
बात छुपायी थी मैंने,
क्यूँ न बताई थी मैंने,
क्यूँ रहा बेहाल,
दर्द दिया हर-हाल,
रात काली गुजरी थी,
या गुज़रा था हाल,
बड़ी भारी थी सुबह मेरी,
आँखें थी लाल ।।

शाम...

गुज़र रहे है बादल, शाम भी ढल रही है,
हवाओं का मिजाज़ है बदला, कलम भी चल रही है,
सुर्ख़ियों में शोलों की नरमाई पिघल रही है,
चांदनी की घटा, संग-संग चल रही है,
मेरी रुमानियों की झलकियाँ सवर रही है,
हवाओं का मिजाज़ है बदला, कलम भी चल रही है ।

सब पूछेंगे आज, हिना में निखार क्यूँ है,
सच-सच बताओ सखी, इतना प्यार क्यूँ है,
कह देना उन्हें, कि उनकी ख्वाहिशों का रंग है चढ़ा,
शोखियाँ क्या बताये इतना प्यार क्यूँ है ।

हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ...





















चलो इकरार करता हूँ,
हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ,
सोचा था बस कुछ रोज़ करूँ,
अब रोज़ कई बार करता हूँ,
चलो इकरार करता हूँ,
हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ ।

एक दोस्त, प्रेमिका और अर्धांगिनी सा ऐतबार करता हूँ,
तेरी प्रीत की चाहत में दुनिया को दर-किनार करता हूँ,
साल दर साल बीते तुझ संग,
यही दुआ हर बार करता हूँ,
सोचा था कुछ रोज़ करूँ,
अब रोज़ कई बार करता हूँ,
चलो इकरार करता हूँ,
हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ ।

दिन पर दिन...

बहुत मतलबी हो गया हूँ तुझसे मिलने के बाद,
तेरे जाने के डर से रूह को तकलीफ़ होती है ।

दिन पर दिन तुझसे मोहोब्बत करते-करते,
कब आदत सी बन गयी ख़बर नहीं ।

बड़ी परेशां सी गुजरी है रात,
सोचता हूँ सुबह का हश्र क्या होगा ।

आज, फिर उसका दिल दुखाया है,
सोचता हूँ खुद को सजा क्या दूं ।

मंदिरों के बाहर एक कतार देखी है मैंने,
ज़िन्दगी की आस में हाँथ जोड़े खड़े रहते है ।

आधे अक्षर में पूरी मोहोब्बत की मैंने,
आधे, लफ़्ज़ों को लफ़्ज़ों में ही छोड़ा अभिनव ।

बड़े चेहरे बदलने पड़ते है वक़्त-दर-वक़्त,
टूट कर, एक ऐसा भी हुनर पाया हमने ।

बर्दाश्त की भी हद देखी है अभिनव,
हम पर भी इश्क़ का कुछ यूँ रंग चढ़ा ।

ख़्वाबों की भी बोलियाँ लगती है इस बाज़ार में,
आशिकों की फितरत कुछ ऐसी भी देखी है ।

बहुत दिनों बाद मुलाक़ात हुई तुझसे,
सोचता हूँ कुछ पल यूँ ही ठहर लूं ।

बड़ी गफ़लत है ज़िन्दगी,
तू पास भी है फिर भी एक दूरी है ।

पुरानी तस्वीरें देख कर गहराता है प्यार तेरा,
मैं ये सोचता हूँ कि कशिश तस्वीरों में है या प्यार में तेरे ।

इश्क़ के बाज़ार में सौदे भी अजीब किये मैंने,
कि, हर जगह बस दर्द का मुनाफ़ा हो गया ।

दिखता है चेहरा ही बाज़ार में,
यहाँ इश्क़ में दिल नहीं दिखा करते ।

बहुत टटोल कर हाल-ए-दिल ये जाना,
कि, मरते भी तुम पर, डरते भी तुम पर ।

मैंने देखे है बहुत से अभिनव,
पर देखा नहीं मुझसा साकी ।

ख़्वाबों की बुलंदियों पर उलझा कोई बाशिंदा है,
ख्वाहिशों की आस में सुलझा कोई नुमायिन्दा है,
चल तो रहा है वो, पर वजह क्या है,
ज़ख्म बहुत सारे है, पर सज़ा क्या है,

क्या अजब सा रिश्ता है तेरा-मेरा,
दूर हो के भी ख़ुशी और पास न हो के भी गम है ।

तलाश-ए-लफ्ज़ की शिरकत लिए चलते गए,
और कहते गए उनसे, चलो, मुकम्मल हुआ तो फिर मिलेंगे ।

क्यूँ मौजूद नहीं हूँ खुद में,
जाने कैसा ये खालीपन है ।

रूह सी कांप जाती है तेरे जाने के डर से,
सोचता हूँ, बिन तेरे ज़िन्दगी का हश्र क्या होगा ।

लफ्ज़ भी नहीं मिलते मुनासिब बिन तेरे,
कैसा ये तुझसे नाता जुड़ा है ।

ताज़गी सी लिए फिरता हूँ वक़्त-हर-वक़्त,
कुछ इस तरह तेरी रूह मेरे साथ होती है ।

ज़र्रा-ए-फ़राश से निकला है अभिनव,
मुझको, मातम की चीख़ों में ढ़ेर न कर ।

बहुत ख़ामोशी है शहर में,
शायद अन्दर उथल-पुथल है ।

बस खफ़ा हूँ शायद खुद से ही,
कि होता वही है जो चाहता नहीं ।

काँच के टुकड़ों सा बिखर गया हूँ मैं,
मेरे वजूद की कोई रिहाइश नहीं बाकी ।

कुछ यूँ ही...

संग-दिल हो कर, हमने भी देखे है ज़माने कई,
पर, कुछ भी नहीं ख़ाक के सिवा ।

एक खालीपन सा लिए फिरते रहा मैं,
ता-उम्र ज़िन्दगी ।

तलाश-ए-अक्स में शख्स की मौत हुई,
और, यूँ ही गुज़री बे-वजह ज़िन्दगी सारी ।

सब अकेले ही चलते है राहों में,
कोई साथी नहीं मेरा अभिनव ।

तुम भी रुक ही गए आख़िर,
एक वक़्त की नुमाइश ऐसी हुई ।

कहीं दूर चले जाना चाहता हूँ मैं,
जहाँ, मुझको मैं सुनाई न दूं ।

तमाशबीन से मिलते है मंज़र सारे,
बस मैं नहीं मिलता आज-कल ।

मेरे दर्द की नुमाईश कुछ हुई ऐसे,
कि, रो भी न सका और हँसता भी रहा अभिनव ।

नज़रें बदल गयी शायद मेरी,
आज, मैं ही नहीं मिलता भीड़ में अक्सर ।

ज़िन्दगी का क्या है, कट ही जाती है कटते-कटते,
बस साँसों की ये डोर ही नहीं कटती अभिनव ।

Monday, December 2, 2013

तेरी याद में जलता हूँ मैं...

एक डोर सा बंधा चलता हूँ मैं,
पल, हर पल पलता हूँ मैं,
जाने क्यूँ गलता हूँ मैं?
शायद, तेरी याद में जलता हूँ मैं ।

तू है, और नहीं भी,
तुझसे मिलने, को लक़ीरें मलता हूँ मैं,
खुश भी हूँ, और हूँ भी ख़फ़ा,
उसकी (खुदा) ख़ताओं को माफ़ करता हूँ मैं,
जाने क्यूँ गलता हूँ मैं,
शायद, तेरी याद में जलता हूँ मैं ॥

चेहरों से नफ़रत हो गयी,
क्यूँ तुझसे मोहोब्बत हो गयी,
तेरे होने का यक़ीन लिए चलता हूँ मैं,
तेरी खुशियों में ही दुनिया लिए चलता हूँ मैं,
फिर भी, जाने क्यूँ गलता हूँ मैं,
शायद, तेरी याद में जलता हूँ मैं ॥।

Thursday, November 28, 2013

लिख रहा हूँ...

एक शहर लिख रहा हूँ, एक गाँव लिख रहा हूँ,
पीपल की पत्तियों की छाओं लिख रहा हूँ,
भीड़ में गुम होता हुआ एक पाँव लिख रहा हूँ,
एक शहर लिख रहा हूँ, एक गाँव लिख रहा हूँ ।

लोगों की अंधी चाल, के ख्वाब लिख रहा हूँ,
कुछ उलझे-उलझे से जवाब लिख रहा हूँ,
भूला-बिसरा एक नाम लिख रहा हूँ,
भीड़ में गुम होता हुआ एक पाँव लिख रहा हूँ,
पीपल की पत्तियों की छाओं लिख रहा हूँ,
एक शहर लिख रहा हूँ, एक गाँव लिख रहा हूँ ॥

Monday, November 25, 2013

नक़ल-अकल...

गहन समस्या जान के, बोल बचन बतलाये,
चोरी हुआ जो सौंदर्य-चरित, गलत हाँथों में पड़ जाए,
कोई, बाल ज्यूँ ही बनाये, एक से कपड़े भी सिलवाये,
गहन समस्या जान के, बोल बचन बतलाये ।

दो कुंवारी बालाए, एक-एक मुस्काये,
एक कुंवारी पूर्ण सुंदरी, दूजी नक़ल-अकल किये जाए,
अतः वीणा पहली की किन्तु दर्द भी कैसे बतलाये,
दूजी भी जो करे नक़ल, अकल पर बल पड़ जाए,
देख विरह पहली की अभिनव, कलम, रगड़-रगड़ चलाये,
गहन समस्या मान के, बोल बचन बतलाये,
रहो सुखी अपने तन-भीतर, नक़ल न मोल बढ़ाये,
नक़ल का रंग चढ़ा जो सजनी, अकल पर जंग लगाये,
रहो पथिक, दुनिआ से अलग, तो ज्यों मान बढ़ाये,
गहन समस्या जान के, बोल बचन बतलाये ॥

जैसी जिसकी चाकरी, तैसो चढ़ियों मांड,
नक़ल-नक़ल में छोकरी, अकल भी चढ़ जाए टांड़,
दूजी की जो नक़ल करे तो खुद का करे अमान,
रूप-सरूप परिपूर्ण सुंदरी, त्यों, नक़ल को रख दे टांड ॥।

रहो सुखी अपने तन-भीतर, नक़ल न मोल बढ़ाये,
नक़ल का रंग चढ़ा जो सजनी, अकल पर जंग लगाये,
रहो पथिक, दुनिआ से अलग, तो ज्यों मान बढ़ाये,
गहन समस्या जान के, बोल बचन बतलाये ॥॥

Wednesday, November 13, 2013

ज़माना...

जलता तो ज़माना भी है मुझसे,
तेरी क्या मैं सिर्फ़ बात करूँ,
मरता तो ज़माना भी है मुझ पे,
तेरी क्या मैं सिर्फ बात कहूं,
जलती है औरों की हसरत,
तेरी क्या मैं सौगात कहूं,
जलता तो ज़माना भी है मुझसे,
तेरी क्या मैं सिर्फ़ बात करूँ ।

सीखा है...

जोड़-तोड़ कर, तोड़-जोड़ कर,
मैंने रहना सीखा है,
मोड़-ओढ़ कर, तोड़-मोड़ कर,
मैंने बहना सीखा है,
मैं हवा नहीं, हूँ पत्थर सा,
खुद से ये कहना सीखा है,
जोड़-तोड़ कर, तोड़-जोड़ कर,
मैंने रहना सीखा है ।

चल-चल कर, मीलों मल कर,
छालों में रहना सीखा है,
लगन-लगन में, देख अगन को,
जलते रहना सीखा है,
दूजों की मुस्काई खुशियों में,
खुश रहना सीखा है,
मैं हवा नहीं, हूँ पत्थर सा,
खुद से ये कहना सीखा है,
जोड़-तोड़ कर, तोड़-जोड़ कर,
मैंने बहना सीखा है ॥

Thursday, October 24, 2013

फ़लसफ़ा...

मोहोब्बत का फ़लसफ़ा अक्सर लोग मुझसे पुछा करते है,
और मैं कहता हूँ, वो इश्क ही क्या जिसमे शिकवे या गिला न हो,
पूछते है, तो क्यूँ हो बिखरे-बिखरे से,
और मैं कहता हूँ, वो इश्क ही क्या जिसमे कोई ख़फा न हो ।

गुज़र ही जायेंगे मुफ़लिसी के दिन भी,
कहीं किसी रोज़ "अभिनव" (नया) मिलेगा ।

आज मैंने दिल को थोड़ा साफ़ किया,
कुछ को भूल गया, कुछ को माफ़ किया ।

Tuesday, October 15, 2013

दो राहे...

अजीब सी दो राहे पर खड़ी है ज़िन्दगी मेरी,
सोचता हूँ, किस करवट लूं कि "मैं" मिलु ।

अजब ढंग है ज़िन्दगी का मेरी,
मिलता वही है जो मैं चाहता नहीं ।
दर्द की शिकायत की मैंने,
पाया वही है जो मैं चाहता नहीं ।

कौन समझाए इस दिल को,
कि, आरज़ू भी करता उसकी है जो दिखता नहीं ।

टुकड़े लिए फिरता है अभिनव भरे बाज़ार में,
पर एक बोली नहीं लगती किसी परवरदिगार की ।

दर्द-ए-तन्हाई का मंज़र भी यूँ गुज़रा,
कुछ कह भी न सके और शुबा भी हुआ ।

बड़ा ज़ालिम था वक़्त का वो पहर,
कितनो के दिल पर गुजरी, क्या कहु ।

खोया तनहा तो मैं तब भी था जब तू था यहाँ,
आज, बस भीड़ में मुझको मैं नहीं मिलता ।

कैसे थामू बिखरते मंज़र,
हाँथों का फ़लसफ़ा, जो मेरी किस्मत ने लिखा ।

उम्मीदों की उंगलिया थामे चल दिया था मैं,
आरज़ू-ए-राह कब मुड़ी, ख़बर नहीं ।

बहुत चुका चूका कीमत-ए-मोहोब्बत,
मैंने, आतिश-ए-इश्क़ कुछ यूँ देखा ।

दुआये और भी मांगी है तेरे लिए,
कौन सी कबूल हो, ख़बर नहीं ।

दुआओं का सिलसिला भी कब तक चलाऊं मैं,
कुछ दुआये अभिनव मंज़ूर नहीं होती ।

बहुत सजदे किये तेरी रहनुमाई में,
ए ज़िन्दगी! तू भी क्या खूब मिली ।

Friday, October 11, 2013

क्या...

क्या अजब नासूर है ये,
ठीक भी हूँ और ज़ख्म भी ताज़े है ।

मैं, समझने की चीज़ कहाँ हूँ अभिनव,
खुद ही परेशान हूँ हालात-ए-इश्क़ पे ।

क्या अजब खुमारी है तेरी,
दीदार भी मुश्किल, इंतज़ार भी मुश्किल ।

कहते है अजीब हूँ मैं,
और, मैं खुद आईना देख रहा हूँ ।

क्या अजब नासूर है ये,
ठीक भी हूँ और ज़ख्म भी ताज़े है ।

गरमाई रंजिशें, प्यासी शमशीरें देखता हूँ,
इस शहर के हालात कुछ अच्छे नहीं लगते ।

एक सादगी सी छा गयी तेरे आने के बाद,
कुछ तेरे इश्क़ का रंग ऐसा चढ़ा ।


बड़ी अजीब सी बंदिश है ये,
मिलना भी है और मिल सकते नहीं ।

मसरूफ़ियत में मेहरूमियत नज़र आई उनकी आँखों में,
आज वक़्त फिर मायूस हो उनकी दर से लौटा ।


सब, अपनी नाम-ओ-मोहोब्बत है वक़्त की,
आज-कल सब ही तनहा है मुझ जैसे ।


एक रूठी याद लिए हम भी चलते है तनहाइयों में,
काश! वो हमसफ़र फिर नज़र कर जाए । 


वक़्त-ए-तजुर्बे की ख़्याल-ए-शिकन पड़ गयी है झुर्रियों पर,
चेहरा मेरा मुझसे ही कुछ ख़फ़ा-ख़फ़ा सा है ।

Thursday, October 10, 2013

लिखना छोड़ दिया...

मैंने आज से लिखना छोड़ दिया,
खुद से नाता तोड़ लिया,
चुभने लगे थे लफ्ज़ मुझे,
कभी, उनसे था नाता जोड़ लिया,
मैंने, आज से लिखना छोड़ दिया ।

जो चुभा करे मेरे अपनों को,
मेरे अपनों को मेरे सपनो को,
वो लफ्ज़ ही क्या जो भाए नहीं,
तीर तरह चुभ जाए कहीं,
मैंने लफ़्ज़ों को ही छोड़ दिया,
खुद से नाता तोड़ लिया,
मैं, आज से लिखना छोड़ दिया ॥

Wednesday, October 9, 2013

एक ख़्याल...

चलो, आज एक ख़्याल कहता हूँ,
उलझा एक सवाल कहता हूँ,
भूल गया हूँ एक लफ्ज़ कहीं,
उसका एक मलाल कहता हूँ,
चलो, आज एक ख़्याल कहता हूँ ।

रात का सवाल था कि नींद क्यूँ गुम रही,
सुबह का मलाल था कि रात क्यूँ गुम-सुम गयी,
सूरज का सवाल था कि चांदनी क्यूँ कम रही,
चाँद का ख़्याल था कि रात कुछ यूँ थम गयी,
चलो, उसका यह ख़्याल कहता हूँ,
एक उलझा सा सवाल कहता हूँ,
भूल गया हूँ एक लफ्ज़ कहीं,
उसका एक मलाल कहता हूँ
चलो, आज एक ख़्याल कहता हूँ ॥

Wednesday, October 2, 2013

कैसे...

कैसे झूठे चेहरे बना लेता हूँ,
लोगों को हँस कर दिखा देता हूँ,
कोई पूछ बैठता है मुझसे,
तो मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखा देता हूँ,
बड़ी अजीब सी है कशमकश ज़िन्दगी,
उलझा मैं, उलझी मेरी बंदगी,
आँखें नम कोई देखे तो आँख में कचरा बता देता हूँ,
कैसे झूठे चेहरे बना लेता हूँ ।

व्यंग सा लगने लगा है जीना,
यूँ तन्हाई को पीना,
मौजूद है भीड़ बहुत सारी,
फिर भी क्यूँ तनहा सा जीना,
कोई पूछ बैठता है मुझसे,
तो मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखा देता हूँ,
आँखें नम कोई देखे तो आँख में कचरा बता देता हूँ,
कैसे झूठे चेहरे बना लेता हूँ ॥

Monday, September 30, 2013

विडम्बना का है भाव...


विडम्बना का है भाव,
दुखों का है ताव,
गहरे मन के घाव,
विडम्बना का है भाव,
भीतर कितनी है उलझन,
स्व: चिंतन में है मन,
अभावों का मनन,
शब्दों का चयन,
गहरे मन के घाव,
दुखों का है ताव,
शब्दों का अभाव,
विडम्बना का है भाव ।

रोज़ लिखता हूँ...

कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ,
जाने क्या-क्या सोच लिखता हूँ,
ख़्यालों का बोझ लिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

उलझा हुआ एक ओझ दिखता हूँ,
चेहरों पर मैं रोज़ दिखता हूँ,
फिर भी एक खोज दिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

परायों में सोच दिखता हूँ,
अपनों में एक खोज दिखता हूँ,
क़ब्र पर मैं रोज़ दिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

दर्द को हर रोज़ लिखता हूँ,
फिर भी कम-कम सोच लिखता हूँ,
नाम मैं उसका खोज लिखता हूँ,
कहते है मैं रोज़ लिखता हूँ ।

Friday, September 27, 2013

कॉपीराइट...

आसां सी पहेली पर आसान सी बाइट,
हम इंसानों पर नहीं चलता कॉपीराइट,
कोई बलैक है तो कोई है वाइट,
पर सबसे है मोहोब्बत लाइट-लाइट,
बहुत छोटी सी बात है, पर समझो गहरी-हाइट,
सबसे हो मोहोब्बत, पर न हो कॉपीराइट,
आसां सी पहेली पर आसान सी बाइट,
हम इंसानों पर नहीं चलता कॉपीराइट ।

एक मित्र बोले, अब तो "उस" पर भी कॉपीराइट,
तो भईया क्यूँ न बढ़ेगी फाइट,
मैंने समझाया, रिश्तों-नातो पर कैसा कॉपीराइट,
सब ही है अपने तो क्यूँ यह फाइट,
बात छोटी सी है, नहीं कॉपीराइट,
कर्म की हो महारत तो लगा लो कॉपीराइट,
जो रिश्तों में आये कॉपीराइट,
तो भईया बजने लगेंगे बर्तन, और होगी फाइट,
सो, हटा लो कॉपीराइट, और मिलाओ दिल टाइट,
न होगा कॉपीराइट और न होगी फाइट,
क्यूंकि, आसां सी पहेली पर आसान सी बाइट,
हम इंसानों पर नहीं चलता कॉपीराइट ॥

Thursday, September 26, 2013

यार की यारी मिली...


















यार की यारी मिली, दुनिया सी प्यारी मिली,
एक मैं मिला, एक यारी मिली, खुशबू सी न्यारी मिली,
चार कदम ही चला, और भीड़ यूँ सारी मिली,
यार ने थामा मुझे, और भीड़, दुनिया सी प्यारी मिली,
यार की यारी मिली, दुनिया सी प्यारी मिली ।

था अकेला, दुविधा बहुत सारी मिली,
कुछ दोस्त बने, कुछ बने दुश्मन, दिल को चोटें बहुत सारी मिली,
कुछ ने थामा मुझे, कुछ ने भोंके ख़ंजर बारी-बारी मिली,
चार कदम ही चला, और भीड़ यूँ सारी मिली,
यार की यारी मिली, दुनिया सी प्यारी मिली ।

एक रोज़ वो भी मिला, आँखों में चमक लिए,
पुछा मुझसे, क्या खुशगवारी मिली,
मैं बोल, रोज़ अभिनव मिला, उसकी यारी मिली,
दुनिया बहुत प्यारी मिली,
एक मैं मिला, एक यारी मिली, खुशबू सी न्यारी मिली,
यार की यारी मिली, दुनिया सी प्यारी मिली ॥।

सीखा है...

पहाड़ों को चीर कर, मैंने बहना सीखा है,
आज़ाद हवा में उन्मुक्त रहना सीखा है,
कह दो ज़ंजीरों को मुझसे उलझे नहीं,
मैंने, बेड़ियों में बंद रहना नहीं सीखा है ।

आज़ाद हवा का परिंदा हूँ,
लफ़्ज़ों का पुलिंदा हूँ,
तबियत से उछालो हवा में,
मैं ऊँचाइयों का नुमयिन्दा हूँ,
पर्वतों पर भी, आस्मां में रहना सीखा है,
आज़ाद हवा में उन्मुक्त बहना सीखा है,
कह दो जंजीरों को मुझसे उलझे नहीं अभिनव,
मैंने, बेड़ियों में बंद रहना "नहीं" सीखा है ॥

Friday, September 13, 2013

एक कलाम लिखते है...

चलो, आज एक कलाम लिखते है,
उन धुंधली पुरानी यादों के नाम लिखते है,
जो छोड़ चुकी है दामन मेरा,
जो जोड़ चुकी दामन तेरा,
उन अनकही बातों के नाम लिखते है,
चलो, आज एक कलाम लिखते है ।

यादों के तराने, क्या खूब बहाने,
कुछ किस्से मेरे भी यार पुराने,
उन ढलती शामों को सलाम लिखते है,
कुछ बिछड़े प्यारों के नाम लिखते है,
किसी अपने के नाम लिखते है,
चलो, आज एक कलाम लिखते है ॥

चलो, आज उसके नाम लिखते है, जिसने कलम थमाया,
चलो, आज उसका जाम रखते है, जिसने जाम जमाया,
चलो, धुंधली महरूम सी एक शाम लिखते है,
आओ, गुमनामो को सलाम लिखते है,
जो छोड़ चुकी है दामन मेरा,
जो जोड़ चुकी दामन तेरा,
उन अनसुनी यादों के नाम लिखते है,
चलो, आज एक कलाम लिखते है ॥।

Thursday, September 5, 2013

उधेड़बुन...

वजूद… 
क्यूँ मेरे ही वजूद की हस्ती खोने लगी,
क्यूँ रूह मेरी ज़ार-ज़ार हो रोने लगी,
क्या मौत चाहती है ज़िन्दगी,
अब ज़िन्दगी बोझ सी तनहा होने लगी ।

हफ़स, बात तेरी न थी,
फिर क्यूँ चुभन मुझे होने लगी,
क्या मौत चाहती है ज़िन्दगी,
जो अब, ज़िन्दगी बोझ सी तनहा होने लगी ।।

याद…  
याद तेरी आने लगी,
लबों पर एहसास तेरा लाने लगी,
मैं, जागा ही था ख्यालों से,
और तेरे ख़्वाबों की नींद मुझे आने लगी,
लबों पर एहसास तेरा लाने लगी,
मुझे याद तेरी आने लगी ।

कल तक खामोश था खुद में,
आज, जान तुझमें समाने लगी,
राह तन्हा भी कोई,
पसंद मुझे आने लगी,
जागा ही था ख्यालों से,
तेरी नींद मुझे ख्वाबों में बुलाने लगी,
लबों पर एहसास तेरा लाने लगी,
तेरी याद मुझे आने लगी ।।

याद पुरानी आती है…  
एक याद पुरानी आती है,
कुछ बात मुझे बताती है,
एक आस नयी जगाती है,
एक याद पुरानी आती है ।

एक किस्सा यार पुराना सा,
एक गुज़रा नया ज़माना सा,
एक बात नयी बताती है,
एक याद पुरानी आती है ।।

ख़्याल मिला… 
एक उर्स मिला, एक ख़्याल मिला,
एक उलझा सा सवाल मिला,
किसी ने शायर कहा, तो किसी का मलाल मिला,
एक उर्स मिला, एक ख़्याल मिला,
एक उलझा सा सवाल मिला ।

कभी रेशम सा रुमाल मिला,
कभी करारा एक सवाल मिला,
क्यूँ लिखता हूँ मैं?
कभी ऐसा भी एक सवाल मिला,
किसी ने शायर कहा, तो कभी किसी का मलाल मिला,
एक उर्स मिला, एक ख़्याल मिला,
एक उलझा सा सवाल मिला ।।

कमाल था… 
उनके ख़्याल में एक कमाल था,
जाने कैसा ये उलझा सवाल था,
मैं तन्हा हो कर भी तन्हा नहीं,
ये मौसकी थी या बस उनका कमाल था ।

वो आये और कब गुज़र गए,
इसका ता-उम्र मलाल था,
आशिक़ मैं भी हुआ अभिनव,
ये बस उनका कमाल था,
मैं तन्हा हो कर भी तन्हा नहीं,
ये मौसकी थी या बस उनका कमाल था ।।

ख़्वाब-ए-मोहोब्बत…

कोई मजनू कहता…
क्या निकाले इस दिल से अब अभिनव,
खुद का पता आज-कल नहीं मिलता,
कोई मुफ़्लिस तो कोई मजनू कहता है,
और वो कहते है तुम में अभिनव नहीं मिलता ।

क्यूँ इतना दिल लगा बैठा हूँ,
क्यूँ खुद को तुझमे समां बैठा हूँ,
अब तो सांसें भी चलती है तेरे नाम से,
खुद को तुझमे इतना उतार बैठा हूँ ।

अरसा हुआ…
एक अरसा हुआ तुझे गुज़रे,
पर तेरे आने की इक उम्मीद अभी बाकी है,
हसरतें बहुत है दिल में,
तन्हाई में तेरी याद जागी है ।

मत करो हमें याद, बस एक बात दे दो,
बंद होने से पहले आँखों को ख़्वाब दे दो,
तन्हाई का मंज़र अब नहीं ढलता है,
इस डूबते अभिनव को लफ़्ज़ों की सांस दे दो ।

कब तक… 
कब तक राह तकते रहोगे उनकी,
वो वक़्त गुज़र गया है,
देखो बदली वादियों को,
समां भी सारा बदल गया है,
एक याद के सहारे ज़िन्दगी नहीं कटती अभिनव,
मंज़िल की चाह में वक़्त ही सारा बदल गया है ।

आतिश-ए-इश्क़ में वो भी फ़ना हुए,
जो हुसन को यूँ छुपाये फिरते थे,
और, फ़ना वो भी हुए,
जो नज़रें चुराए फिरते थे,
नसीब को दिल समझ बैठे है अभिनव,
ख़ाक वो भी हुए जो जिम्मा उठाये फिरते थे ।

तनहा...

थक गया हूँ खुद से तनहा लड़ते-लड़ते,
चैन से अब जी भर सोना चाहता हूँ ।

उसने वो चुना जो उसका अपना था,
और, मैंने वो खोया जो पाया ही नहीं ।

रहता कौन है यहाँ उम्र भर के लिए,
हमसफ़र बदलते रहते है रोज़ इस शहर में ।

था ही कब मेरा, जो "कश्मीर" हुआ,
सौदा मैंने किया और मैं ही "फ़कीर" हुआ ।

शायद, पतन का वक़्त नस्दीक है,
वरना, मेरी रूह को यूँ बेचैनी न होती ।

दिल-ए-हसरत...

झूठे चेहरों पर चलते है यहाँ रिश्ते,
हर कोई गमज़र्द है यहाँ किसी के गम में ।

कोई मिल ही जाएगा राह चलते,
इतना भी कमज़र्फ नहीं मेरा नसीब । 

वो, आये भी है और खो गए अंधेरों में,
मेरी रौशनी का सहारा भी तनहा सा मिला ।

आज, खुद की बदजुबानी से हारा हूँ मैं,
सोचता हूँ, जुबां से जीता क्या हूँ अब तक ।

बड़े बेमानी से हो गए है रिश्ते यहाँ,
जानते सब है, पहचानते नहीं ।

गम उसने दिए जो मेरा अपना था,
हम तो ख़ाक ही ग़ैरों को दुश्मन बनाए फिरते थे ।

और भी मंज़र है गुज़रे मुफलिस-ए-आलम के,
पर तू न गुज़रा, तेरी रूह न गुजरी ।

रोकते है मुझे कभी कभी,
पर हक नहीं जताते हम पर ।

फिर से महकने लगी है ज़िन्दगी तेरे आने के बाद,
मैं यह सोचता हूँ कि असर तेरा है या ज़िन्दगी का ।

इक प्यार ही तो है जो बांधे हुए है तुमसे,
वर्ना, मैं तो बंजारा हूँ उड़ता बादल सा ।

वो मेरे दिल की हसरतों को मेरी शायरी का सबब समझ लेते है,
कोई कह दे जा कर उनसे, ये शेर नहीं दिल-ए-हसरत है मेरी ।

वो क़त्ल भी करते है तो हँस-हँस कर,
हम-कफ़न न हो तो क्या चीज़ ।

कुछ यूँ ही...

मैंने, होते देखे है आशिकों के सौदे यहाँ,
इस इश्क़ के बाज़ार में हर चीज़ बिका करती है ।

फुरसत किसे है यहाँ किसी और की,
सब ही तमाम है खुद मतलबों में ।

वो ख़ाक ही मिले है कमज़र्फ,
जो बेमौत मरे खामखा ।

चीखती रही रात भर मेरे कानों में आवाज़ें,
जिन्हें, मैं कभी सुनना न चाहता था ।

उसने, एक ही सांचे में तोल दिया हमको भी,
और, हम अब तक खुद को दूजो से अलग समझा करते थे ।

क्यूँ तेरी आदत सी होने लगी है मुझको,
यूँ तेरे बिन सब सूना सा लगता है ।

बहुत कमज़र्फ है कुछ लोग यहाँ,
नज़रंदाज़ भी उसको करते है जो चाहतें है ज्यादा ।

चाहतों की चोटों पर कौन गौर करता है ज़माने में,
हर कोई घूमता है यहाँ दर्द देने की ख़ातिर ।

हमनें भी देखे है बहुत से इश्क़-ए-समुन्दर,
पर कोई देखा नहीं जो बिन डूबे उस पार पहुंचा हो ।

आशिक़, कितने ही डूबे है यहाँ इस इश्क़ में अभिनव,
पर, कोई दिल से हँसता हुआ नहीं मिलता ज़माने में ।

Friday, August 2, 2013

एक आस...

















एक आस लिए जी रहा था मैं,
कल सुबह होने की,
दिलों के घाव को सी रहा था मैं,
कल सुलह होने की,
बिखर तो मैं कल ही गया था,
फिर भी जी रहा था, कल सुबह होने की,
दिलों के घाव को सी रहा था मैं,
कल सुलह होने की ।

Thursday, August 1, 2013

आशिक़ हूँ...

आशिक़ हूँ, आशिक़ी के तराने मिले,
एक यार मिला और बहुत अफ़साने मिले,
जी ली कई ज़िन्दगी एक पल में,
मुझको भी ऐसे कई बहाने मिले ।

बहुत समझाया नादान दिल को,
पर उसको भी भले ये फ़साने मिले,
एक याद मिली और पीछे बहुत अफ़साने मिले,
मुझको भी ऐसे कई बहाने मिले ॥

एक ऐसी भी दिल्लगी...

क़त्ल भी वो कर गए जिसके बीमार हम थे,
एक ऐसी भी दिल्लगी आज देखी हमने ।

अब न होगी दिल्लगी हमसे,
इस इश्क़ के बाज़ार का इक मुरीद कम हुआ ।

इस बाज़ार से हम दूर ही अच्छे,
यूँ दिल्लगी का इल्म अब हमसे होगा नहीं ।

आशिकी के बाज़ार में एक और बिका अभिनव,
एक यार पर ऐतबार का सितम यूँ हुआ ।

खता पर फिर से खता हो गयी,
मोहोब्बत फिर मुझसे रुसवा हो गयी,
आज फिर बदला है तनहाइयों का मंज़र,
जाने क्यूँ ज़िन्दगी यूँ खफ़ा हो गयी ।

उलझने, उलझ ही जाती है सुलझते-सुलझते,
इस इश्क़ में दरार ही कुछ ऐसी है ।

इक ये वफ़ादार ही काफी है, बेवफाओं के मेलों में,
ये बेवफाई भी करता है बस इक वफ़ा पाने को ।

Monday, July 29, 2013

कुछ देर से मिली रौशनी...















आज, कुछ देर से मिली रौशनी,
खाली सड़कों पर उछालती-कूदती,
मेरे तन को चूमती,
कुछ देर से मिली रौशनी ।

शायद, कुछ साथ लायी थी, खाली सड़कों के किनारे,
एक औरत की शौल में लिपटी, पिघली सी,
सोंधी सी गर्मी का एहसास लिए,
खाली सड़कों पर उछालती-कूदती,
मेरे तन को चूमती,
कुछ देर से मिली रौशनी ।।

राहें, तनहा हो कर भी घिरी थी अजनबी चेहरों से,
मुस्कुराते, चेहरों पर चेहरे से,
खाली रास्तों में उड़ती धुल के थपेड़ों में,
मेरे तन से लिपटी रौशनी,
खाली सड़कों पर उछालती-कूदती,
मेरे तन को चूमती,
कुछ देर से मिली रौशनी ।।।

ख्यालों में...

अँधेरे में, उजाले में,
अपने ही ख्यालों में,
कुछ उलझे से, कुछ सुझले से,
अपने ही सवालों में,
पड़े है ।

कुछ अधूरी सी, कुछ पूरी सी,
कहानी एक जरूरी सी,
कुछ अनकही, कुछ अनसुनी,
कहानी एक पूरी सी,
सुनाने को बेताब यहाँ,
खड़े है,
पड़े है ।।

मुश्किल से हालात में,
उलझे से जज़्बात में,
यादों का पिटारा लिए,
पड़े है,
खड़े है ।।।

मेरी कहानी...
















अजीब सा हूँ मैं, उलझी मेरी कहानी,
छोटा सा हूँ मैं, शायद बचपन की निशानी,
रातों को जगता हूँ मैं, नींद हुई बेगानी,
अजीब सा हूँ मैं, उलझी मेरी कहानी ।

आज, उसने सवाल किया,
मैंने उलझा सा जवाब दिया,
चेहरे पर झूठी हंसी ला कर,
बात न उसकी मानी,
उलझा सा हूँ मैं, उलझी मेरी कहानी ।।

कुछ बेज़ुबान से…

आदत-ए-शराब ही अच्छी थी,
क्यूंकि, बहुत मुफ़लिसी है इस दिल्लगी में ।

लम्हा-ए-उम्र ही न मिला दिल्लगी को,
वर्ना, आशिक़ तो हम भी उम्दा थे ।

मिली, किसको वफ़ाये है ज़माने में,
हर एक ही मारा है किसी गम का ।


लिपटे थे रात की सरगोशी में,
और सुबह तारों का काफ़िला गुज़र गया ।

और वो दिन भी आ गया जिसकी आस लिए जीते थे,
तेरी आरज़ू में एक और साल जी लिया ।

आतिश-ए-इश्क़ में आज वो भी जले,
जो कल तक काफ़िर बने फिरते थे ।

एक दिन बिखर ही जाता है,
तिल-तिल कर मरने वाला ।

बड़ी बदरंग सी ज़िन्दगी है तेरे जाने के बाद,
इतनी मह्रूमियत कभी खुद से न हुई ।

नफ़रत, किसकी अच्छी है यहाँ अभिनव,
हम तो ज़िन्दा है इक मोहोब्बत के लिए ।

थोड़ा लिखता हूँ, कम लिखता हूँ,
आज-कल लफ़्ज़ों से दिल्लगी अच्छी नहीं लगती ।

अपनी हसरतों को ख़त्म करके,
मैंने खुद को मनाना सीख लिया ।

उल्फ़त-ए-इंतज़ार ख़त्म ही नहीं होता,
जाने क्या है मोहोब्बत ऐसी ।

उधारी का मंज़र भी क्या खूब था,
एक रोज़ ऐसा भी गुज़रा, जिसमे रूह भी गिरवी हो गयी ।

 कैसे रोकू मैं अपने दिल को,
जाने क्यूँ तेरी ओर खीचने लगा है ये ।

तकलीफ़ सिर्फ़ इतनी सी ही हुई,
कि, वो उन गैरों से मिले जो उन्हें अपने से लगे ।

बना लो आशिक़ हमको भी,
कोई तो सच्चा मुरीद तुमको भी मिले ।

 किसी को रंजिशें मिली, किसी को वफ़ा,
ये इश्क़ बहुत ही बद-किस्मतों का हुआ ।

आ ही जायेगी नींद देर-सवेर,
अब रातों को जागने के आदी हो गए है हम ।

Monday, July 22, 2013

चलते-चलते मुझको...
















चलते-चलते मुझको एक याद पुरानी आती है,
कुछ बीते-गुज़रे लम्हों की वो बात पुरानी लाती है,
वो धुंधले से यादों के पन्ने, पलट-पलट रह जाते है,
वो तेरी हँसती बातों में, यूँ घुल-मिल से जाते है,
चलते-चलते मुझको एक याद पुरानी आती है,
कुछ बीते-गुज़रे लम्हों की वो बात पुरानी लाती है ।

एक चेहरा है जो धुंधला,
यादों में उलझा-सुलझा सा,
कोई अपना सा, कोई सपना सा,
भूला-बिसरा कोई अपना सा,
जब भी पलट कर देखू तो,
वो दूर नज़र बहुत वो आती है,
चलते-चलते मुझको एक याद पुरानी आती है,
कुछ बीते-गुज़रे लम्हों की वो बात पुरानी लाती है ।

Friday, July 19, 2013

इश्क़ का कारोबार...

इतने आशिक़ है यहाँ,
ये इश्क़ का कारोबार अच्छा है । 

जज़्बातों का देखा है होते मैंने सौदा,
आज कल खरीदार अच्छे मिलते है ।

बड़ी कीमत लगा खरीदी जाती है आशिक़ी,
मुझ जैसे मुफ़लिस न जाने दो दिलों का मेल ।

कीमत कौन चुकाता है ज़माने में इश्क़ की,
कुछ नीलाम हुए है, और कुछ का मुक्कमल कमा बाकी है ।

मिलता कहाँ है आशिक़ मुझसा अभिनव,
जिसको, कीमत-ए-जान भी कोई मोल नहीं ।

मेरी तो आरज़ू-ए-इश्क़ है बस इतनी,
कि, जितनी भी सांसें लूं, बस तेरी हो ।

गर्दिश-ए-इश्क़ भी कैसा यारों,
कि, खुद की साँसों पर ही गुमां नहीं ।

उसने आँखों से पिला कर दीवाना बना दिया,
वर्ना, आदमी तो हम भी काम के थे कभी ।

कौन कमबख्त जीता है किसी यार को सताने को,
हम तो बस ज़िन्दा है, उसका प्यार पाने को,
आतिश-ए-इश्क़ की भी देखी हमने,
पर, उस सा नहीं मिला रूह जलाने को ।

भीगे तो वो भी मेरी तिश्नगी में अभिनव,
इतना भी गिला-ए-गम छूटा नहीं ।

Wednesday, July 17, 2013

बदल दो...

चाहे तो सारा जहान बदल दो,
सारी ज़मीन, सारा आस्मां बदल दो,
जिन लोगों से बगावत की बू आती है,
उन मुफलिसों का ईमान बदल दो,
चाहे तो सारा जहान बदल दो,
सारा का सारा हिन्दुस्तान बदल दो ।

रात गुज़री थी गीले तकिये के सिरहाने,
और, मैं न जानू कब सुबह हो गयी ।

सारी रात आवाज़ें आती रही मेरे कानों में,
मेरी रूह मुझसे ही बुद-बुदाती रही कानों में,
पर मैं न मिला, हुआ था कहीं गुम सा,
बस लाश की तरह पड़ा रहा, उठती रही आवाज़ें कानों में ।

वक़्त ही नहीं था मेरे पास मेरे लिए,
मैं तो तुझ में शामिल था कुछ इस तरह ।

कितने सपने सजाते है हर रोज़,
तेरे साथ पाने को,
कितना मनाते है खुदा को रोज़,
तुझे ज़िन्दगी में ता-उम्र लाने को,
ये मैं जानता हूँ या मेरी तन्हाई का तसव्वुर,
कितना जीता है तेरे बिना,
तेरा साथ पाने को । 

मुशायरे से...

कोई गहरा नहीं स्याह-ए-इश्क़-समुन्दर,
बस एक रफ़्तार से गोते मारे जा ।

चाहतें ही तो है ज़िन्दगी तरकीब-ए-रकीब की,
कौन जीता है यहाँ उम्र बसर होने तक ।

गम जुदाई का किसको है यहाँ,
हम तो नाराज़ है खुद के खफ़ा होने से ।

बहुत अजीब सी है ज़िन्दगी,
हर दिन एक अलग एहसास रखती है मेरे लिए ।

बहुत खूबसूरती से उकेरे है लफ्ज़ तेरे लिए,
ये कोई शेर नहीं मेरी दिल्लगी है ।

अजब सा है रिश्ता तेरा-मेरा,
थाम भी नहीं सकता, छोड़ भी नहीं पाता ।

हैरान हूँ ये जान कर, कि डरते है मुझसे लोग,
मैं तो बस प्यार का खजाना बाटा करता था ।

तुझको भी होगा एहसास-ए-मोहोब्बत,
मैं तो आफ़ताब हूँ जलता ज़र्रे-ज़र्रे में ।

लिख लीजिये अपना हाल-ए-दिल कागज़ों पर,
मैं तो पल-पल की ख़बर जाने हूँ ।

न समझे मुझे कोई, मैं बदलता नहीं, 
एक कल हूँ आगे बढ़ता सा, मैं पलटता नहीं,
मुश्किलें लाख मिले ज़माने में, मैं रुकता नहीं,
न समझे मुझे कोई, पर मैं बदलता नहीं । 

चाहतें कुछ ऐसी भी थी कि खुद ही राख़ हो गए,
और, आहटें कुछ ऐसी भी थी कि खुद ही ख़ाक हो गए,
इश्क़ की बदलिया कुछ इस तरह बदली,
बदला मैं? या आशिक़ ही ख़ाक हो गए ।

दास्तान...

मोहब्बत की ये इन्तेहां हो गयी,
खुद ज़र्रे-ज़र्रे में फ़ना हो गयी,
मुझ रकीब को कर दिया बाग़ी,
और, एक दिन मुझसे ही खफ़ा हो गयी ।

शायरों की भी है खूब दास्तान,
कोई आशिक़ कहता, कोई कहता मुफ़्लिस इंसान,
बड़ी मौसिकी में उठते है लफ्ज़,
वो, जो इन्हें अभिनव करते है बदनाम,
शायरों की भी है खूब दास्तान |

बारिश की बदलियाँ बदल रही है,
मौसम की रौनकें सवर रही है,
एक अजब सी सादगी है तेरी हंसी में,
और, तेरे हँसते ही मेरी दुनिया सवर रही है । 

एक उलझन है जो सुलझती नहीं,
बस अन्दर से है काटती,
सवाल उठते है ज़ेहन में,
जो रूह को है बाटती,
तलब उठती है कुछ पाने की,
जिस्म लाश सी हो ताकती,
एक उलझन है जो सुलझती नहीं,
बस अन्दर से है काटती ।

देखा है...

मैंने, पल-पल बदलते देखा है,
हर कल सवारते देखा है,
मत खो हौसला-ए-इश्क़ ऐसे,
मैंने परियों को भी इश्क़ करते देखा है,
गर! सादगी में शिद्दत आशिक़ों सी हुई,
गर! तेरी आरज़ू किसी रूह को छुई,
मैंने पल-पल सवारते देखा है,
मैंने हर कल बदलते देखा है,
मत खो हौसला-ए-इश्क़ ऐसे,
मैंने परियों को भी इश्क़ करते देखा है ।

बारिश की बदलियाँ बदल रही है,
घटाए भी तुम्हे देख सवर रही है,
मत लहरों आज इतना आँचल,
यहाँ किसी की नियत बिगड़ रही है ।

मेरे ज़हन में अब तेरा ही ख़्याल है,
जाने क्यूँ आज उलझे सवाल है,
कहीं पिघल न जाऊं मैं भी,
और इसी गम से बचने का मलाल है ।

एक शोर लिख रहा हूँ,
घनघोर लिख रहा हूँ,
आज दिखा है कोई आशिक़ मुझसा अभिनव,
उसकी शान में कुछ और लिख रहा हूँ,
कांच सा टूटा हर ओर दिख रहा हूँ,
पर, अपनी ही श्याही से पुरजोर लिख रहा हूँ,
घनघोर लिख रहा हूँ,
एक शोर लिख रहा हूँ,
आज दिखा है कोई आशिक़ मुझसा अभिनव,
उसकी शान में कुछ और लिख रहा हूँ ।

कोई शोहरत नहीं, कोई मोहरत नहीं,
बस लफ्ज़ ही है कोई सोहबत नहीं,
दिल की गलियों से उठती आवाजें,
कोई तोहमत नहीं, कोई नेयामत नहीं ।

तोहमतें हज़ार लगेंगी,
कई कई बार लगेंगी,
आज उतरे हो आशिक़-ए-समुन्दर में,
ये नैय्या भी एक दिन पार लगेगी ।

Thursday, July 11, 2013

सिर्फ शेर नहीं है ये...

आराम-फ़रोश सी ज़िन्दगी नहीं चाहिए थी मुझे,
मैं तो बंजारा था फिरता बादल सा ।

सिर्फ शेर नहीं है ये, मेरी ज़िन्दगी का हलफ़नामा है,
बड़ी सादगी से वाह-वाह कर फ़जीहत न करो अभिनव ।

वो करवटें बदलते रहते है रात भर,
और इलज़ाम मेरे सर ड़ाल देते है हर रात के क़त्ल का ।

वो हसरतें मिटाए है बार-बार लिख-लिख कर,
कहते नहीं मुझसे हाल-ए-दिल अपना ।

जागते रहे वो मेरी यादें लिए,
और मैं दफ़न था उनके ख़्यालों में कहीं ।

वो पलटते है बातें इस तरह,
जैसे जुल्फें सवार रहे हो ।

इश्क़ की ख़लिश भी क्या चीज़ है अभिनव,
एक आस पर टिकी रहती है सारी ज़िन्दगी ।

कोई गहरा नहीं स्याह-ए-इश्क़-समुन्दर,
बस एक रफ़्तार से गोते मारे जा ।

बहुत खूबसूरती से सवारा है उसने बालों को,
जैसे कोई दुनिया उसमे छुपाये हुए हो ।

लम्हे...

लम्हे, तो तब ही थम गए थे तेरे मेरे दरमियान,
जिस रोज़ तुम जा कर मुड़े नहीं ।

बड़ी उलझनों भरी है राहें आशिकी की,
कुछ ही रांझे पहुंचे है मंज़िलों तक ।

तोड़ दो वो ज़िद जो मिलने नहीं देती,
कुछ टूटने से दिल संभालता है तो अच्छा है ।

मौज उठी, बहार उठी, जाने कई बार उठी,
मैं न उठा, कलम न उठी, हसरतें हज़ार उठी,
तुम न रुके, मैं न रुका, घड़ी की सुई कई बार रुकी,
मौज उठी, बहार उठी, जाने कई बार उठी,
मैं न उठा, कलम न उठी, हसरतें हज़ार उठी ।

"अभिनव"

बदनाम हुए फिरते है मजनू हज़ार,
एक हीर ही नहीं मिलती पिघलने को ।

साहिल से प्यासे गुज़ारा नहीं करते,
कुछ कश्तियों को किनारे नहीं मिलते,
बदलते नहीं है कुछ लोग,
वर्ना, लोगों में "अभिनव" आवारे नहीं मिलते ।

बहुत बेरंग से देखे है आशिक़ ज़माने में,
कोई ज़र्रा नहीं मिलता "अभिनव" आफ़ताब सा ।

कौन रुकता है तेरे या मेरे लिए,
वक़्त चलता है नये सवेरे के लिए,
मैं रुक भी जाता हूँ कहीं राहों में,
वक़्त रुकता नहीं मेरे लिए ।

गौर-ए-तलब हो कर तोहफ़ा-ए-उम्र क्यूँ गुज़ार देते हो,
हमसफ़र और भी मुकम्मिल मिलेंगे उम्र-ए-ज़माने में ।

Tuesday, June 25, 2013

हाल...

कोई बंधन नहीं, फिर भी एक डोर है,
कभी मैं खींचू, कभी खीचे तेरी ओर है,
प्यारा सा बंधन, बंधें अपनी ओर है,
कहने को "दोस्ती", जग समेटे अपनी ओर है ।

एक आस जगा तू अपने अन्दर, मंज़िल उससे बनाने की,
भव-नैया तू तर जाएगा, न छोड़ चाह उससे तू पाने की,
राह कठिन है अपितु, चाह जगा तू पाने की,
एक आस जगा तू अपने अन्दर, मंज़िल उससे बनाने की ।

तो, क्या फ़र्क पड़ता है मेरे लफ़्ज़ों के चोरी होने से,
मामला तो तब खड़ा हो जब जिंदा हूँ मैं ।

इतनी सी भी फुरसत नहीं उन्हें कि मेरा हाल ही पूछे,
उनसे अच्छे तो मेरे दुश्मन है, जो पल-पल की ख़बर रखते है ।

अब तो आस भी छोड़ बैठे है गलते-गलते,
मरीज़-ए-हाल-ए-ख़राब अब न पुछा कीजे ।

बहुत संग-दिल हो गए है मेरे अपने,
हाल पूछने पर भी सबब-ए-आलम खोजते है ।

काफ़िरों की जमात में तो कबसे शामिल है अभिनव,
कोई दोस्ती कर शुबा न करे ।

हम जैसे काफ़िरों को इश्क़ की शुबा नहीं,
ये तो वो गिला है जो आशिक़ों को मिलता है ।

Sunday, June 23, 2013

तन्हाई का तस्सवुर...

तन्हाई का तस्सवुर भी देखा,
रुलाई का मंज़र भी देखा,
पर कुछ न मिला तनहा यादों के सिवा ।
उलझे हालात भी देखे,
बिखरे जज़्बात भी देखे,
पर कुछ न मिला तनहा मंज़र के सिवा ।।

वो चले ही क्या जो किसी अंजाम तक न पहुंचे,
जाम वो उठाओ जो किसी के नाम तक पहुंचे ।

हालात-ए-सितम का आईना जब टूटा,
मैं ख़ाक में मिल गया,
उनकी रूह से सामना जब हुआ,
मैं होंठों को सिल गया,
कुछ कहना मुनासिब न लगा बदलते हालात पर,
मैं चुप रहा, और लफ़्ज़ों में घिर गया,
हालात-ए-सितम का आईना जब टूटा,
मैं ख़ाक में मिल गया ।

Saturday, June 22, 2013

फ़लसफ़ा...

कोफ़्त होने लगी थी खुद से, गंध भी उठती थी,
आज प्यार का आईना टूटा तो रूह को बुखार आ गया ।

नहीं रुकते आंसू मेरे जाने क्यूँ,
बहते रहते है जाने किस वास्ते ।

ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बस इतना सा था अभिनव,
जो चाहा वो पाया नहीं, जो पाया वो चाहा नहीं ।


मंज़िलें उनको भी मिले जो दिन-ओ-चार रहे,
हम जैसे काफ़िरों को बस मय्यत मिला करती है ।

ता-उम्र मांगते रहे ऐ-खुदा,
आज, हाथों को बाँध मैंने आगे बढ़ना सीखा है ।


कहते है, मांग लो चाहे दुनिया नयी,
पर वो न मांगो जिसकी आस लिए जीते हो । 

अश्क़ उनके लिए गिरे जिन्हें आंसुओं की कदर न थी,
और मैं, रोता रहा ता-उम्र बेगैरतों के लिए । 

Tuesday, June 18, 2013

तेरे बिन...

















क्यूँ दिल नहीं लगता तेरे बिन,
क्यूँ याद सताती रहती है,
एक आस जुड़ी है साँसों से,
जो याद दिलाती रहती है,
एक नाम है धुंधला-धुंधला सा,
एक बात सुनाई देती है,
क्यूँ दिल नहीं लगता तेरे बिन,
क्यूँ याद सताती रहती है ।

Tuesday, June 11, 2013

तेरे-मेरे दरमियान...

कुछ तो है चल रहा तेरे-मेरे दरमियान,
जिसकी ख़बर तुमको भी है, जिसका पता मुझको भी है,
फिर क्यूँ नहीं समझता है ये दिल,
सब कुछ पता इसको भी है, हर ख़बर उसको भी है,
कुछ तो है चल रहा तेरे-मेरे दरमियान ।
बहुत कोशिशें करता हूँ तेरे पास आने की,
चाहतें नहीं है तुझसे दूर जाने की,
फिर क्यूँ नहीं समझते, हालात-ए-दिल मेरा,
जो हाल हुआ है, ढले शाम मेरा,
जिसकी ख़बर तुमको भी है, जिसका पता मुझको भी है,
फिर क्यूँ नहीं समझता है ये दिल,
कुछ तो है चल रहा तेरे-मेरे दरमियान ॥

Monday, June 10, 2013

बहुत...

बहुत कोशिशों से रोका है खुद को,
वर्ना, मैं तो बादल था उड़ता आवारा सा ।

बहुत पेश्तर चलती है सांसें तेरे न होने से,
तुझसे ऐसा जुडुगा, सोचा न था ।

Tuesday, June 4, 2013

एक रोज़ बताएँगे...

हाल-ए-दिल तुम्हे एक रोज़ बताएँगे,
क्या-क्या है सवाल-ए-दिल एक रोज़ बताएँगे,
उलझे रहते है खुद में यूँ ही,
खुद से निकले बाहर तो एक रोज़ बताएँगे,
हाल-ए-दिल तुम्हे एक रोज़ बताएँगे ।

उलझी सारी यारियां एक रोज़ दिखायेंगे,
कैसे हुए पराये लोग एक रोज़ मिलायेंगे,
दिल-ए-सवाल एक रोज़ सुनायेंगे,
खुद से निकले बाहर तो एक रोज़ बताएँगे,
हाल-ए-दिल तुम्हे एक रोज़ बताएँगे ॥ 

कलम न उठती एक रोज़ बताएँगे,
अन्दर, बातें है चलती एक रोज़ सुनायेंगे,
उलझा है मिजाज़ एक रोज़ खुद से मिलायेंगे,
खुद से निकले बाहर तो एक रोज़ बताएँगे,
हाल-ए-दिल तुम्हे एक रोज़ सुनायेंगे ||| 

और...

जानू न कैसे तेरे हर पल में शामिल हूँ,
यहाँ तो विराना नज़र आता है मुझे मेरे आस पास ।

इतनी बेताब नहीं थी "ज़िन्दगी" तुझसे मिलने से पहले,
चाहतें बढ़ती रहती है, हलकी-हलकी आहटों पर ।

बड़ा बेचैन हो "ज़िन्दगी" से मिला मैं,
साथ न हो तेरा तो डरता हूँ मैं ।

ख़्वाबों की नुमाइश कर यह जाना, 
कि, सुर्ख़ शब् की लालिमा रोज़ अच्छी नहीं ।

बड़ी दीवानगी सी होती है इश्क़ में यह जाना आज,
कि, तेरे न होने से दिल की धड़कन तक सुनाई नहीं देती ।

बड़ी बेबाकी से जीया करते थे हम,
और, इश्क़ हो गया ।

Wednesday, May 22, 2013

गुल...

गुल ने गुलशन से गुल्फ़ाम भेजा है,
कुछ लोगों ने हमें ख़त में यह पैगाम भेजा है,
मत करो प्यार उनको इतना,
जिन्होंने, ख़त में किसी और का नाम भेजा है ।

हुस्न-ए-तारीफ़ की तमाम-ए-उम्र,
पर पलट कर कुछ जवाब न मिला।
दरख्ते भी सूख गयी खूटे की,
पर तू न मिला, सब "आम" मिला ॥

बड़ी बेमानगी से देखते है मुड़-मुड़ के,
और, हम यारों से पूछते फिरते है खुद के चेहरे का हाल ।

इतना भी न गौर किया मेरे होने न होने का,
तूने दूजे के आते ही मुझे दरकिनार कर दिया ।

Friday, May 10, 2013

अहिस्ता-अहिस्ता...

जानू न क्या रिश्ता है यह,
बस अजब एहसास है,
लाख दूरियों के बाद भी,
नज़र, आता तू पास है,
मिल-मिल कर कर भी नहीं मिटती,
जाने कैसी प्यास है,
जानू न क्या रिश्ता है यह,
बस अजब एहसास है ।

ये, दर्द भरी रातें क्या गुज़री,
हम तो कल के मुरीद हो गए ।
जीने की चाह में, पल-पल मरते रहे,
और कल के सपनों में शहीद हो गए ॥

मुद्दत से जागे है, नींद कहाँ आती है,
अब तो तारे भी हमें, हमराही नज़र लगते है ।

शौक-ए-शराब गिला करते तो क्या बात होती,
हर आरज़ू मयखाने में बहा करती ।

अहिस्ता-अहिस्ता हर शौक दफ़न होने लगा,
ज़िन्दगी की तलाश में । 

Thursday, May 9, 2013

हालात-ए-दिल...

कुछ दिन जी लिए थे बेपरवाह यूँ ही,
आज जागा हूँ तो सोचता हूँ जीना सीखू ।

बहुत जिए दूजों की ख़ातिर,
अब खुदगर्ज़ी को जी चाहता है,
कोई चाहे कह ले कमज़र्फ,
ज़ेब हो जीने को जी चाहता है ।

तिश्नगी की ख्वाहिश लिए परवाने कहाँ चलते है,
ये तो वो कमज़र्फ है जो अफ़साने बने फिरते है,
मगरूर हो शमा के संग पिघलते है,
तिश्नगी की ख्वाहिश लिए परवाने कहाँ चलते है ।

मुद्दतें लाख़ छुपाये फिरते है हालात-ए-दिल,
होती कैसे है उनको ख़बर, यह मालूम नहीं ।

Monday, May 6, 2013

नुमाइश...

हसरतों की नुमाइश, अब और नहीं,
लफ़्ज़ों की शिकायत, अब और नहीं,
थक गया हूँ खुद को निचोड़ कर परोसते-परोसते,
अब, दिल की नुमाइश, अब और नहीं ।

काश! पत्थर सा होता मैं भी,
यूँ पल-पल न रोता मैं भी,
हर पल खुश होता मैं भी,
कम-से-कम तनहा न होता मैं भी,
काश! पत्थर सा होता मैं भी,
पर अब हसरतों की नुमाइश, अब और नहीं,
लफ़्ज़ों की शिकायत, अब और नहीं,
थक गया हूँ खुद को निचोड़ परोसते-परोसते,
अब सूखे दिल में गुंजाईश, अब और नहीं ॥

जाने किस वास्ते...



















बेचैन थी रात, जाने किस वास्ते,
उलझे रहे हालात, जाने किस वास्ते,
कहा तो वही उसने, जो सुनना मैंने न चाहा था,
फिर क्यूँ न उतरी बात, जाने किस वास्ते,
बेचैन थी रात, जाने किस वास्ते ।

दर्द उठता रहा सारी रात, जाने की वास्ते,
पिघली अश्कों की बरसात, जाने किस वास्ते,
सुना तो मैंने वही, जो सहना मैंने न चाहा था,
फिर क्यूँ बिखरी रात, जाने किस वास्ते,
बेचैन थी रात, जाने किस वास्ते ॥

उलझा-उलझा बैठा हूँ, जाने किस वास्ते,
आँखें भी बरसात लिए बैठी है, जाने किस वास्ते,
कह दिया उसने वही, जो जी को समझ न आता था,
फिर क्यूँ तकिये पर हो गयी बरसात, जाने किस वास्ते,
क्यूँ बिखरी थी रात, जाने किस वास्ते,
बेचैन थी रात, जाने किस वास्ते ॥।

Thursday, May 2, 2013

ढ़लती उम्र...

घिसने लगी है उम्र, एड़ियों के जैसे,
बाल कुछ सुर्ख़ हो पकने लगे,
ढ़लती उम्र पर ढ़लती काया में,
कुछ बीते साल जुड़ने लगे,
गहरी होने लगी है आँखें, रंग ज़ेब पड़ने लगे,
और कहने को, उम्र यूँ बढ़ने लगी,
घिसने लगी है उम्र, एड़ियों के जैसे,
और, बाल कुछ सुर्ख़ हो पकने लगे,
कलम, घिसने लगा हूँ ज्यादा,
लफ्ज़ कुछ कम पड़ने लगे,
गुज़रते सालों में उम्र को ले कुड़ने लगे,
ढ़लती उम्र पर ढ़लती काया में,
कुछ बीते साल जुड़ने लगे,
घिसने लगी है उम्र, एड़ियों के जैसे,
और, बाल कुछ सुर्ख़ हो पकने लगे ।

Tuesday, April 30, 2013

कभी...

कभी आयतों में लिखा तुझे,
कभी ख्वाहिशों में जिया तुझे,
अब, तुझ में सिमट कर रह गए है हम,
हमे जगाने की जिरह न कर ।

ख्वाहिशों का पुलिंदा भी उछाला हवा में,
पर वो न मिला जो उम्मीद-ए-दिल था ।

ज़िरह कीजे भी तो क्या कीजे,
इश्क़-ए-आरज़ू लिए फिरते है वीराने में ।

शिकायतें भी की तुझसे, इनायतें भी की तुझसे,
पर वो न मिटा, जो दिल में गिला था ।

बदलना, फ़ितरत-ए-आम है लोगों में,
तुम न बदलों तो लोगों को गुरेज़ नहीं ।

वक़्त बदलता है, हालात बदलते है,
लोग बदलते है, जज़्बात बदलते है,
कभी, मोसकी से मातम के तराने बदलते है,
और कभी साथ-साथ चलते हुए अफ़साने बदलते है ।

खुश हूँ पर खुश नहीं जाने क्यूँ गम है,
सावन के बादल है, अन्दर, पतझड़ मौसम है ।

एक अजीब सा मातम है छाया सारे सब्ज़-बाग़ में,
बे-ख़याली का मंज़र यूँ भी होगा सोचा न था ।

आईना देख, आज रोया मैं भी,
कोई अपना सा देख रहा न गया ।

Monday, April 29, 2013

बेटी की दुविधा...

करुणा की विरह लगी थी,
एक बेटी की दुविधा बड़ी थी,
माँ से कैसे बोले,
कि सुन लो मेरी बात,
उस दिन उलझे थे हालात, जो वक़्त पर मैं न आई,
गिरते-पड़ते पहुंची मैं, मुरझाई-सकुचाई,
पर देख कर मेरा चेहरा भी, तुम जान तभी न पाई,
तीन दिवस तो बीत गए, एक आवाज़ भी न लगाई,
मैं, बीते दिन से गुम-सुम सी, तुम्हे नज़र भी मैं न आई,
बस छोटे को गले लगा कर, तुम यूँ ही मुस्काई,
एक बेटी की दुविधा बड़ी थी,
करुणा की विरह लगी थी,
माँ से कैसे बोले,
की सुन लो मेरी बात ।

Monday, April 22, 2013

अभिनव...















सब लिखते है नाम "अभिनव",
मैं क्यूँ नहीं लिखता,
सब कहते है मान "अभिनव",
मैं क्यूँ नहीं सुनता,
देख संगी-साथियों की चाल "अभिनव",
मैं क्यूँ नहीं चलता,
लिखता हूँ बस राग अपने,
बस नाम नहीं लिखता "अभिनव",
सब लिखते है नाम "अभिनव"
मैं क्यूँ नहीं लिखता ।

अभिनव - नया, अतुलनीय, चिरकालीन

यादों का काफिला...

यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था,
साथ मेरे गुज़रा एक ज़माना था,
भवर उठते थे टीसों के अंतर्मन में,
और तेरे साये का नींदों में मुस्कुराना था,
यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था ।

वक़्त की मासूमियत थी या मेरी मेहरूमियत,
यह याद नहीं,
अक्स था तेरा अभिनव या वहम,
वो बात नहीं,
घिस-घिस के रंग डाले काले पन्ने,
पर वो साथ नहीं,
भवर उठते थे टीसों के अंतर्मन में,
और तेरे साए का नींदों में वो मुस्कुराना था,
यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था ॥

कौन...















कौन रुकता है किसी ज़माने के लिए,
रूह बदल जाती है आगे निकल जाने के लिए,
वक़्त, बे-वक़्त ही गुज़रा गुज़र जाने के लिए,
कौन रुकता है यहाँ किसी ज़माने के लिए ।

एक अजीब कशमकश जगती है ज़माने के लिए,
लोग, हाक़ दिए जाते है मयखाने के लिए,
अब तो मय भी न मिलती तरानों के लिए,
कौन रुकता है किसी ज़माने के लिए ॥

Wednesday, April 17, 2013

जड़ चेतन मन...















जड़ चेतन मन, जड़ मत हो मगन,
बेल बहुत लम्बी है, तनती रह तू तन,
फूल खिलेगा, सुगन्धित होगा तन,
जड़ चेतन मन, जड़ मत हो मगन ।

पतझड़ की बेला, बस दो पल का मेला,
राह बहुत लम्बी है, चलता चल अकेला,
साथ फूल खिले जो, संग देख कर हो मगन,
बेल बहुत लम्बी है, तनती रह तू तन,
फूल जब खिलेगा, सुगन्धित होगा मन,
जड़ चेतन मन, जड़ मत हो मगन ॥

Tuesday, April 16, 2013

कभी...

कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर,
सोचा किये बेकार हो कर,
क्यूँ रोये थे कल रात तार-तार हो कर,
सब कुछ तो वैसे ही था बे-आकार हो कर,
बस, यादें ही तो मिली थी बार-बार खो कर,
कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर ।

अश्क़, मिटाते रहे, मुंह, बार-बार धो कर,
सुर्ख़ आँखों भी छुपाते रहे चार-चार हो कर,
जब भी मिले, मुरझाये बार-बार खो कर,
क्यूँ रोये थे कल रात तार-तार हो कर,
सोचा किये यूँ बेकार हो कर,
कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर ॥

Thursday, April 11, 2013

क्यूँ रोया मैं कल रात...

क्यूँ रोया मैं कल रात,
याद नहीं,
क्यूँ गुज़री आँखों में रात,
याद नहीं,
भीगे तकिये भी सोख गए अश्क़ों की बरसात,
याद नहीं,
क्यूँ रोया मैं कल रात,
याद नहीं ।

समझ न आई कोई बात,
याद नहीं,
रूठी रही मुझसे रात,
याद नहीं,
समझानी, चाही दिल-ए-हालात,
याद नहीं,
क्यूँ रोया मैं कल रात,
याद नहीं ॥

संवेदना की वेदना...

संवेदना की वेदना भी कटाक्ष करने लगी,
लफ़्ज़ों से बनी आयतें भी हुनर बध करने लगी,
ख़्वाब भी टूटने लगे साहिलों पर आ कर,
मंजिलें, मंज़र-ए-आलम कुछ इस तरह बदलने लगी ।

ख्वाहिशों का फ़लसफ़ा भी लिखा मैंने,
चाहतों का सिलसिला भी लिखा मैंने,
फिर क्यूँ किस्मत पलट करने लगी,
ख़्वाब टूटने लगे साहिलों पर आ कर,
यूँ मंजिलें मंज़र-ए-आलम बदलने लगी ।।

Tuesday, April 9, 2013

डरने लगी...

बेचैनी, तपिश बन जलने लगी,
घुटन, अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी,
लफ्ज़, बिखरने लगे कागज़ पर इधर-उधर,
और रूह तेरे जाने के ख़्याल से भी डरने लगी ।

क्यूँ चाहने लगा हूँ तुझको,
यह मालूम नहीं,
अपना सा पाने लगा हूँ तुझको,
क्यूँ, मालूम नहीं,
हाँ, हक है मेरा तुझ पर,
फिर भी डरने लगा,
शायद तुझे खो देने के ख़्याल से भी डरने लगा,
घुटन, अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी,
बेचैनी, तपिश बन जलने लगी,
लफ्ज़, बिखरने लगे कागज़ पर इधर-उधर,
और रूह तेरे जाने के ख़्याल से भी डरने लगी ।

Saturday, April 6, 2013

महफ़िल-ए-आलम...

दौर-ए-शरीक़ भी हुए हाल-ए-दिल मेरे,
पर, आँसू बहाने की वजह न मिली ।

मौसकी में ही सही, जिंदा है महफिलों में,
वर्ना साकी (इश्क़) ने तो कबका मार दिया था ।

बहुत बेचैनी हुई जब तुझको दूर जाते देखा,
दिल में आह और कानों में तेरे लौट आने के वादे गूंजते रहे ।

एहसास-ए-कूबत भी देखी करके, कुछ गमज़र्द भी रहे,
मंसूब-ए-मोहोब्बत का फ़कत कोई वफ़ा न मिला ।

हालात-ए-दिल परवाने का, ख़ाक-ए-ख़त्म से हुआ,
इश्क़ में मारे फिरता था, एक बे-जान फूल पर ।

मोहोब्बत क्यूँ हुई मुरझाये फूल से,
राज़-ए-मोहोब्बत अब तक न खुला,
ता-उम्र जिये उर्स-ए-मोहोब्बत में,
पर जो चाहा वो न मिला ।

Thursday, April 4, 2013

अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी...













अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी तब जाना,
जब रूह फ़ना हो गयी,
ख़ाक-ए-अक्स तब माना,
जब "मैं" से जुदा हो गयी,
राख़-ए-ज़र्रा तब हुआ,
जब आह-ए-उल्फ़त हो गयी,
अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी तब जाना,
जब रूह फ़ना हो गयी ।

Wednesday, April 3, 2013

और...

और, वो सांसें भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे,
वो रात भी रूठ गयी, जो रुकी हुई थी तुझसे,
गीले तकिये भी सूख गए, जो भीगे पड़े थे तुझसे,
वो आँखें भी सूख गयी, जो नम कभी थी तुझसे,
और, वो बात भी छूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे,
वो सांस भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे ।

गहन-घने थे साये, जो धीरे घर कर आये,
यादों में सकुचाये, मन-हलचल कर जाये,
आँखों के कोने-कोनों में, बाँध बंधे चिल्लाए,
मद्धम काली रातों में, तकिये को भिगाए,
अब, यादें भी वो रूठ गयी, जो बंधी कहीं थी तुझसे,
वो बातें भी छूट गयी, जो जुड़ी कहीं थी तुझसे,
वो रातें भी अब रूठ गयी, जो रुकी हुई थी तुझसे,
और सांसें भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे ।।

Tuesday, April 2, 2013

तराने...

दिल में कई तराने उठते है,
गुज़रे कई ज़माने उठते है,
ख्वाहिशों की कश्तियों पर सवार,
यादों के भवर हज़ार,
मिलते-बिछड़ते कुछ गाने उठते है,
दिल में कई तराने उठते है ।

ख्वाहिशों की कश्तियाँ,
यादों के भवर,
बनती-बिगडती बातें,
आशाओं के सफ़र उठते है,
गुज़रे कई ज़माने उठते है,
दिल में कई तराने उठते है ।।

एक नाम जाना पहचाना सा,
कुछ अपना सा कुछ बेगाना सा,
आँखों की मीठी बोलियाँ,
मानो, कानों में रस घोल दिया,
दूर, बहुत दूर, कुछ चेहरे पहचाने लगते है,
दिल में गुज़रे कई तराने उठते है,
ख्वाहिशों की कश्तियों पर सवार,
यादों के भवर हज़ार,
मिलते-बिछड़ते कुछ गाने उठते है,
दिल में कई तराने उठते है ।।।

Sunday, March 31, 2013

ख्वाहिशें...

ख्वाहिशों की सीढियाँ चढ़,
हसरतों की खिड़की से झांकती उमीदों के बूते,
मैंने एक राह चुन ली,
कुछ अरमां दिल के कहे
कुछ उनके दिल के सुने,
और मैंने एक चाह चुन ली ।

क्यूँ न एक दौर अजमाया जाए,
लफ़्ज़ों को पुरजोर अजमाया जाए,
कुछ लय बने, कुछ तराने,
क्यूँ न एक बार और अजमाया जाए ।

Friday, March 29, 2013

दिल-ए-हसरत...

दिल-ए-हसरत, दिल-ए-उल्फ़त का तराना,
कल रात तकिये पर गुज़रा ज़माना,
वाकिफ़ था दिल टूटने के हालात से,
पर कल जो गुज़रा, तो गुज़रा ज़माना ।

मेरी परेशानियों का सबब तू,
मेरी निगेबानियों का सबब तू,
तू और तेरी जुत्सुजू,
मुझ में है तू, तो जिंदा हूँ ।

एक सफ़र ऐसा भी गुज़रा कोई सफ़र-ग़र न मिला,
मैं, चलता रहा राह-ए-राहत-सिलसिले, जो गुज़रा वो मंज़र न मिला ।

Wednesday, March 27, 2013

उम्मीद...

कितनी ख्वाहिशें जी मैंने,
कितनी हसरतें पी मैंने,
पर लिख न सका वो हसरत-ए-दिल नादान ।

बड़ी सरगोशी से थामी कलम-ए-आरज़ू,
शिद्दत से उकेरी संगेमरमर पर,
कहने को मैले कागज़ के टुकड़े थे,
जिन्हें, सजाया भीगी हसरतों से,
पर लिख न सका वो हसरत-ए-दिल नादान ।।

लोगों की उम्मीद जगने लगी,
कुछ महफ़िलें मेरे नाम पर सजने लगी,
दौर-ए-जाम भी उठाये मेरे नाम पर,
शायर का दर्जा दिया बे-नाम पर,
पर लिख न सका हसरत-ए-दिल नादान ।

कितनी ख्वाहिशें जी मैंने,
कितनी हसरतें पी मैंने,
पर लिख न सका वो हसरत-ए-दिल नादान ।।

Tuesday, March 26, 2013

होली...

रंगों की फुहार,
मौज-बहार,
सब हो जाओ तैयार,
आया रंगों का तौहार,
छेड़ो खुशियों की बयार,
मनाओ, मिल कर सब तौहार ।

Friday, March 22, 2013

हमने भी तराने लिखे...

हमने भी तराने लिखे,
गौर-ए-तलब ज़माने लिखे,
लिखना, दिल-ए-हसरत चाही,
कहना, दिल-ए-उल्फ़त चाही,
और तेरी जुत्सुजू के नज़राने लिखे,
हमने भी तराने लिखे ।

कभी आयते लिखी, कभी कुराने लिखी,
अभिनव (नयी) कसौटी पर कई ज़माने लिखे,
लोगों ने नज़्म लिखी, और हमने, जाम और मयखाने लिखे,
गौर-ए-तलब ज़माने लिखे,
लिखना, दिल-ए-हसरत चाही,
कहना, दिल-ए-उल्फ़त चाही,
और तेरी जुत्सुजू के नज़राने लिखे,
हमने भी तराने लिखे ।।

Wednesday, March 20, 2013

आज, बहुत रोज़ बाद...
















आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
क्या कहता तुझसे, इस असमंजस में था दिल,
कहना बहुत कुछ था, पांव ज़मीं से गए थे हिल,
यादें के साए, जो घर कर आये,
तनहा यादें समेटे, मैली चादर ले आये,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने ।

शक का कोई शुबा न था,
फिर भी किया मैंने,
तुझसे दूर होता जान,
फिर से जिया मैंने,
वो फीकी पड़ती आवाज़,
और चीखते सवालों को सिला मैंने,
शक का कोई शुबा न था,
फिर भी किया मैंने,
क्या कहता तुझसे, इस असमंजस में था दिल,
कहना बहुत कुछ था, पांव ज़मीं से गए थे हिल,
दिल में गुबार उठा था, लफ्ज़ नज़र न पाए मैंने,
आज, बहुत रोज़ बाद, होंठ कापते से पाए मैंने ।।

पिघले अरमां...

पिघले नीलम से पिघले अरमां,
सुलगते लम्हों में सिमट कर रह गए,
कुछ सांसें तनहा थी,
कुछ हम खुद की आहों में सिमट कर रह गए ।

मुद्दतों तरसे जिस आरज़ू-ए-इश्क़ को,
वो (खुदा) जो मिला तो उम्र ही गुज़र गयी ।

वाकिफ़ खुद भी थे आदत-ए-इश्क़ से अपनी,
आज बेवफ़ाई का उनसे ख़्याल आ गया ।

ता-उम्र जिए साथ, पर दिल में उनके घर कर न सके,
अब तो दूजों के जाने से उनकी सांसें थमा करती है ।

Friday, March 15, 2013

ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है...

















दिल-ए-दर्द को बाखूबी सजाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
दर्द की सिरहन रूह में छुपाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
मुद्दतों की तमन्ना को कुचल, चलते जाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।

ख्वाहिशों की कश्ती का किनारा ढूंढते ढूंढते,
कल के सूरज पर सितारा ढूंढते-ढूंढते,
लफ़्ज़ों की जात में घुलते जाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।।

मुफलिसी का जाम ओढ़े, कलमों को कुछ यूँ मरोड़े,
चलते जाते है लोग,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है,
दिल-ए-दर्द को बाखूबी सजाते है,
ऐसे ही नहीं शायर बन जाते है ।।।

तलबगार...

वाह वाही के तासीर नहीं, ईमान के तलबगार है,
पलट-वार का सिलसिला नहीं, हम शायर यार है,
कभी कुछ लिख देते है अभिनव, लफ्ज़ बे-शुमार है,
वाह वाही के तासीर नहीं, ईमान के तलबगार है ।

लफ्ज़ मिला कर जहान बना लो,
भर कर सारे ताज सजा लो,
मान मेरे लफ़्ज़ों का पा लो,
लिख कर सारे राज़ छुपा लो,
ये पलट-वार का सिलसिला नहीं, हम शायर यार है,
वाह वाही के तासीर नहीं, ईमान के तलबगार है ।।

Wednesday, March 13, 2013

सवाल नहीं उठते...

आज कल ज़ेहन में ख़्याल नहीं उठते,
तन्हाई में उलझे सवाल नहीं उठते,
कदम बढ़ते है मगर, ख़्याल नहीं उठते,
आज-कल ज़ेहन में सवाल नहीं उठते ।

तन्हाई का तस्सवुर छाया रहता है,
कोई मातम सा गहराया रहता है,
हसरतें भी तनहा रहती है,
रंगीनियत पर सूखा सा छाया रहता है,
कलम पकड़ता हूँ तो ख़्याल नहीं उठते,
तन्हाई से लिपटे सवाल नहीं उठते,
आज कल ज़ेहन में ख़्याल नहीं उठते ।।

Thursday, February 28, 2013

तराश-इ-लफ्ज़...

तराश-इ-लफ्ज़ ग़ालिब-इ-कलम उकेरी है,
आज मुद्दत बाद मैंने फिर कलम उठाया है ।

आदत-इ-शराब भी शौक-इ-कमाल है,
न छोड़ी जाती है, न पकड़ पाते है ।

उम्र-ए-इश्क गुज़ार दी, इंतज़ार-ए-इज़हार में,
अब ढलती उम्र में दिल्लगी अच्छी नहीं ।

नासूरों की ख़बर तब लगी, जब ख़ाक-ए-जिगर हो गया,
हम तो गोया बावस्ता ही जीया करते रहे ।