Thursday, December 29, 2011

उनके गम में इस कदर डूबे...

उनके गम में इस कदर डूबे की ज़िन्दगी वीरान लगने लगी,
घर मकान बन गए, कब सुबह, कब शाम ढलने लगी,
दिन तो गुज़र जाता था, भीड़ की तन्हाइयों में,
पर रात न-गुज़र थी मुनासिब, यादों की परछाइयों में,
हमसफ़र जो थे, क्यूँ राह में सफ़र कर गए,
हम तो साथ चलते रहे, क्यूँ राह अनजान कर गए,
लद गए वो सुहाने दिन, धुंधली पड़ गयी सुखभरी रातें,
अब तो तनहा तकिया है, और कुछ गीली यादें,
उनके गम में इस कदर डूबे कि ज़िन्दगी वीरान लगने लगी,
घर मकान बन गए, कब सुबह, कब शाम ढलने लगी...

Wednesday, December 28, 2011

मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को...

मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थी पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी,
मैं तनहा था यादों में खोया,
रातों को जगता, दिन में था सोया,
राह में चलते-चलतें, जाने क्या पाया, क्या खोया,
मैली-कुचली काया में, कभी हँसता, कभी रोया,
कागज़ की ज़मीनों पर लिखता, पर दिल की दीवारें थी वीरान वही,
मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थी मेरी पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी...
यादों के लहराते बादल, क्यूँ, सब तेरी याद दिलाते थे,
बंज़र धरती, सूखे पत्ते, सब तेरी बात बताते थे,
धुल की आंधी में खो कर भी, बनी रही पहचान वही,
लौट जो आया तो देखा, मेरे लफ़्ज़ों की पहचान नयी,
मैं भूल चला था लफ़्ज़ों को, जिनसे थे पहचान कभी,
राह में तनहा खो चला था, जो मुझसे थी अनजान सभी...

Monday, December 26, 2011

बे-मतलब ज़िन्दगी...

बे-मतलब ज़िन्दगी जिए जा रहा हूँ,
क्यूँ तनहा राहों पर यूँ बढे जा रहा हूँ,
कोई मुद्दा नहीं है ज़िन्दगी जीने का,
तो फिर क्यूँ ऐसे जिए जा रहा हूँ...
तनहाइयों और रुसवाइयों का सबब बन बैठा है, क्यूँ अक्स मेरा,
उलझे सवालों का सबब बन बैठा है, क्यूँ अक्स मेरा,
कोई मुद्दा नहीं है ज़िन्दगी जीने का,
तो फिर क्यूँ ऐसे जिए जा रहा हूँ,
बोझ सी बन पड़ी है ज़िन्दगी,
फिर क्यूँ बे-मतलब जिए जा रहा हूँ,
तनहा राहों पर आगे बढे जा रहा हूँ...

Thursday, December 22, 2011

तन गन्दा...

तन गन्दा, यह मन गन्दा,
जीवन का गुज़रा हर पल गन्दा,
गन्दी मेरी सोच, क्यूंकि गन्दा सबका कहना,
लोगों से सीख कर जाना, दर्द को यूँ सहना,
झूठ, घूस, बेमानी के गुण मुझमे यूँ डाले,
अब मुझको क्यूँ कहते है, गम की तरह भुलाले,
मैं तो निश्छल था, पाक था, पानी की तरह,
क्यूँ घोला मुझमे ज़हर, खून में बेमानी की तरह,
अब न चाह कर भी मैं गन्दा हूँ,
सब देख कर भी मैं अँधा हूँ,
बन गयी, गन्दी मेरी सोच, क्यूंकि गन्दा सबका कहना,
लोगों से सीखा मैंने, दर्द को यूँ सहना,
तन गन्दा, यह मन गन्दा,
जीवन का गुज़रा हर पल गन्दा...

Tuesday, December 20, 2011

ज़िन्दगी इतनी बेरंग होगी...

ज़िन्दगी इतनी बेरंग होगी, सोचा न था,
ख़्वाबों का कारवां भी ऐसा सूना होगा, सोचा न था,
न सोचा था कि मेरे लफ़्ज़ों का दाएरा भी यूँ कम पड़ेगा,
ऐसा चला सूनेपन का जादू, सोचा न था,
होगी ज़िन्दगी में अरमानों को पाने की चाहत, सोचा न था,
यूँ ख़्वाबों का कारवां भी ऐसा सूना होगा, सोचा न था,
ज़िन्दगी इतनी बेरंग होती, सोचा न था,
यूँ चलेगा सूनेपन का जादू, सोचा न था...

Monday, December 19, 2011

बिगड़ गया हूँ मैं...

बिगड़ गया हूँ मैं,
जाने क्यूँ, अपनी ही राहों से बिछड़ गया हूँ मैं,
बे-मतलब, बे-ख्याल-इ-दिल क्यूँ लिखने लगा हूँ मैं,
शायद, अपनी लिखने की जात से बिछड़ गया हूँ मैं,
रोज़ कुछ न कुछ लिखता हूँ, बे-मतलब, बे-ताल,
रोज़ कहीं से आ जाते है, दिल में क्यूँ सवाल,
जाने कौन-कौन से लफ्ज़ बनाने लगा हूँ मैं,
शायद, अपनी लिखने की जात से बिछड़ गया हूँ मैं,
बस बे-मतलब, बे-ख्याल-इ-दिल लिखने लगा हूँ मैं,
जाने क्यूँ, अपनी ही राहों से बिछड़ गया हूँ मैं,
शायद, बिगड़ गया हूँ मैं...

Tuesday, December 13, 2011

जब रिश्तों में घुटन बढ़ जाए...

जब रिश्तों में घुटन बढ़ जाए तो रिश्ते तोड़ देना,
मुस्कुराकर अपनों से मुंह मोड़ लेना,
क्यूंकि दर्द उनके हिस्से आये, यह अच्छी बात नहीं,
इसलिए, खुद अपने क़दमों का मुंह मोड़ लेना,
जब रिश्तों में घुटन बढ़ जाए तो रिश्ते तोड़ लेना,
वो चेहरे की मुस्कराहट पर, अश्कों के मोती न अच्छे है,
कुछ हम भी सच्चे थे, कुछ वो भी अच्छे है,
उनसे बिछड़ने का दर्द, सिर्फ उनके हिस्से आये, यह अच्छी बात नहीं,
इसलिए, खुद अपने क़दमों का मुंह मोड़ लेना,
मुस्कुराकर अपनों से मुंह मोड़ लेना,
जब रिश्तों में घुटन बढ़ जाए तो मुस्कुराकर रिश्तों तोड़ देना...

Sunday, December 11, 2011

वो जो चेहरे पर झूठा चेहरा है...

वो जो चेहरे पर झूठा चेहरा है, उससे बदल जाने दे,
कहते है तेरे चाहने वाले, तेरी हसरतों में सवर जाने दे,
हम तो जिंदा है तेरे ख्यालों की वादियों में,
हमें जिंदा रहने दे, तेरी जुल्फों में घर बनाने दे,
वो जो चेहरे पर झूठा चेहरा है, उससे बदल जाने दे,
कहते है तेरे चाहने वाले, अपनी हसरतों में सवर जाने दे...

Wednesday, December 7, 2011

छट गए सारे बदरा...

छट गए सारे बदरा, अंधियारे की छाव आ गयी,
कुछ बूँदें तन पर गिरी, मेरे अश्कों में समां गयी,
मैं जो खुल के यूँ रोया, जाने किस-किस सोच में,
न जाने कहाँ से, तेरी तस्वीर आँखों में आ गयी,
मैं दूर था तुझसे या खुद से, यह मालूम न था,
तू दूर थी मुझसे या मैं तुझसे, यह मालूम न था,
भीगता रहा तनहा, जाने क्यूँ बूँदें मुझमे समां गयी,
छट गए सारे बदरा, अंधियारे की छाव आ गयी...

अचानक...

क्यूँ दर्द सा बढ़ जाता है अचानक,
क्यूँ याद आता है बीता लम्हा अचानक,
मैं तो भूल चूका था तनहा तेरी यादों को,
फिर क्यूँ यूँ वापस आया है यह दर्द अचानक,
सोचते-सोचते, क्यूँ गम की गर्दिश में बात रह गयी अधूरी,
अश्क तकिये पर बिखरते रहे और रात रह गयी अधूरी,
खुद की नज़रों से नज़रें मिलाने की कोशिश जो की मैंने,
क्यूँ खुद की आँखों में बात रह गयी अधूरी...

Thursday, December 1, 2011

तुझे चाह कर भी...

एक फासला जो दरमियान है, क्यूँ काटता नहीं मगर,
मैं चाह कर भी तुझे पा न सकू, क्यूँ लगता है यह डर,
ख़्वाब तुम्हारे साथ क्यूँ चलते, जानूं न मगर,
तुझे चाह कर भी क्यूँ पा न सकू, क्यूँ लगता है यह डर...
साथ तुम्हारा, हर पल, हर लम्हा, रहता है मगर,
पास तुम हो कर, भी दूर हो जैसे, आता है नज़र,
सिर्फ एक झलक को, क्यूँ तरसे निगाहें, मैं जानूं न मगर,
एक फासला, जो दरमियान है, क्यूँ कटती नहीं डगर,
तुझे चाह कर भी क्यूँ पा न सकू, क्यूँ लगता है यह डर...

Wednesday, November 30, 2011

सर्द है रातें, पर जल रहा हूँ मैं...

सर्द है रातें, पर जल रहा हूँ मैं,
यादों में तेरी, क्यूँ गल रहा हूँ मैं,
अधूरे ख़्वाबों का आसमान लिए, क्यूँ स्याह समुन्दर में पिघल रहा हूँ मैं,
क्यूँ तनहा यादों को, साथ लिए चल रहा हूँ मैं,
एक लम्बा फासला है जो, दूरी बन बैठा है अब,
कल वो रास्ते भी छोटे थे, जो मीलों लम्बे हो चुके है अब,
गुज़रता रोज़ हूँ, उन्ही गली, कूचे, दरवाजों से, जहाँ कल तुझको पाया था,
गुज़रता अब हूँ, उन्ही चौक, रास्ते, चोबारों से, जहाँ तनहा मेरा साया था,
एक रात लम्बी थी कभी, जो कटती नहीं थी दरमियान,
एक रात लम्बी है अभी, जो मिटती नहीं है दरमियान,
कुछ अधूरे ख़्वाबों का आसमान लिए, स्याह समुन्दर में पिघल रहा हूँ मैं,
क्यूँ तेरी तनहा यादों के साथ चल रहा हूँ मैं,
यादों में तेरी, क्यूँ गल रहा हूँ मैं,
सर्द है रातें, पर जल रहा हूँ मैं...

Wednesday, November 23, 2011

वो आये बैठे मेरे सिरहाने...

वो, आये बैठे सिरहाने, क्यूँ सांसें थम सी गयी,
वक़्त चलता रहा, क्यूँ बातें थम सी गयी,
काजल की दरकार में छुपाये, बैठे थे कुछ बातें,
नज़रें मिलते ही क्यूँ, बातें थम सी गयी,
कुछ कहने की आस में बैठे थे मेरे सिरहाने,
कुछ भी न कह कर, सारी बातें कह गयी,
वक़्त चलता रहा, फिर क्यूँ बातें थम सी गयी,
वो आये बैठे मेरे सिरहाने और सांसें थम सी गयी...
कभी देखते नज़रों के कोने सी, होंठों पर बुदबुदाहट और मुस्कान लिए,
पास बैठे रहे बहुत देर तक, अपनी एक पहचान लिए,
काजल के नीचे छुपाये थे कुछ बातें,
न जाने क्यूँ नज़रें मिलते ही, बातें थम सी गयी,
वो आये बैठे मेरे सिरहाने और मेरी सांसें थम सी गयी...

Tuesday, November 22, 2011

मय तो बस बहाना है...

मय तो बस बहाना है, हसरत-इ-दिल सुनना है,
जाम जो छलक भी जाए साकी, पैमाना, अंदाज़ से उठाना है,
लफ्ज़ बेशक बे-मतलब लगे, कुछ लिख जरूर जाना है,
मय तो बस बहाना है, हसरत-इ-दिल सुनना है...
गर! जो होश में होते साकी, सारा जहां छीन लेते,
गर! जो होश में होते साकी, उनकी आँखों से नशा छीन लेते,
जाम जो छलके साकी, पैमाना, फिर भी अंदाज़ से उठाना है,
मय तो बस बहाना है, हसरत-इ-दिल सुनना है...
होश में होकर भी बे-होश क्यूँ है लोग,
ज़िन्दगी की लत में उलझे क्यूँ है लोग,
सबकी आँखों से, नशे का परदा यूँ उठाना है,
मय तो बस बहाना है, हसरत-इ-दिल सुनना है...

Monday, November 21, 2011

दोस्त जान...

दोस्त जान, कलम दे दिया हांथों में,
पर देखते ही देखते, कलम से क़त्ल-इ-आम कर दिया,
सोचा किये, क्या गुनाह किया हमने,
जो खुद को बदनाम कर लिया,
अब लफ़्ज़ों का जनाज़ा लिए फिरते है हम, दर-ब-दर भटक,
और वो बड़े शौक से हमे, मय्यत में भी बदनाम करते है |

Friday, November 18, 2011

वो देखो आये, चौहान साहब हमारे...

वो देखो आये, चौहान साहब हमारे,
गाँव की कच्ची गलियों से, लाये बातों के पिटारे,
पतली काया, पतली छाया में जाने क्या-क्या समाया,
ख़्वाबों का पुलिंदा लिए, चलते साहब हमारे,
गाँव की कच्ची गलियों से, लाये बातों के पिटारे,
कभी लड़ते, कभी झगड़ते, रहते सारे दिन,
प्रवीण-प्रवीण की रट लगा कर, घुमे हर पलछिन,
धुन में खुद की रहते, यह साहब हमारे,
वो देखो आये, चौहान साहब हमारे,
मुकेश के गीतों के यह है फेन,
गीत बजा कर ले लेते चैन,
गौतम के प्यारे, सर के दुलारे है साहब हमारे,
वो देखो आये, चौहान साहब हमारे...

चौहान साब हमारे...

दूर गाँव से चल कर आये, चौहान साब हमारे,
पतली काया, पतले, चेहरे वाले, चौहान साब हमारे,
उत्तरांचली बोली, धूमिल छाया,
दिल्ली की गलियों में, क्या खोया, क्या पाया,
जाने, कौन-कौन सा ज्ञान छुपाये, बैठे साब हमारे,
पतली काया वाले, चौहान साब हमारे,
गेम-शेमे की दुनिया के, बेताज खिलाड़ी वो,
बातों ही बातों में, करतब दिखलाते वो,
नाराज़ न होते कभी, सदा मुस्कुराते वो,
बातों ही बातों में, खुद घुल से जाते वो,
अपनी ही काया में, खो जाते साब हमारे,
वो आये देखो, चौहान साब हमारे...

Wednesday, November 16, 2011

छंद कथन...

कलम उठा यूँ लिखने बैठा, जाने किस-किस सोच में,
क्या लिखूं, क्या न लिखूं, के ताने-बाने में बुन कर रह गया,
हाल-इ-हसरत, कलम-इ-जुर्रत, लफ़्ज़ों में क्यूँ घुल गया,
क्या लिखूं, क्या न लिखूं, के ताने-बाने में बुन कर रह गया...


लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...

Thursday, November 10, 2011

अच्छा लगता है...

लगता क्यूँ नहीं कुछ अच्छा, सब कुछ क्यूँ बेगाना लगता है,
सब-कुछ है पास परन्तु, कोशिश की एक आस जगाना अच्छा लगता है,
लोगों की भीड़ में खोकर भी, मुस्कुराना अच्छा लगता है,
आज तनहा हो, कलम उठाना अच्छा लगता है,
राह तनहा, हो अँधेरा, चलते जाना अच्छा लगता है,
लोगों की भीड़ में खोकर भी, मुस्कुराना अच्छा लगता है...

Wednesday, November 2, 2011

हश्र मेरे अरमानों का...

हश्र मेरे अरमानों का, कुछ यूँ हुआ इस तरह,
कि मुस्कराहट-मुस्कराहट में, दिल निसार हो गया,
मैं तनहा बैठा सोच में, लफ़्ज़ों का तलबगार हो गया,
तनहा चाँद, तनहा रात, क्यूँ तन्हाई का शिकार हो गया,
हश्र मेरे अरमानों का, कुछ यूँ हुआ इस तरह,
कि मुस्कराहट-मुस्कराहट में, दिल निसार हो गया...

करतब-इ-दिल...

करतब-इ-दिल, हाल-इ-बयान, मुज्ज़स्सल हो गया,
सोचा था खुदा और क्या बयान हो गया,
शायरी का खुमार यूँ जागा, हाल-इ-दिल गुलज़ार हो गया,
सोचा था खुदा और क्या बयान हो गया,
नरगिसी आँखों का मंज़र यूँ छाया, कि मय का तलबगार हो गया,
आँखों में जो खोया, खुद की चाहत से पार हो गया,
सोचा था खुदा और हाल-इ-दिल बयान हो गया,
करतब-इ-दिल, हाल-इ-बयान, मुज्ज़स्सल हो गया...

फिर क्यूँ तू भगवान् है...

तू पत्थर की मूरत है, फिर क्यूँ तू बलवान है,
न जीवन, न मृत्यु, फिर क्यूँ तू भगवान् है,
कभी अच्छा, कभी बुरा, क्यूँ तेरी ऐसी काया है,
न तू अच्छा, न मैं अच्छा, फिर क्यूँ ऐसी यह माया है,
तू पत्थर की मूरत है, फिर क्यूँ तू बलवान है,
न जीवन, न मृत्यु, फिर क्यूँ तू भगवान् है,
बन अघोरी वन में मैंने, जो यूँ बरसों तप किया,
बन एक ढोंगी, वन में मुझसे, क्यूँ यूँ मेरा जप लिया,
मांगे जो वरदान यूँ मैंने, मैला-कुचला तन दिया,
कह मुझको मानव, श्रेष्ठ रचना, मैला-कुचला तन दिया,
तू पत्थर की मूरत है, फिर क्यूँ तू बलवान है,
न जीवन, न मृत्यु, फिर क्यूँ तू भगवान् है...

Sunday, October 16, 2011

आज सुबह की रौशनी...

आज सुबह की रौशनी, कुछ बे-बाक, कुछ पाक सी है,
पत्तियों पर ओस की बूँद, कुछ नम, कुछ साफ़ सी है,
सूरज की रौशनी, छूने लगी मन की गहराईयों को,
ठंडी मुस्कुराती हवा, बालों में छेड़ने लगी नर्माइयों को,
अठखेलियाँ करती तितलियाँ, भवरों से अलग,
चेहचाहती सुरधावानियाँ, बागों से अलग,
फूलों के बाग़ में, यूँ छायी सी है,
आज सूरज की रौशनी, संग कुछ नयी तपिश लायी सी है,
सुबह की रौशनी. कुछ नर्म, कुछ पाक सी है,
पत्तियों पर ओस की बूँदें, कुछ नम, कुछ साफ़ सी है...

Saturday, October 15, 2011

वो 413 और उसकी धुंधली यादें...

वो 413 और उसकी धुंधली यादें,
ऊँगली में चोट उनके, मेरी आँखों में सौ बातें,
इशारों में पुछा, क्यूँ यह हाल है,
आँखों में जवाब आया, दिल में क्यूँ यह सवाल है,
फिर अचानक खो गए वो दिन, धुंधली हो गयी यादें,
अब न आँखों में आँखें है, न इशारों में बातें,
वो 413 और उनकी धुंधली यादें,
अब न ऊँगली में चोट है, न आँखों में सौ बातें...

Thursday, October 13, 2011

आज फिर उनसे मुलाकात हो गयी...

आज फिर उनसे मुलाकात हो गयी,
आँखों-आँखों में जाने कितनी बात हो गयी,
होंठ न उनके हिले, न हम कुछ कह सके,
फिर क्यूँ आँखों में यूँ बरसात हो गयी...
तनहा खड़े देखते रहे, भीड़ में खोते उन्हें,
लम्हा थमाते रहे, आँख से ओझल होते उन्हें,
अश्कों के जैसे, लफ़्ज़ों की बरसात हो गयी,
आँखों-आँखों में जाने कितनी बात हो गयी,
जाते-जाते भी, मुड़ कर देखना न भूले वो,
दूर जाते-जाते भी, फिर मिलना कहना न भूले वो,
होंठ न उनके हिले, न हम कुछ कह सके,
फिर क्यूँ आँखों में यूँ बरसात हो गयी,
आज फिर उनसे मुलाकात हो गयी,
आँखों-आँखों में जाने कितनी बात हो गयी...

Wednesday, October 12, 2011

तेरे बिन बुरे से थोड़े कम है...

हाँ! नदी तू, किनारा तेरा हम है,
तेरे बिना बेसहारा जैसे हम है,
तेरे बिन गुज़ारे कैसे दिन है,
तेरे बिन बुरे से थोड़े कम है...
साथ तेरे मुस्कान जैसे हम है,
आँखों की रौशनी में, काजल की शान जैसे हम है,
होंठों पर हलकी सुर्ख़ियों में, लाल जैसे हम है,
आईने में झिल-मिल अक्स की शान जैसे हम है,
हाँ! तेरे बिन बेसहारा जैसे हम है,
तेरे बिन बुरे से थोड़े कम है...

Tuesday, October 11, 2011

कितना मुश्किल था कहना...

कितना मुश्किल था कहना, कि खुश हूँ तेरे बिना,
जबकि, दिल रोता रहा तेरे बिना,
हँसता रहा, दिल के दर्द को छुपा कर,
तनहा मैं खड़ा, तेरे बिना,
हाँ! कह दिया मुस्कुरा कर, तेरी ख़ुशी के खातिर,
पर तुम यह न समझोगी, कितना तनहा हूँ तेरे बिना...

फितूर अच्छा है दिल लगाने को...

फितूर अच्छा है दिल लगाने को,
हिम्मत अब नहीं किस्मत आजमाने को,
उम्र का पड़ाव, कहीं घुटन न बन जाए मेरे अन्दर,
इसलिए, कलम उठा लेता हूँ दिल लगाने को...
लफ्ज़ न हो मुख़ातिब, दिल की आहों को कलम से मिलाने को,
वक़्त न हो मुनासिब, दिल-इ-हसरत बताने को,
हिम्मत अब नहीं बाकी किस्मत आजमाने को,
यह दिल्लगी का फितूर अच्छा है, दिल लगाने को...

Monday, October 10, 2011

ज़िन्दगी में और भी गम है बताने को...

ज़िन्दगी में और भी गम है बताने को,
और भी ठोकरें लगेंगी, किस्मत आजमाने को,
मैं हार मान, बैठ गया था राहों में कहीं,
पर ज़िन्दगी रुकी नहीं, दिल लगाने को...
हाँ! तेरे आने से वक़्त थम गया था, तेरे आस-पास,
पर, ज़ज्बात पिघलते रहे, दिल-इ-हसरत बताने को,
हाँ! हार मान बैठ गया था राहों में कहीं,
पर ज़िन्दगी रुकी नहीं, दिल लगाने को.
और भी ठोकरें लगेंगी, किस्मत आजमाने को,
ज़िन्दगी में और भी गम है बताने को...

तेरी जैसी मिठास नहीं होती...

दोस्ती अगर पहचान होती, तो क्या बात होती,
बड़ो की दोस्ती में, बचपन के जैसे मुस्कान होती, तो क्या बात होती,
कहने को तो हर राह में एक दोस्त बना लेते है,
मगर सबकी दोस्ती में तेरी जैसी मिठास नहीं होती...

Tuesday, October 4, 2011

एक और दिन ढल गया, एक और रात हो गयी...

एक और दिन ढल गया, एक और रात हो गयी,
तुमसे कहने-सुनने की, आँखों में बात हो गयी,
दिल की हसरतों का भवर, यूँ उठा,
कि दिल के साहिल पर बैठे, आशिक से मुलाकात हो गयी,
एक और दिन ढल गया, एक और रात हो गयी,
तुमसे कहने-सुनने की, आँखों में बात हो गयी...
होसला मेरे लफ़्ज़ों का, दरिया की गहराईयों सा था,
नशा तेरे प्यार का, चाँद की रुसवाइयों सा था,
ख़्वाबों में तुझसे, कल मुलाकात हो गयी,
एक और दिन ढल गया, एक और रात हो गयी,
दिल के साहिल पर बैठे, खुद के आशिक से मुलाकात हो गयी...

सांसें क्यूँ पेश्तर तेज़ चलती है...

क्यूँ बोझ सी लगने लगी है ज़िन्दगी, सांसें भी पेश्तर तेज़ चलती है,
लफ्ज़ मुनासिब नहीं मिलते मुझको, हसरतें फिर क्यूँ मचलती है,
भूलने की कोशिश में रात-दिन बोझिल है सांसें, दिल के नासूरों को,
फिर क्यूँ तेरी यादें, चेहरे पर पिघलती है,
भूल जाना चाहता है दिल, दर्द की उन यादों को,
मुस्कुराना चाहता है दिल, याद कर, तेरी हँसीं की बातों को,
फिर क्यूँ लफ्ज़ मुनासिब नहीं मिलते मुझको, हसरतें फिर क्यूँ मचलती है,
क्यूँ बोझ सी लगने लगी है ज़िन्दगी, सांसें क्यूँ पेश्तर तेज़ चलती है...

एक गुनाह सा लगने लगा, गुफ्तुगू करना अब तो...

वक़्त बदल गया, हर अलफ़ाज़ बदल गया,
उनके कहने, सुनने का साज़ बदल गया,
एक गुनाह सा लगने लगा, गुफ्तुगू करना अब तो,
जाने क्यूँ यूँ वक़्त का लिबास बदल गया,
हर लफ्ज़, जो कभी नशे के काबिल था,
हर शाम, जो कभी जाम सी काबिल थी,
आज न जाने क्यूँ, सारा आलम बदल गया,
जाने क्यूँ यूँ वक़्त का लिबास बदल गया...
था मुनासिब पहले भी, दिल की हसरतों को रोकना,
तो न जाने आज फिर, दिल की हसरतों का उबाल बदल गया,
एक गुनाह सा लगने लगा है, गुफ्तुगू करना अब तो,
जाने क्यूँ ऐसा वक़्त का लिबास बदल गया,
वक़्त बदल गया, हर अलफ़ाज़ बदल गया,
उनके कहने, सुनने का हर साज़ बदल गया,
हर लफ्ज़, जो नशे के काबिल था,
आज वो लफ़्ज़ों का, लिबास बदल गया...

Friday, September 30, 2011

अनचाहे पन्नो से...

दिल न लगाओ, बड़ा दर्द होता है,
यादों के कई घाव का मर्ज़ होता है,
दर्द नासूर बन जाता है, कुरेदते-कुरेदते,
ज़ालिम यही प्यार का क़र्ज़ होता है...

कोई आँखों से गुज़र गया, ख्वाब की तरह,
यादों में सवर गया, सब्ज़-बाग़ की तरह,
था मेरा अपना कोई, एक नए एहसास की तरह,
सुरों की धुन पर सजे, साज़ की तरह,
कोई आँखों से गुज़र गया, ख्वाब की तरह,
यादों में सवर गया, सब्ज़-बाग़ की तरह,
चाहा बहुत था उस अजनबी को, अनचाही रात की तरह,
ख़्वाबों में खूब बातें की की थी, मीठी याद की तरह,
मेरी यादों में सवर गया कोई, सब्ज़-बाग़ की तरह,
कोई आँखों से गुज़र गया, अनजाने ख्वाब की तरह...

अब दिन की मत पूछो, रात की पूछो,
दिल पर गुज़रे खंजरों की सौगात की पूछो,
एक पल में ही दुनिया बदल गयी सारी,
दर्द में तड़पते हर एक अलफ़ाज़ से पूछो,
अब दिन की मत पूछो, रात की पूछो,
दिल पर गुज़रे खंजरों की सौगात की पूछो...

हम रोये बड़े अरमान से, वो हमसे दूर जा रहे थे,
दूर जाते-जाते भी दिल के पास आ रहे थे,
ख़ुशी इस बात की थी, उन्हें हमसे अच्छा हमसफ़र मिल गया,
और वो न चाहते हुए भी, हमारी मोहोब्बत का जनाज़ा लिए जा रहे थे,
क्या कह, रोक लेते उन्हें, हम तो इस काबिल भी न थे,
क्या कह, टोक देते उन्हें, वो तो खुद मायूस पहले से थे,
ख़ुशी इस बात की थी, उन्हें हमसे अच्छा हमसफ़र मिल गया,
और वो न चाहते हुए भी, हमारी मोहोब्बत का जनाज़ा लिए जा रहे थे,
हम रोये बड़े अरमान से, वो हमसे दूर जा रहे थे,
दूर जाते-जाते भी न जाने क्यूँ दिल के पास आ रहे थे...

बदल जाते है लोग पर यादें क्यूँ नहीं बदलती,
बदल जाती है बातें पर रातें क्यूँ नहीं बदलती,
बदलना क्यूँ? चाहत बदल गयी मेरी,
बदलना क्यूँ? आदत बदल गयी तेरी,
दर्द बाद-से-बदतर, बेज़ार हो रहा है,
क्यूँ तनहा सा हूँ और यह पागलपन हद्द से पार हो रहा है,
क्यूँ, बदल गयी बातें सारी, फिर रातें क्यूँ नहीं बदलती,
भीगा तकिया सिरहाने, फिर यादें क्यूँ नहीं पिघलती,
बदल जाते है लोग फिर यादें क्यूँ नहीं बदलती....

दर्द हुआ, धीरे से दिल में खंजर उतर गया,
चोट जिस्म पर न थी, घाव दिल में कर गया,
तनहा मैं खड़ा इस किनारे, दर्द में गुमसुम, अनजान,
लफ्ज़ उसके, दिल पर मेरे, क़त्ल-इ-आम सा कर गया,
मैं पिसने न देना चाहता था, उसको या खुदको,
तो खुद ही राहों से मुड़ गया,
दर्द हुआ, धीरे से दिल में खंजर उतर गया...

बहुत कमज़ोर हूँ अन्दर से, रिश्तों में टूट जाता हूँ,
दर्द किसी का सेहन नहीं होता, शायद, हद्द से गुज़र जाता हूँ,
चुपके से अश्क बहा कर, झूठी हँसी दिखता हूँ,
बस यूँ ही मुस्कुराता हूँ,
बहुत कमज़ोर हूँ अन्दर से, रिश्तों में टूट जाता हूँ,
दर्द सेहन नहीं होता, शायद, हद्द से गुज़र जाता हूँ...

वक़्त, पहले ही थम गया था, तेरे मेरे दरमियान,
बस बीच में एक दीवार खड़ी होना बाकी थी,
आज, मेरी ख्वाहिशों का जनाज़ा निकल गया,
फिर भी तेरी हँसी को तरसती आँखें है,
हाँ! तोड़ दिया रिश्ता, तेरी ख़ुशी की खातिर,
हाँ! तोड़ दिया खुद को, तेरी हँसी की खातिर,
वो वक़्त तो पहले ही थम गया था, तेरे मेरे दरमियान,
बस यूँ बीच में दीवार खड़ी होना बाकी थी...

लिख जो लेता मैं अगर, तो क्या लिख लेता,
कह जो देता मैं अगर, तो क्या कह देता,
तुम तो पहले ही ग़ैर थे, इन हवाओं की तरह,
फिर भी पसंद थे, पीपल की छाव की तरह,
दिल मैंने जो लगाया, भरा आहों की तरह,
रह गया मैं अकेला, तनहा राहों की तरह,
लिख जो लेता मैं अगर, तो क्या लिख लेता,
कह जो देता मैं अगर, तो क्या कह देता...

Monday, September 26, 2011

हाल-इ-दिल मुजस्सल, होसला-इ-कलम...

तकलीफ़ होती है, जब दिल दर्द के समुन्दर में उतर जाए,
तकलीफ़ होती है, जब दिल में यादों के खंजर उतर जाए,
तकलीफ़ होती है, जब शमा से परवाना जुदा हो जाए,
तकलीफ़ होती है, जब नज़रों से दर्द का पैमाना गुज़र जाए...

कुछ बूँदें चेहरे पर असर कर जाती है,
दिल के खालीपन को चेहरे पर नज़र कर जाती है,
बूंदों का भीगापन, इतना अन्दर तक असर होगा,
कि दिल कि ख्वाहिशों का समुन्दर, चेहरे पर नज़र कर जाती है,
दिल के खालीपन को चेहरे पर नज़र कर जाती है,
कुछ बूँदें चेहरे पर नज़र कर जाती है...

आज फिर रोयेंगे बादल, मेरे बे-ज़ार दर्द पे,
आज फिर बहेंगे अश्क, प्यार के इस मर्ज़ पे,
दर्द दिल में यूँ भरेगा, प्यार के इस क़र्ज़ पे,
धीरे-धीरे क़त्ल होगा, प्यार की ही तर्ज़ पे...

शेर-दिल रोया नहीं करते, होसले यूँ खोया नहीं करते,
दर्द में तड़प जरूर जाते है पर दर्द से यूँ खुद को भिगोया नहीं करते,
दर्द जब नासूर सा बन चुभने लगे, दिल के कोने-कोनो में,
दर्द से तपाद जरूर जाते है, दर्द से यूँ खुद को भिगोया नहीं करते,
शेर-दिल रोया नहीं करते, होसले यूँ खोया नहीं करते....

Monday, September 12, 2011

दर्द होता है...

दर्द होता है, दिल के नासूरों को छुपा लेता हूँ,
रो कर अपना दामन भिगो लेता हूँ,
कमज़ोर मैं नहीं दिल कमज़ोर है, यह सोच कर नज़रें झुका लेता हूँ,
दर्द होता है, दिल के नासूरों को छुपा लेता हूँ,
कुरेद गया कोई, दिल के नासूरों को,
क़त्ल कर गया कोई, मेरी यादों को,
कमज़ोर मैं नहीं दिल कमज़ोर है, यह सोच कर नज़रें झुका लेता हूँ,
दर्द होता है, दिल के नासूरों को छुपा लेता हूँ,
हिम्मत नहीं है लड़ने की तो रो कर दामन भिगो लेता हूँ…

जला दिया...

जला दिया आज उन रिश्तों को, जो दिल को कभी अज़ीज़ थे,
दबा दिया उन यादों को, जो दिल के कभी करीब थे,
खुद की यादों का जनाज़ा निकाला, खुद बड़े ही शौक से,
कर दिया क़त्ल उन यादों का, जो दिल में कभी अज़ीज़ थी…

Wednesday, September 7, 2011

इस इश्क-मुश्क की खातिर...

जाने कितने शायर-यार हुए, जाने कितने बेकार हुए,
इस इश्क-मुश्क की खातिर, जाने कितने बीमार हुए,
हादसा यह तब हुआ, जब तुझसे आँखें चार हुई,
हादसा यह तब हुआ, जब ख़्वाबों की बरसात हुई,
हम भी फिर गए काम से, बन कर शायर-यार हुए,
जाने कितने शायर-यार हुए, जाने कितने बेकार हुए

हम जो, रो पाते अगर...

जाने कितने दरिया बन जाते अगर, हम जो, रो पाते अगर,
तनहा न छोड़ता कोई मुझको यूँ, न शायर यूँ बन जाता मगर,
दर्द का दुखड़ा न यूँ सुनाता तुझे, अपने दर्द से न यूँ बहलाता तुझे,
जाने कितने दरिया बन जाते अगर, हम जो, रो पाते अगर...

Tuesday, September 6, 2011

मैं आदिम हूँ या शैतान...

मैं आदिम हूँ या शैतान, मेरे लफ़्ज़ों से न ये जान,
दिखता हूँ इंसान, पर सोच बड़ी बद्जान,
पैसे और हवस की भूख, आँखे है बदनाम,
मैं आदिम हूँ या शैतान, मेरे लफ़्ज़ों से न ये जान…

Sunday, September 4, 2011

कुछ अनकही, कुछ अनसुनी...

क्यूँ घुटन सी...
क्यूँ घुटन सी होने लगती है, अरमानों का क़त्ल होते ही,
खूँ के छीटे बिखर जाते है, चेहरे पर आंसुओं की तरह,
क्यूँ बेबस सी लगने लगती है ज़िन्दगी, किसी के जाने से ही,
यादों के छीटे बिखर जाते है, आँखों में ख़्वाबों की तरह,
क्यूँ गम ही गम नज़र आने लगता है, टूटे वादों की तरह,
बीती यादों के चेहरे बिखर जाते है, अधूरी रातों की तरह,
क्यूँ घुटन सी होने लगती है, अरमानों का क़त्ल होते ही,
खूँ के छीटे बिखर जाते है, चेहरे पर आंसुओं की तरह…

सोचा था…
सोचा था, कुछ मीठी बात होगी, आँखों-आँखों में रात होगी,
पर तू न गुज़रा, तेरी रूह न गुजरी, मेरे अरमानों का जनाज़ा गुज़र गया,
दिल के होसलों का क़त्ल कर, मेरे लफ़्ज़ों को यतीम कर गया,
पर तू न गुज़रा, तेरी रूह न गुजरी, मेरे लफ़्ज़ों का जनाज़ा गुज़र गया…

दर्द होता है…
न सोचो इतना ज्यादा कि दर्द होता है,
न कुरेदो दिल के नासूरों को कि दर्द होता है,
घाव भर भी जाते, अगर इतना न चाहते हम किसी को,
वो मरहम की तरह न नज़र आते है कि दर्द होता है,
न कुरेदो दिल के नासूरों को कि दर्द होता है,
न सोचो इतना ज्यादा कि दर्द होता है…

Thursday, September 1, 2011

क्यूँ मर्ज़ सा लगने लगा है...

हर गुज़रता लम्हा, काटने लगा है अंदर से,
हर बहता कतरा, कचोटने लगा है अंदर से,
दर्द बढ़ता जा रहा है, बदलते नासूर की तरह,
क्यूँ मर्ज़ सा लगने लगा है अंदर से…
घड़ी का काँटा, पल-पल इतना भारी होगा, मैंने सोचा न था,
वक़्त का एक-एक पहर, ऐसे गुज़रेगा, मैंने सोचा न था,
क्यूँ दर्द बढ़ता जा रहा है, बदलते दिल में नासूर की तरह,
क्यूँ मर्ज़ सा लगने लगा है अंदर से…

Wednesday, August 31, 2011

रात ऐसे गुज़रेगी...


रात ऐसे गुज़रेगी, मैंने सोचा न था,
दिल पर बात ऐसे गुज़रेगी, मैंने सोचा न था,
ऐसे होगा मेरी ख्वाहिशों का क़त्ल, मैंने सोचा न था,
ऐसा होगा मेरे दर्द का इम्तेहान, मैंने सोचा न था,
झगड़ा लाज़मी न था करना, फिर भी कर बैठे,
आंसुओं का सबब लाज़मी न था, फिर भी बिखर बैठे,
ऐसे होगा मेरे अरमानों का बलात्कार, मैंने सोचा न था,
ऐसे होगा मेरे दर्द का इम्तेहान, मैंने सोचा न था,
रात कुछ यूँ गुज़रेगी, मैंने सोचा न था,
दिल पर ज़ख्मों के साथ ऐसे गुज़रेगी, मैंने सोचा न था…

आदत अच्छी नहीं...

ये चाहत कुछ अच्छी नहीं,
दर्द की आहट कुछ अच्छी नहीं,
बस दिल तड़पता रहता है अंदर-अंदर,
यूँ जज्बातों से खेलने की आदत अच्छी नहीं…
चाहतों का, दर्द क्यूँ बढ़ जाता है,
ख्वाहिशों का, मर्ज़ क्यूँ बढ़ जाता है,
दिल को बस एक आस पर ज़िन्दा रख लेते है लोग,
क्यूँ ये चाहत का असर पड़ जाता है,
यूँ दर्द की आदत अच्छी नहीं,
ऐसी चाहत अच्छी नहीं…

Tuesday, August 30, 2011

ख़्याल-इ-दिल, सवाल-इ-दिल…

क्यूँ दिन नहीं गुज़रता, क्यूँ रात नहीं होती,
क्यूँ आँखों-आँखों में, तुझसे बात नहीं होती,
क्यूँ, अब मेरी हर बात का सबब तुझसे बन बैठा है,
क्यूँ, अब मेरी आँखों में यूँ, रोज़ बरसात होती है,
क्यूँ दिन नहीं गुज़रता, क्यूँ रात नहीं होती,
क्यूँ आँखों-आँखों में, तुझसे बात नहीं होती…

क्यूँ खाली है राहें, क्यूँ सर्द हवाओं का साथ है,
क्यूँ दर्द घुलता रहता है दिलों में, क्यूँ अच्छी न लगती हर बात है,
क्यूँ दिल में उसका ख़्याल रहता है,
क्यूँ हाल-इ-दिल सवाल रहता है,
क्यूँ दर्द की सिरहन उठती है दिलों में,
क्यूँ राहत का न साथ है,
क्यूँ खाली है राहें, क्यूँ सर्द हवाओं का साथ है,
दर्द घुलता रहता है दिलों में, क्यूँ अच्छी न लगती कोई बात है…

यूँ, दिल लगाना अच्छा नहीं,
यूँ, बेफिजूल मुस्कुराना अच्छा नहीं,
यूँ, दर्द में बद से बदतर हो जाना अच्छा नहीं,
यूँ, शोलों पर नंगे पाव चलते जाना अच्छा नहीं,
यह इश्क का खुमार, बन मेरे दर्द का सबब,
चेहरे पर शिकन, आँखों में नमी की झलक,
आईने में यूँ खुद को देख, दर्द से लिपट जाना अच्छा नहीं,
यूँ, बेफिजूल मुस्कुराना अच्छा नहीं,
ये दिल लगाना अच्छा नहीं…

कभी, खुद से यूँ बात न होती,
तो लफ़्ज़ों की यूँ बरसात न होती,
होती मेरी राहें भी तनहा,
न सूखे पत्तों की सौगात होती,
तड़पती रहती मेरी आहें अंदर,
न, नए सूरज की आस होती,
तू न होता, तेरी जुत्सुजू न होती,
न यूँ लफ़्ज़ों की बरसात होती,
मेरी राहें भी तनहा होती,
जो यूँ खुद से बात न होती…

मुबारक हो ईद…

रोज़े की नमाज़, शिरी, सेवियां और ख़ीर,
तीस दिन का रोज़ा, बदली तकदीर,
अल्लाह के बन्दे, अल्लाह की मेहेर,
बच्चों को इदी, बड़ों को मुबारक हो ईद…

लफ्ज़ हर एक पाक है...

लफ्ज़ हर एक पाक है, उर्स की रात की तरह,
जज़्ब हर बा-नोश है, गुलाबी बाग़ की तरह,
मेरे लफ़्ज़ों को बेमतलब न बोलो काफिर,
यह तो इबादत है उस अल्लाह पाक की तरह,
लिख यूँ ही देता हूँ, कुछ न कुछ खुद-ब-खुद,
पर दिल से हर लफ्ज़ जुड़ा है, एक नए साज़ की तरह,
मेरे लफ़्ज़ों को बेमतलब न समझो काफिर,
यह तो इबादत है उस अल्लाह पाक की तरह…

आज दूरी बहुत ज्यादा है...

आज खुद के अरमानों को पाने की कोशिश में हारा इंसान,
बचपन की यादों के आगे, बेबस और नकारा इंसान,
कल छोटी नेकरों में, भविष्य की ओज लिए तकती आँखों में,
आज सपनों की लहर न वो ताज़ा है, आज दूरी बहुत ज्यादा है,
वो चव्वनी की टॉफी, वो पतंग के कन्ने,
आज गले में है, बस टाई के फंदे,
वो किताबों के बोझ से झुकती कमर,
आज फाइलों में, परिवार का बोझ ज्यादा है,
क्यूँ मुझमे बचपन की यादें ताज़ा है, आज दूरी बहुत ज्यादा है…

Monday, August 29, 2011

चेहरों के पीछे...

चेहरों के पीछे कई चेहरे छुपे होते है,
नज़रों के घाव क्यूँ गहरे होते है,
काश! हम भी झूठे चेहरे बनाना सीख लेते,
तो न दिल पर ज़ख्म इतने गहरे होते…
चेहरों की भाषा क्यूँ पढ़ नहीं पाती आँखे,
क्यूँ हर चेहरे को अपना मान लेती है आँखे,
काश! हम भी समझ लेते झूठे चेहरों के खेल,
तो न दिल पर यूँ ज़ख्म इतने गहरे होते,
चेहरों के पीछे कई चेहरे छुपे होते है,
नज़रों के घाव क्यूँ गहरे होते है…

Sunday, August 28, 2011

मेरे लफ्ज़ मुझसे ही थे...

मेरे लफ्ज़ मुझसे ही थे, किसी ग़ैर से नहीं,
मेरी यादों के साए मुझसे ही थे, कोई ग़ैर तो नहीं,
लफ़्ज़ों को यूँ ही पिरों देता हूँ, शायद खुद के लिए ही कहीं,
बस मेरे लफ़्ज़ों में तेरी ही यादों के साए है, कोई ग़ैर के नहीं,
मेरे लफ्ज़ मुझसे ही थे, किसी ग़ैर से नहीं…
अगर तू न होती तो लिखने की आरज़ू न होती,
अगर तू न होती तो दिल से गुफ्तुगू न होती,
मर जाता मेरे अन्दर का इंसान, दब कर ज़माने के जुल्मों-सितम से,
अगर तुझसे जोड़े लफ्ज़ न होते, तो यूँ लिखने की आरज़ू न होती,
अगर तू न होती तो लिखने की आरज़ू न होती…

अगर यह रात न होती...

अगर यह रात न होती तो ख़्वाबों में तुझसे बात न होती,
न होती सरसराहट दिलों में, न यूँ प्यार की बरसात होती,
कह देता तुझसे मिल कर मैं, हाल-इ-दिल हसरत अपने दिल की,
अगर तू न होती तो तकिये पर रातों को यूँ बरसात न होती,
अगर यह रात न होती तो ख़्वाबों में तुझसे बात न होती…

Thursday, August 25, 2011

कोई आईना दिखा गया...

कल रात कोई आईना दिखा गया,
सबके जुदा होने की वजह बता गया,
रिश्ते बाँधने की कोशिश न की थी कभी,
मुठ्ठी से गिरती रेत की, गिरने की वजह बता गया,
जानता मैं भी था, हाल-इ-दिल अपना,
पर आज चेहरे से कोई धूल हटा गया,
सबके जुदा होने की वजह बता गया,
कल रात कोई मुझे  आईना दिखा गया…

क्यूँ रिश्ते न इतने पक्के होते है...

क्यूँ रिश्ते न इतने पक्के होते है,
धागों के जैसे क्यूँ कच्चे होते है,
थोड़ी सी दूरियां बढ़ते ही,
एक खिचाव सा बनते ही,
सब टूट जाता है, 
हर लम्हा यादों का रूठ जाता है,
धागों की तरह हर चेहरा भी आँखों से रूठ जाता है,
क्यूँ रिश्ते न इतने पक्के होते है,
धागों के जैसे क्यूँ कच्चे होते है…

Wednesday, August 24, 2011

मैंने सोचा न था…

मेरी, चाहतों का दाएरा इतना बड़ा होगा, मैंने सोचा न था,
मेरी, ख्वाहिशों का कारवां इतना छोटा होगा, मैंने सोचा न था,
होगा इतना छोटा मेरी खुशियों का सिलसिला , मैंने सोचा न था,
होगा इतना खोटा मेरे जज़्बातों का काफिला , मैंने सोचा न था,
मेरी, चाहतों का दाएरा इतना बड़ा होगा, मैंने सोचा न था…

ये काया अच्छी नहीं...

ये काया अच्छी नहीं,
कुछ पाया अच्छा नहीं,
उस पर इस अच्छे दिल ने, सब चोपट कर दिया,
जो चाहा तुझको पा लूं तो तेरी चाहत ने धोखा कर दिया,
सोचा कुछ इज्ज़त कमा लूं तो मेरे लफ़्ज़ों  ने धोखा कर दिया,
सोचा कुछ नींद में सपने सजा लूं तो रातों  ने धोखा कर दिया,
सोचा कुछ वक़्त पा लूं तो लम्हों ने धोखा कर दिया,
सोचा की तुझको पा लूं, तेरी चाहत ने धोखा कर दिया,
सोचा कुछ इज्ज़त कमा लूं, मेरे लफ़्ज़ों ने धोखा कर दिया,
ये काया अच्छी नहीं, कुछ पाया अच्छा नहीं,
उस पर इस अच्छे दिल ने, सब चोपट कर दिया…

आज गहन सवालों में उलझा है दिल…

आज गहन ख्यालों में उलझा है दिल,
क्यूँ यूँ सवालों में उलझा है दिल,
नोचने लगी है यादें, कचोटती मुझे अंदर-अंदर,
आज क्यूँ ऐसे ख्यालों में उलझा है दिल…
सवालों की झड़ी सी लगी है अंदर,
साँसों में भी दर्द की सिरहन है,
पत्थर रुपी काया में दिल कहाँ से आया,
कुछ ऐसे ही अनसुलझे ख्यालों में उलझा है दिल,
आज गहन सवालों में उलझा है दिल…

क्यूँ दिल नहीं लगता...

क्यूँ दिल नहीं लगता उसके बिन, क्यूँ याद सताती रहती है,
क्यूँ मेरे हर लफ़्ज़ों में, उसकी ही कहानी रहती है,
एक रोज़ बता कर मैं उसको, कह दो दिल की हसरत,
क्यूँ मेरे उन लफ़्ज़ों में, मेरी,  न आवाज़ सुनाई देती है,
क्यूँ दिल नहीं लगता उसके बिन, क्यूँ याद सताती रहती है…

Monday, August 22, 2011

लिखने की आरज़ू ले बैठोगे तो...

लिखने की आरज़ू ले बैठोगे तो यूँ ही पछताओगे,
लफ्ज़ न ब-रोज़ मिलेंगे, मुफलिसी से टकराओगे,
कुछ हिमाकत कर लिख भी लो कभी, ख्वाब यूँ अधूरे से,
कुछ चाहत कर कह भी दो कभी, साज़ न वो पूरे से,
खुद अपने ही रास्ते में, लफ्ज़ न यूँ वो पाओगे,
लफ्ज़ न ब-रोज़ मिलेंगे, मुफलिसी से टकराओगे,
लिखने की आरज़ू ले बैठोगे तो यूँ ही पछताओगे...

आज क्यूँ अचानक...

आज उनकी याद क्यूँ अचानक आ गयी,
चेहरों पर मुस्कराहट थी, फिर क्यूँ गम की घटा छा गयी,
यादें क्यूँ ताज़ा सी थी, बात कल की तरह,
आहें क्यूँ ज्यादा सी थी, रात कल की तरह,
जाने क्यूँ फिर गम की घटा छा गयी,
आज अचानक क्यूँ उनकी याद आ गयी...
रिश्तें क्यूँ कच्चे-पक्के से हो गए,
राहों में तन्हा हम खो गए,
क्या लोगों से जुदा हो गए,
या फिर लोग ही मुझसे जुदा हो गए,
दिल खोया क्यूँ गहन ख्यालों में,
यादें क्यूँ उलझी यूँ ही सवालों में,
जाने क्यूँ यूँ गम की घटा छा गयी,
आज क्यूँ अचानक उनकी याद आ गयी...

Tuesday, August 16, 2011

क्यूँ लफ्ज़ न मेरे पास...

क्यूँ लिखने को बेताब है दिल, क्यूँ लफ्ज़ न मेरे पास,
यूँ ऐसे क्यूँ बेताब है दिल, कलम तू न हो उदास,
क्यूँ दिल इतने सवाल उठेंगे, यूँ हालत पर बेहाल उठेंगे,
यूँ उलझे-उलझे ख्याल उठेंगे, क्यूँ इतने दिल सवाल उठेंगे,
क्या लफ्ज़ लाऊं खोज मैं, क्या मैं दूं जवाब,
यूँ ऐसे क्यूँ बेताब है दिल, कलम तू न हो उदास,
क्यूँ लिखने को बेताब है दिल, क्यूँ लफ्ज़ न मेरे पास...

आज, लिखने की आरज़ू ले बैठे है हम...

आज, लिखने की आरज़ू ले बैठे है हम, फिर लफ्ज़ क्यूँ मुझसे यूँ नाराज़ है,
सोचते कुछ और है हाल-इ-दिल हसरत बताने की, जुबान का कुछ और ही ख्याल है,
लफ्जों की हिमाकत यूँ होगी, मैंने सोचा न था,
ख्वाहिशों की चाहत यूँ होगी, मैंने सोचा न था,
न सोचा था, कि चाहतें यूँ मचलेंगी अंदर-अंदर,
न सोचा था, कि ख्वाहिशें क्यूँ पिघलेंगी अंदर-अंदर,
फिर आज क्यूँ लिखने की आरज़ू ले बैठे है हम और लफ्ज़ यूँ मुझसे नाराज़ है,
सोचते कुछ और है हाल-इ-दिल हसरत बताने की, जुबान का कुछ और ही ख्याल है...

Thursday, August 11, 2011

क्यूँ दिल...

क्यूँ दिल जीने-मरने की कसमें खाने को तैयार रहता है,
क्यूँ दिल किसी के लिए हर पल इतना बेकरार रहता है,
हर वक़्त तकती रहती है निगाहें किसी का रास्ता,
क्यूँ ये सांसें किसी के लिए इतनी बेकरार रहती है...
दिल के ख़्यालों का काफिला यूँ निकलेगा, सोचा न था,
ख़्वाबों का बाशिंदा कोई अपना मिलेगा, सोचा न था,
यूँ तकती रहेंगी निगाहें किसी का रास्ता, सोचा न था,
यूँ जागेंगी रंगीनी ख्वाहिशें, सोचा न था...

Wednesday, August 10, 2011

क्यूँ कभी बनते, कभी बिगड़ते बादल...

क्यूँ कभी बनते, कभी बिगड़ते बादल,
क्यूँ चाहतों के पंख लिए सवारते बादल,
क्यूँ रंगों की बरसात लिए, बरसते नहीं मुझ पर बादल,
क्यूँ दिलों के भीगने की हसरतों को न समझते बादल,
क्यूँ बारिशें मद्धम सी है, क्यूँ चाहतें ये कम सी है,
क्यूँ बादलों के गुच्छे बरसते नहीं मुझ पर, क्यूँ बरसने की चाहत ये कम सी है...

Wednesday, August 3, 2011

कुछ सवाल...

कुछ सवाल दिल में दर्द दे जाते है,
कुछ ख़्याल बे-फिकरी, चेहरे पर शिकन दे जाते है,
क्या जवाब खोजू, हाल-इ-दिल सवालों का,
यह तुझे पाने और खोने की आरज़ू में, तबाह हो जाते है,
बे-फिकरी यूँ न थी, हाल-इ-दिल मेरी,
दिल की तबियत ऐसी न, साज़-इ-दिल मेरी,
क्यूँ ऐसे जवाब खोजू, जो दर्द दे जाते है,
यह तो तुझे पाने और खोने की आरज़ू में, तबाह हो जाते है...

अब दिल में ख़्याल अच्छे आते है...

अब दिल में ख़्याल अच्छे आते है,
कुछ दिल में सवाल अच्छे आते है,
करने लगता हूँ जब खुद से तेरी बातें,
तो मिजाज़-इ-रंगत बदल जाती है,
यह अजीब सा रोग हो गया जाने मुझे,
क्यूँ इतने ख़्याल अच्छे आते है,
दिन में सोचता हूँ, रात की बातें,
और, यूँ दिल में सवाल अच्छे आते है...

हँसते हुए चेहरे बना लेता हूँ...

कुछ दर्द दिल में होता है, हँसते हुआ चेहरा बना लेता हूँ,
धीरे से, झूठे से हँसकर, दर्द दिल में दबा लेता हूँ,
झूठे चेहरे पर ही सही, लोग मुस्कुरा तो लेते है, 
आँखों से बहते अश्क, यूँ ही छुपा लेता हूँ,
मिलता हूँ जब भी तुझसे, जाने क्यूँ पलके झुका लेता हूँ,
कहीं दर्द यह झलक न जाए, तुझसे, नज़रें चुरा लेता हूँ,
यूँ, धीरे से, झूठे से हँसकर, दर्द दिल में दबा लेता हूँ,
कुछ दर्द दिल में होता है, हँसते हुए चेहरे बना लेता हूँ...

ज़िन्दगी की भी क्या खूब कहानी है..

ज़िन्दगी की भी क्या खूब कहानी है,
कुछ आँखे नम है, कुछ उनकी निशानी है,
लफ्ज़ मेरे, मुझसे ही थे, दर्द बस तेरा लिए,
साज़-दिल मेरे ही थे, जिक्र बस तेरा लिए,
था मुसाफिर, एक अजनबी सा, रुक गया तेरे लिए,
दो पल मुस्कुरा दिया, चल दिया यादें लिए,
यूँ सँभालने न था पाया, होश, जब तुझमे खो दिया,
यूँ सँभालने न था पाया, साथ, जब तेरा खो दिया,
यह जो कागज़ पर उकेरे है, मेरे दर्द की निशानी है,
आज, कुछ आँखे नम है, कुछ उनकी निशानी है,
ज़िन्दगी की भी क्या खूब कहानी है..

बरसो रे! काले मेघो, अब तो बरस जाओ...

ए ! काले-काले बादलों, अब तो बरस जाओ,
प्यासी है धरती, अब तो न तड़पाओ,
प्यासा है मेरा मन, भीग जाने के लिए,
तरसे है ये नयन, तुझको पाने के लिए,
अब तो आ कर यह प्यास बुझाओ,
बरसो रे! काले मेघो, अब तो बरस जाओ...
सूखी है धरती, न गीला है अम्बर,
प्यासी है ऋतुये, जैसे हो मैं नर,
अब तो सावन की घटा लाओ,
बरसो रे! काले मेघो, अब तो बरस जाओ...

जाने क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में...

क्यूँ इतने ख़्याल उठते है दिल में,
क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में,
यह बस इतेफ़ाक है या मेरे पागलपन का सबब,
जाने कैसे-कैसा सवाल चलते है दिल में...
यूँ तो सवालों के सिलसिले पहले भी थे, अब की तरह,
यूँ तो ख्यालों के काफिले पहले भी थे, अब की तरह,
बस आज कुछ, कुछ अक्स का नाम-ओ-निशाँ मात्र है,
कुछ ऐसे ही ख़्याल चलते थे ज़ेहन में,
तब तू न था मेरी परेशानियों का सबब,
अब तू ही है हर कारिस्तानियों का सबब,
तब तू न था मेरी परेशानियों का सबब, दुनिया-जहाँ की सौ बातें थी,
अब तू ही है हर तरफ, सुल्झानो और उलझनों की सौगातें है,
यूँ तो सवालों के सिलसिले पहले भी थे, अब की तरह,
यूँ तो ख़्यालों के काफिले तब भी थे, अब की तरह,
फिर आज क्यूँ नए ख़्याल उठते है दिल में,
जाने क्यूँ इतने सवाल उठते है दिल में...

Tuesday, August 2, 2011

तभी यादें ताज़ा है...

बचपन के दिन इतने ख़ास थे, तभी यादें ताज़ा है,
आज तो बस अंधी दौड़ है, दूरी बहुत ज्यादा है,
वक़्त यूँ गुज़र जायेगा मेरा, यह कभी सोचा न था,
लम्हा यूँ ठहर न जायेगा मेरा, यह कभी सोचा न था,
वो छोटी नेकरों के दिन, चवन्नी की टॉफी याद है तो यादें ताज़ा है,
आज तो बस अंधी दौड़ है और दूरी बहुत ज्यादा है...

अब पुराने लगने लगे...

यह दोस्ती-यारी के किस्से, अब पुराने लगने लगे,
बचपन की यारी के हिस्से, अब याद आने लगे,
याद कर, रो लेते है, वो ज़माना पुराना,
बात कर, कह देते है, वो तराना पुराना,
वो छोटी नेकरों के, धुंधले दिन याद आने लगे,
बचपन की दोस्ती के हिस्से, अब याद आने लगे,
यह दोस्ती-यारी के किस्से, अब पुराने लगने लगे...

अगर सच यूँ कड़वा न होता...

कह देते साफ़-साफ़, अगर सच यूँ कड़वा न होता,
सह लेते दर्द-इ-दिल साथ-साथ, अगर सच यूँ कड़वा न होता,
सितारे किसके मिले है, हमारे-तुम्हारे, दिल यूँ साफ़ न कहता,
वाफाये किसकी मिली है, हमारी-तुम्हारी, दिल क्यूँ नहीं माफ़ कर देता,
सह लेते दर्द-इ-दिल साथ-साथ, अगर सच यूँ कड़वा न होता,
कह देते साफ़-साफ़, अगर सच यूँ कड़वा न होता...

एक अक्स सा...

आइना-इ-पाक मैंने साफ़ जो देखा, एक अक्स सा कहीं घर सा आ गया,
मैं तनहा सा देखता रहा, वो घर कर, दिल के कोनो पर छा गया,
मैं यूँ तनहा सोच में, जाने क्या मैं पा गया,
आज खुद को देख यूँ, जाने क्यूँ चकरा गया,
यह मैं था, मुझसे मैं, या लफ़्ज़ों का माया-जाल था,
दुर्लब मेरी काया थी, या नज्मो का कमाल था,
आज खुद को देख यूँ, जाने क्यूँ चकरा गया,
मैं यूँ तनहा सोच में, जाने क्या मैं पा गया,
आइना-इ-पाक मैंने साफ़ जो देखा, एक अक्स सा कहीं घर सा आ गया,
मैं तनहा सा देखता रहा, वो घर कर, दिल के कोनो पर छा गया...

शुक्रिया एहल-इ-नफ़ज़...

शुक्रिया एहल-इ-नफ़ज़, नाज़-इ-करम तेरा,
शायर मैं नहीं, बस लफ़्ज़ों का है बसेरा,
यूँ ही लिख देते है, हाल-इ-दिल हसरत, दर्द-इ-बयान,
यूँ ही कह देते है, दर्द-इ-दिल इबादत, नज़्म-ओ-बयान,
शायर मैं नहीं, बस लफ़्ज़ों का है बसेरा,
शुक्रिया एहल-इ-नफ़ज़, नाज़-इ-करम तेरा...

न सोचा था...

नोश-इ-नफीज़ लफ़्ज़ों की इतनी इनायत होगी, सोचा न था,
जोश-इ-गरीब की की इतनी किफ़ायत होगी, सोचा न था,
न सोचा था, ग़ालिब तेरे कूचे से दो फूल गिरेंगे,
न सोचा था, काबिज यह ज़ख्म-इ-नासूर बनेंगे,
न सोचा था, कि मेरे लफ़्ज़ों की इतनी इनायत होगी,
न सोचा था, मेरे दर्द की ऐसी नुमाइश होगी,
लफ़्ज़ों को उकेर बस, कागज़ यूँ गीला किये,
दर्द यूँ बिखेर बस, चेहरे को गीला किये,
न सोचा था, ग़ालिब तेरे कूचे से दो फूल गिरेंगे,
न सोचा था, काबिज यह ज़ख्म-इ-नासूर बनेंगे...

हम ही गुलज़ार बैठे है...

न सोचा था हमने कि सभी शायर-यार बैठे है,
हम तो सोचा किये, हम ही गुलज़ार बैठे है,
लफ़्ज़ों हुनर, तुमसे भी होगा, ये न सोचा किये,
नज़रों-करम तुमसे भी होगा, ये न सोचा किये,
न सोचा किये कि सभी शायर-यार बैठे है,
हम तो सोचा किये, हम ही गुलज़ार बैठे है...

अब तो ख़्वाबों से भी जुदा होने लगा...

पहले जज्बातों से, अब तो ख़्वाबों से भी जुदा होने लगा,
दिन भर सोचता रहता हूँ, जाने क्या मुझे होने लगा,
यादें क्यूँ तनहा सी होने लगी,
बातें क्यूँ तनहा सी होने लगी,
तकिये के सिरहाने भी गीले हो, क्यूँ जुदा होने लगे,
यादें क्यूँ दिल घर करने लगी, मुझसे क्यूँ जुदा होने लगी,
दिन भर सोचता रहता हूँ, जाने क्या मुझे होने लगा,
पहले जज्बातों से, अब तो ख़्वाबों से भी जुदा होने लगा...

Monday, August 1, 2011

झूठ और फरेब का...

झूठ और फरेब का एक और नया चेहरा सामने आया,
यादों में घिर गया उसकी, खुदको राहों में तनहा पाया,
मैं तनहा ही खुश था, दूर लम्बी राहों पर,
फिर क्यूँ न जाने, तेरा साया नज़र आया,
कुछ पल सुकून के, जो तेरे साथ गुज़रे,
कुछ पल हसीन से, जो तेरे साथ गुज़रे,
याद शायद हर पल रहेंगे मुझे,
मैं तनहा ही खुश था, दूर लम्बी राहों पर,
फिर क्यूँ न जाने, तेरा साया नज़र आया,
यादों से घिर गया उसकी, खुदको राहों में तनहा पाया,
झूठ और फरेब का और एक नया चेहरा सामने आया...

जैसे कोई गम पिए जा रहा हूँ...

लगता है जैसे गम पिए जा रहा हूँ,
तनहा तेरी यादों में जिए जा रहा हूँ,
आस और उम्मीद ने साथ छोड़ दिया हो जैसे,
क्यूँ ऐसी तनहा राहों पर चले जा रहा हूँ...
तेरी यादों का साया, ऐसे घिर आएगा कभी, सोचा न था,
तेरी झूटी बातों की छाया, ऐसे घिर आएँगी कभी, सोचा न था,
न सोचा था कभी, यह दिल कभी किसी के लिए रोयेगा,
न सोचा था कभी, यह दिल कभी किसी को खोएगा,
न सोचा था कभी, तेरी यादों का साया यूँ तड्पाएगा,
न सोचा था कभी, तेरी बातों का साया यूँ नज़र आएगा,
क्यूँ तनहा तेरी यादों में जिए जा रहा हूँ,
लगता है जैसे कोई गम पिए जा रहा हूँ...

अब न पीते है यारों...

अब न पीते है यारों, महफिलों में बैठ कर, 
अब तो जीते है यारों, बस यूँ ही जी कर,
हाल-इ-दिल ऐसा भी होगा कभी, यह सोचा न था,
साज़-इ-दिल ऐसा भी होगा कभी, यह सोचा न था,
कभी यूँ ही रंज के सहारे, जिया कर लेते थे, महफिलों में बैठ कर,
अब न पिया करते है यारों, महफिलों में बैठ कर,
अब तो जीते है यारों, बस यूँ ही जी कर...

Sunday, July 31, 2011

समय के पहियों पर चलता मानुष...

मैं रुक नहीं सकता राहों में, निरंतर बढ़ना मेरा काम है,
समय के पहियों पर चलता मानुष, मुझसे ही बनाम है,
आदिम जो खोया था खुद अपनी ही नज़रों में कहीं,
उस आदिम से मुझे कुछ वक़्त-इ-काम है,
समय के पहियों पर चलता मानुष, मुझसे ही बनाम है,
वक़्त की आंधी में दौड़ता मानुष, रिश्तों की भीड़ में खोता मानुष,
मुझसे (वक़्त) क्यूँ न बलवान है,
मैं रुक नहीं सकता राहों में, निरंतर बढ़ना मेरा काम है,
समय के पहियों पर चलता मानुष, मुझसे ही बनाम है |

यादें क्यूँ तनहा जाती नहीं...

क्यूँ याद करते है हम लोगो को, 
क्यूँ यादों को तनहा छोड़ पाते नहीं,
लोग ओझिल हो जाते है नज़रों से,
फिर यादें क्यूँ तनहा जाती नहीं,
यादों का बसेरा क्यूँ घर कर जाता है दिलों पर,
ख़्वाबों का सवेरा क्यूँ बसर जाता है लबों पर,
क्यूँ यादों में ख़्वाबों के सवाल है,
क्यूँ उलझे यह ख्याल है,
लोग ओझिल हो जाते है नज़रों से,
फिर यादें क्यूँ तनहा जाती नहीं,
याद करते है हम लोगो को,
क्यूँ लोगो को याद आते नहीं...

ये तू है, तेरी जुत्सुजू है...

ये तू है, तेरी जुत्सुजू है या फिर तेरे होने का एहसास है,
आज क्यूँ न जाने, लगती हर चीज़ कुछ ख़ास है,
तेरी मोजूदगी बावस्ता थी, मेरे ही अन्दर कहीं,
तेरे आ जाने से बस वाकिफ यह ख़्याल है,
क्यूँ, तेरे आने से दिल की रंगीनियत बदल गयी,
क्यूँ, तेरे आने से चेहरे की मासूमियत बदल गयी,
तेरी मोजूदगी बावस्ता थी, मेरे ही अन्दर कहीं,
तेरे आ जाने से बस वाकिफ यह ख़्याल है,
ये तू है, तेरी जुत्सुजू है या तेरे होने का बस बे-मतलब ख़्याल है |

Friday, July 22, 2011

सोचा न था ज़िन्दगी...

सोचा न था ज़िन्दगी इतनी खुश-नसीबी से मिलेगी मुझसे,
सोचा न था खुशिया इतनी करीबी से मिलेगी तुझसे,
हर पल चहकता तेरा चेहरा ही तो मेरी जान है,
सोचा न था इतनी खुशियाँ मिलेगी मुझसे...

Tuesday, July 19, 2011

कुछ उलझे ख़्याल, कुछ सुलझे से...

कुछ तो बात है तेरे होने ना होने मे ग़ालिब, यूँ ही दिल किसी का तलबगार नही होता,
रात भर जागते है तेरे संग-संग, क्यूँ अब सुबह का इंतेज़ार नही होता,
रातें तन्हा ही हुआ करती थी मेरी, तेरी शब के आने से पहले,
फिर क्यूँ अब सुबह का इंतेज़ार नही होता,
कुछ तो बात है तेरे होने ना होने मे ग़ालिब, यूँ ही दिल किसी का तलबगार नही होता...


इस झुटे मलाल मे ही जी लेने दे हमसफर, इसी बहाने कुछ गुज़र तेरा साथ तो बवस्ता होगा,
तन्हा सफ़र करते-करते थक चुका हूँ अंदर, कुछ पल तो तेरा दीदार होगा,
बातें ना जाने कितनी हो चुकी दो दिलों के दरमियाँ, फिर क्यूँ ना जाने क्यूँ कुछ अधूरा सा लगता है,
रात खूब गुज़री है आहिस्ता-आहिस्ता, सुलगते ज़ज्बातों के दरमियाँ,
फिर ना जाने क्यूँ कुछ अधूरा-अधूरा सा ख्वाब सा क्यूँ लगता है,
इस झुटे मलाल मे ही जी लेने दे हमसफर, इसी बहाने कुछ गुज़र तेरा साथ तो बवस्ता होगा,
तन्हा सफ़र करते-करते थक चुका हून अंदर, कुछ पल तो तेरा दीदार होगा...


क्यूँ हालात-ए-दिल समझ नही पाते वो, क्यूँ ज़ज्बात-ए-दिल संभाल नही पाते वो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर देते है वो,
कहते है क्यूँ बेफ़िजूल फ़िक्र करते रहते हो, तुम तो समझदार हो सब कुछ समझ जाते हो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर जाते है वो...
बातों को खूब बना लेते है वो, हमको भी खूब चला लेते है वो,
बस यही अदा, उनकी जान ले गयी, कहते है समझ कर भी मेरे लफ़्ज़ों को समझ ना पाते वो,
कहते है क्यूँ बेफ़िजूल फ़िक्र करते हो, तुम तो समझदार हो सब कुछ समझ जाते हो,
दिल की हसरातों को जान कर भी अनदेखा कर जाते है वो...


मुस्कुरा कर भी कत्ल-ए-आम करते है, आँसू बहा कर भी हमे बदनाम करते है,
कहते है खुद ही समझ लो हाल-ए-दिल सबब, और कह अपने लफ़्ज़ों का हमे गुलाम करते है,
तुम ना बोलोंगी तो यूँ लफ्ज़ कहाँ से आएँगे, तुम ना यूँ साथ होगी तो वो जज़्ब कहाँ से आएँगे,
साथ है तेरा तो ज़िंदा सा लगता हूँ, वरना लाज़िम था मेरा मरना यूँ लफ़्ज़ों के बिना,
कहते है खुद ही समझ लो हाल-ए-दिल सबब, और कह अपने लफ़्ज़ों का हमे गुलाम करते है,
मुस्कुरा कर भी कत्ल-ए-आम करते है, आँसू बहा कर भी हमे बदनाम करते है...
मेरी शायरी मुझसे ना थी, थी कही तुझसे ही, मेरे लफ्ज़ मुझसे ना थे, थे कहीं तुझमे ही,
मैं तो बस लफ़्ज़ों को पिरो देता हूँ, तेरे बालों की तर्ज़ पर,
और यूँ लफ़्ज़ों का सिलसिला बन जाता है तेरी-मेरी तरह, यूँ ही...

Monday, July 18, 2011

रोज़ नयी ख्वाहिशें...

रोज़ नयी ख्वाहिशें जन्म लेती है दिल मे, रोज़ हम उन्हे दबा लेते है,
कुछ आरज़ू है उनकी ऐसी, कि खुद नज़रें झुका लेते है,
बस कह देते है हाल-ए-दिल अपना, दो शायरी के लफ़्ज़ों मे,
पर ना जाने क्यूँ लोग उसे, मेरे प्यार का सबब मान लेते है,
रोज़ नयी ख्वाहिशें जन्म लेते है दिल मे, रोज़ हम उन्हे दबा लेते है,
कुछ आरज़ू है उनकी ऐसी, कि खुद नज़रें झुका लेते है...

जाने क्यूँ दिल मे...

जाने क्यूँ दिल मे कुछ उलझे सवाल है,
यह तेरा नूर-ए-इश्क़ है या बस बेमतलब ख्याल है,
जाने क्यूँ दिल हर बातों को तुझसे ही जोड़ देता है,
कहीं मैं तन्हा रह ना जाउ, यह दिल-ए-सवाल है,
हर बात का गिला भी तू, शिकवा भी तू बन जाता है क्यूँ,
हर रात जागने की वजह भी तू, बन जाता है क्यूँ,
जाने क्यूँ दिल मे कुछ उलझे सवाल है,
यह तेरा नूर-ए-इश्क़ है या बस मेरा बेमतलब ख्याल है...

कुछ बूँदों की बारिश...

कुछ बूँदों की बारिश, बरसने लगी मुझ पर,
कुछ चाहतों की ख्वाहिश, मचलने लगी तुझ पर,
क्यूँ बारिश की बूँदों से भीगा है मेरा मन,
क्या यह तेरी चाहतों का असर है, मुझ पर?
आज तपती धूप भी, हल्की भीनी छाव सी क्यूँ लगती है,
आज बंज़र मे भी, हल्की बोछार सी क्यूँ लगती है,
क्यूँ बारिश की बूँदों से भीगा है मेरा मन,
क्या यह तेरी चाहतों का असर है, मुझ पर...कुछ बूँदों की बारिश, बरसने लगी मुझ पर,
कुछ चाहतों की ख्वाहिश, मचलने लगी तुझ पर,
क्यूँ बारिश की बूँदों से भीगा है मेरा मन,
क्या यह तेरी चाहतों का असर है, मुझ पर?
आज तपती धूप भी, हल्की भीनी छाव सी क्यूँ लगती है,
आज बंज़र मे भी, हल्की बोछार सी क्यूँ लगती है,
क्यूँ बारिश की बूँदों से भीगा है मेरा मन,
क्या यह तेरी चाहतों का असर है, मुझ पर...

Sunday, July 17, 2011

सोचा ना था...

यूँ रात ऐसी गुज़रेगी, सोचा ना था,
यूँ बात ऐसी गुज़रेगी, सोचा ना था,
दोनो के दिलों की धड़कने, क्यूँ तेज़ थी बवस्ता,
यूँ जज्बातों के साथ ऐसे गुज़रेगी, सोचा ना था,
ना सोचा था की बातों का आलम ऐसा होगा,
ना सोचा था दिल के हालातों का मौसम ऐसा होगा,
यूँ गुज़रेगी रात कभी, ऐसा सोचा ना था,
यूँ गुज़रेंगे दिलों के अरमान, ऐसा सोचा ना था...

Wednesday, July 6, 2011

रात का नशा था या बात का नशा था...

रात का नशा था या बात का नशा था,
साथ का नशा था या ज़ज्बात का नशा था,
दोनो तरफ दिल धड़क रहा था ज़ोरो पर,
यह उनके साथ का नशा था या मेरे अल्फ़ाज़ का नशा था...
कुछ यादों का पुलिंदा ऐसा बना,
कुछ बातों का पुलिंदा ऐसा बना,
रात छोटी लगने लगी, क्यूँ बातों के आगे,
ज़ज्बात कम पड़ने लगे, हालात के आगे,
यह रात का नशा था या उनकी बातों का नशा था,
उनके साथ का नशा था या हमारे ज़ज्बात का नशा था...

Monday, July 4, 2011

खुद-ब-खुद...

बहक गए जाम, लड़खड़ाने लगे कदम खुद-ब-खुद,
यह नशा शराब का था, या था बस खुद-ब-खुद,
हलक चीरती सी उतरी थी यादें, जाने क्यूँ खुद-ब-खुद,
यह नशा शराब का था, या था बस खुद-ब-खुद,
कोशिशें बहुत की जाम से जाम मिलाने की, तेरे गम को भुलाने की,
कोशिशें बहुत की यादों के सायों से पीछा छुटाने की, 
पर नशा जो चढ़ा यादों का, आँखों से कुछ बूंदे छलक उठी खुद-ब-खुद,
यह नशा शराब का था, या था बस खुद-ब-खुद...

बन समोसा रह जाती है, सुर्ख होने तक अन्दर-अन्दर...

यादें, तेल में सुलगते समोसों की तरह होती है,
जो दर्द में सुलगने के बावजूद, मर्म अन्दर समेटे रहती है,
कभी सुर्ख हो लाल, फट पड़ती है दर्द के कड़ाह के अन्दर,
तो कभी इंतज़ार करती है, दबा कर तोड़े जाने का, दूसरों के जुल्म सह कर,
पर सुलगती रहती है टेढ़ी-मेढ़ी यादों की तरह,
बन समोसा रह जाती है, सुर्ख होने तक अन्दर-अन्दर...

बांध मुझको मूरत में, तालो में बंद किया...

आज मेरे अमानुष ने, प्यार का यह सिला दिया,
बाँध मुझको मूरतों में, तालो में बंद किया,
कह मुझ मूरत को भगवान्, दर्जा जो ऊंचा दिया,
बाँध मुझको मूरतों में, तालो में बंद किया...
बना पत्थर की मूरत, मुझको यूँ जड़वत किया,
सलाखों के पीछे बंद कर, मुझको यूँ निशस्त्र किया,
शीश झुका के दिया, प्यार जो, सम्मान जो,
आज उस प्यार को, यूँ तालो में बंद किया,
कह मुझ मूरत को भगवान्, दर्जा जो ऊंचा दिया,
बांध मुझको मूरत में, तालो में बंद किया...

Saturday, July 2, 2011

अरसा हुआ तुझे गुज़रे...

अरसा हुआ तुझे गुज़रे मेरी राहों से, फिर क्यूँ यादें ताज़ा है,
अरसा हुआ वो आँखे देखे, फिर क्यूँ सपने ताज़ा है,
अरसा हुआ हकीकत जाने-समझे, फिर क्यूँ दिल को याद वो वादा है,
अरसा हुआ तुझे गुज़रे, फिर क्यूँ यादें ताज़ा है...
अरसा हुआ उस बात को समझे, जो दिल माने-न माने,
अरसा हुआ उस रात को गुज़रे, गीले तकिये के सिरहाने,
अरसा हुआ वो आँखे देखे, फिर क्यों वो सपने ताज़ा है,
अरसा हुआ तुझे गुज़रे, फिर क्यूँ दर्द यह ज्यादा है...

Thursday, June 30, 2011

तो अच्छा लगता है...

कभी-कभी तुमसे दो मीठी बात हो जाती, तो अच्छा लगता है,
कभी-कभी कुछ हलकी बरसात हो जाती, तो अच्छा लगता है,
कभी डूब जाता है दिल, तेरी यादों की गहराई में,
हँसते हुए कुछ पल आते है याद, तो अच्छा लगता है...
यादों का पुलिंदा भी कितना अच्छा लगता है,
ख्वाबों का बाशिंदा भी कितना अच्छा लगता है,
अच्छी लगती है वो सुनहरी यादें, जो दिल में हसीन गुमान रखती है,
हँसते हुए कुछ पल आते है याद, तो अच्छा लगता है...

Monday, June 27, 2011

फिर घनघोर घटा छा गयी नभ पर...

फिर घनघोर घटा छा गयी नभ पर, फिर काले बादलों की फ़ौज आ गयी,
घुमड़ आये कुछ काले बादल, लगता है बरखा की ऋतु आ गयी,
घुमड़-घुमड़ शोर मचाने लगे, छोटे-छोटे बालकों की तरह,
मिलजुल कर अठखेलिया करने लगे, सखी-सहेलियों की तरह,
नन्हे-मुन्नों की तरह शोर मचाने लगे सारे, घरड-घरड, घुमड़-घुमड़,
कुछ-कुछ छटक छटक कर अठखेलिया करने लगे इधर-उधर,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ, घूम-घूम बरसने लगे सारे,
भिगोदी धरती सारी, कर दिया हरा-भरा इधर-उधर,
कुछ प्यासे भी भीगे, गिरती कुछ बूंदों में मेरी तरह,
कुछ चातक भी चहके, गिरती कुछ बूंदों में मेरी तरह,
फिर घुमड़ आये कुछ काले बादल, फिर काले बादलों की फ़ौज आ गयी,
घनघोर घटा छाने लगी नभ पर, लगता है बरखा की ऋतु आ गयी...

वक़्त बदलता रहता है...

वक़्त बदलता रहता है, जज्बात बदलते रहते है,
लोग बदलते रहता है, हालात बदलते रहते है,
प्यार और तकरार के बीच, एक समझोता सा बना रहता है अन्दर,
लोगो की वफ़ा और बेवाफ़ाये भी बदलते रहते है,
बदलना मेरी फितरत नहीं, वक़्त है जो मुझसा नहीं रहा,
कभी कचोटता, कभी खसोटता, कभी नोचता मुझको रहा,
पर लाख कोशिशों के बाद भी मैं न बदला वक़्त की तरह,
तुझे बदलता देख बस रोता रहा, दर्द से घिरा,
प्यार और तकरार के बीच, एक समझोता सा बना रहता है अन्दर,
लोगो की वफ़ा और बेवाफ़ाये भी बदलती रहती है,
लोग बदलते रहते है, हालात बदलते रहते है,
वक़्त बदलता रहता है, जज्बात बदलते रहते है,
बदलना तो वक़्त की फितरत है, लोगो में हर पल की तरह,
चेहरे बदलते रहते है, हमशकल की तरह,
पर लाख कोशिशों के बाद भी मैं न बदला कल की तरह,
बेबस तुझे देखता रहा, बदलते कल की तरह...

Wednesday, June 22, 2011

आज तबियत कुछ न-साज़ सी क्यूँ है...

आज, तबियत कुछ न-साज़ सी क्यूँ है, लफ्ज़ भी न मिलते कुछ ख़ास से क्यूँ है,
क्यूँ किसी के जाने से दिल गम-ज़दा है, आज मेरे लफ़्ज़ों में वो बात सी न है,
चाहतें कभी पूरी न हुई हसरत-इ-दिल मेरी, फिर भी तेरे होने का एक एहसास सा क्यूँ है,
क्यूँ किसी के जाने से दिल गम-ज़दा है, आज मेरे लफ़्ज़ों में वो बात सी न है,
आज तबियत कुछ न-साज़ सी क्यूँ है, लफ्ज़ भी न मिलते कुछ ख़ास से क्यूँ है...

Thursday, June 16, 2011

चाँद को लहराते बादलों में छुपता देख...

चाँद को लहराते बादलों में छुपता देख, दिल में यह सवाल आया,
ये तू है, तेरी जुत्सुजू है या फिर तेरी यादों का साया, 
दुपट्टे की ओट में, बनते बिगड़ते तेरे चेहरों में, 
क्यूँ दिल खोजता है, मेरी हसरतों का साया,
दूर था पर वाकिफ सा था जो चेहरा यादों में,
क्यूँ न लगता आज, अपना सा साया,
ये तू है, तेरी जुत्सुजू है या फिर तेरी यादों का साया,
चाँद को लहराते बादलों में छुपता देख, दिल में यह ख्याल आया...

Wednesday, June 15, 2011

गहन विचारों का घमासान अन्दर होने लगा...

गहन विचारों का घमासान अन्दर होने लगा, दिल धक्-धक् कर सुबुक-सुबुक रोने लगा,
कुछ पलके भी नम थी, भीगे दिल की तरह, न जाने क्यूँ तेरी यादों से भी तनहा दिल होने लगा,
दिल कमज़ोर सा पड़ता दिख रहा था, टूटती नब्ज़ की तरह,
आज दिल के अन्दर भी, दर्द सराबोर होने लगा,
मैं था अकेला, तनहा सा, जाने क्यूँ तेरी ओर चला,
तेरे एक साथ के खातिर, कईयों से मुहं मोड़ चला,
पर नजाने क्यूँ तेरे दिल को यह मंजूर न था,
मैं था अकेला, तनहा सा, जाने क्यूँ तेरी ओर चला,
तेरे एक साथ के खातिर, कईयों से मुहं मोड़ चला...

Tuesday, June 14, 2011

क्यूँ उलझनों में उलझा है दिल...

क्यूँ उलझनों में उलझा है दिल, सुनता नहीं मेरी, 
क्यूँ जज्बातों से भरा है दिल, कहता बस तेरी
मैं जो सोचू कुछ और तो, कुछ और ही करता है दिल,
न जाने क्यूँ, तेरे ख्यालों में डूबा रहता है दिल,
हर सवालों-जवाबों में, बस तेरी ही गुफ्तगू करता है दिल,
न जाने क्यूँ, बस तेरे ही ख्यालों में डूबा रहता है दिल...

Wednesday, June 1, 2011

अचानक काले बादलों ने...

अचानक काले बादलों ने, घेर लिया मेरा पूरा संसार,
नभ से रिमझिम-रिमझिम, बरसने लगी हलकी-हलकी फुहार,
देख काले बादलों को, दिल मेरा भी ललचाया,
जैसे चकोर को अमावास की रात में, मिल गया हो पूरे चाँद का साया,
प्यास मेरी भी बढ़ने लगी, धीरे-धीरे घुमड़-घुमड़,
अरमान दिल के मचलने लगे, धीरे-धीरे पिघल-पिघल,
देख नभ की ऋतुओ को, दिल मेरा भी ललचाया,
जैसे चकोर को अमावास की रात में, मिल गया हो पूरे चाँद का साया...

Monday, May 30, 2011

लड़खड़ाने लगे मेरे कदम...

लड़खड़ाने लगे मेरे कदम, खुद-ब-खुद यूँ ही,
नशा शराब का था, या था बस यूँ ही,
क्यूँ बहक जाते है कदम, दो जाम पैमानों के बाद,
संभलते नहीं अरमान, कुचले मैले से,
आंसुओ के साथ, बिखर जाते है यूँ ही,
कुछ तो बात है इस "मैय" में, जो पत्थर की तरह पिघल जाते है हम,
दिल के अरमान निकलने लगते है और लोग कहते है कि बहक जाते है हम,
एक सुरूर सा छा जाता है, नशा बन कर यूँ ही,
लड़खड़ाने लगते है कदम, खुद-ब-खुद यूँ ही,
मैं ये सोचता हूँ कि यह नशा शराब का है, या है बस यूँ ही...

Saturday, May 28, 2011

क्यूँ बेबस ज़ज्बात लगते है...

क्यूँ कभी-कभी मुश्किल हालात हो जाते है,
क्यूँ कभी-कभी बेबस ज़ज्बात हो जाते है,
क्यूँ कभी-कभी मंजिलें दूर लगने लगती है,
क्यूँ कभी-कभी बे-दिल हालात हो जाते है,
क्यूँ राहें मिलती नहीं आसानी से,
क्यूँ हर लम्हा उनका ही एहसास रहता है,
क्यूँ युही मुश्किल हालात हो जाते है,
क्यूँ उनको सजा नहीं मिलती, जो सच में गुनाहगार है,
क्यूँ उनको ही सजा मिलती है, जो बेबस और लाचार है,
क्यूँ मंजिलें मिलती नहीं आसानी से,
क्यूँ बेबस ज़ज्बात रहते है,
क्यूँ मंजिलें दूर लगने लगती है,
क्यूँ मुश्किल हालात लगते है,
क्यूँ मंजिलें दूर लगती है,
क्यूँ बेबस ज़ज्बात लगते है...

Friday, May 27, 2011

कहने को वो जननी है...

कहने को वो जननी है, श्रष्टि की सूत्रधार है वो,
परन्तु फिर भी हर सुख से वंचित है, हर ख़ुशी से निर-आधार है वो,
कभी माँ, कभी बहन, कभी बेटी तो कभी सखी-सहेली है वो,
फिर भी हर सुख से वंचित, निर-आधार है वो,
कहने को तो दर्जे बहुत दिए है उससे, फिर क्यूँ उसका आँचल हमने मैला ही देखा है,
कहने को तो आज़ाद है, स्वछन्द नील गगन में, फिर क्यूँ बंदिशों और मरियादाओ का पहरे है,
निर्मल और कोमल मान, बाँध दिया उससे चार दीवारों में,
पर फिर क्यूँ हम भूल गए, कि यही तो महिषासुर रुपी दुखो की संघारक है वो,
कहने को तो जननी है, श्रष्टि कि सूत्रधार है वो,
परन्तु फिर भी हर सुख से वंचित है, हर ख़ुशी से निर-आधार है वो...

Thursday, May 26, 2011

जाने क्यूँ तुमसे नाता जोड़ा...

जाने क्यूँ तुमसे नाता जोड़ा, जाने क्यूँ खुद से मुह मोड़ा,
जाने क्यूँ तुम्हारे दिल की आवाज़ सुनी, जाने क्यूँ खुद की पहचान खोयी,
सोती रातों में रोता रहा, सिमट कर अपने अन्दर ही अन्दर,
खुद की पहचान खोता रहा, टूटा अन्दर यूँ ही बिखर कर,
छिन-भिन हो गया मेरा वजूद, खो दी मैंने अपनी पहचान,
बंद दिलों के अँधेरे कमरों में, भटकता रहा बन कर अनजान,
सोचता था कभी तो समझेगे, मेरे दिल कि हसरत,
पर वो न समझे क्यूंकि वो थे मुझसे अनजान...
पहले कह कर मुझको अपना, मुझको अपना कर लिया,
आज सुबह जब आँख खुली तो खुद से तनहा कर दिया,
बहुत यकीन था उन पर, फिर क्यूँ खुद को साबित कर दिया,
थे अजनबी पहले भी, आज खुद से साबित कर दिया,
पहले कह कर मुझको अपना, मुझको अपना कर लिया,
आज सुबह जब आँख खुली तो खुद से तनहा कर दिया,
जाने क्यूँ तेरे दिल आवाज़ सुनी, जाने क्यों खुद की पहचान खोयी,
जाने क्यूँ तुझसे नाता जोड़ा, जाने क्यूँ खुद से मुह मोड़ा,
जाने क्यूँ तुझसे दिल ये जोड़ा, जाने क्यूँ मैंने खुद हो छोड़ा...

क्या है ज़िन्दगी???

क्या है ज़िन्दगी???
किसी के लिए बे-दिल, बे-जान सी है ज़िन्दगी,
किसी के लिए खुश-दिल, आसान सी है ज़िन्दगी,
किसी के लिए बे-मन, बे-नाम सी है ज़िन्दगी,
किसी के लिए उसकी पहचान सी है ज़िन्दगी,
बे-रहम न होती ज़िन्दगी, तो शायद तुझसे मुलाकात न होती,
तुझमे दिल होता अगर, तो मुझसे पहचान होती ज़िन्दगी,
बे-रहम न होती ज़िन्दगी, तो जीने की लालसा न होती,
ऐसी बुझदिल न होती ज़िन्दगी, तो मेरे लफ़्ज़ों में जान न होती ज़िन्दगी,
किसी के लिए खुश-दिल, आसान सी है ज़िन्दगी,
किसी के लिए बे-मन, बे-नाम सी है ज़िन्दगी,
शायद मुझसे पहचान ही है ज़िन्दगी,
या फिर बस एक नाम सी है ज़िन्दगी,
बे-दिल, बे-मतलब, बे-जान सी है ज़िन्दगी,
शायद मुझसे अनजान है ये ज़िन्दगी...